एक अदद बाई की तलाश
एक अदद बाई की तलाश
दोपहर दो बजे का समय था। मैं बर्तन साफ कर रही थी कि तभी दरवाजे पर घण्टी बजी। हाथ धोकर मैंने दरवाजा खोला तो गौर वर्ण की सुंदर सी महिला खड़ी हुई थी। "नमस्ते आंटी जी।" उसकी नमस्ते का जबाब देते हुए मैंने एक पल में अपने दिमाग की सारी बत्तियां जला डालीं लेकिन मुझे उस महिला का परिचय नहीं मिला। इससे पहले कि क्षमा मांगकर मैं उसका परिचय पूछती वह साधिकार दरवाजे से अंदर आ गई और बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ गई।
मैंने असमंजस में उसकी तरफ देखा तो उसने अपनी मोहक मुस्कान के साथ मोतियों सी दंत पंक्ति की झलक देते हुए कहा,
"आंटी, मैंने सुना है कि आपको बाई की जरूरत है इसलिए मैं आ गई। अब आप बिलकुल निश्चिन्त हो जाइए। मैं सब सम्भाल लूंगी।"
मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। करीने से बंधी साफ सुथरी पिनअप की हुई साड़ी, नाखुनों पर नेलपेंट, माथे पर झूलती फिल्मी अदाकारा की तरह एक लट और बोलने में भी नफ़ासत।" तुम घर मे काम करती हो !", कुछ अविश्वाश से और कुछ हैरानी से उसे देखते हुए मैंने पूछा।" कर पाओगी तुम ?"
" अरे आंटी, रानी कब से कर रही है।" वह खिलखिला उठी।
"रानी मेरा नाम है। तो कल से आ जाऊं?"
काम और पगार तय कर रानी अगले दिन से आने का वादा कर चली गई। मैं भी खुश थी कि चलो एक बाई मिली।
अगले दिन से रानी ने आकर काम करना शुरू किया। झाड़ू लगाते हुए हँसती- मुस्कुराती अपनी मीठी आवाज में वह मुझसे बात भी करती जा रही थी साथ ही तिरछी चितवन से खुले दरवाजे से बाहर निगाह भी डालती जाती थी। उसकी निगाह का पीछा करते हुए मेरी निगाह बाहर गई तो देखा मोहल्ले के 5-6 लड़के सामने चबूतरे पर बैठे हैं। मुझे अपनी ओर देखता पा कर उन लड़कों ने तपाक से नमस्ते की और पास आकर बोले, "आंटी जी कोई काम हो तो हमें बता दिया करें। आपको और अंकल को परेशान होने की जरूरत नहीं।" इससे पहले की मैं उनको धन्यवाद कह पाती कि तभी रानी कमर में पल्ला खोंसे हुए बलखाती हुई झाड़ू लगाती आई और मुस्कुरा कर धूल-कचरा लड़कों की तरफ उछाल दिया।" रानी कचरा डस्टबिन में डालो ऐसे नहीं।", हमने रानी को इतना कहा ही था कि वे समवेत स्वर में बोल उठे, "अरे कोई बात नहीं है आंटी।"
" हाँ बेटा, ठीक है कोई बात नहीं है मगर यह कचरा तो फिर दरवाजे पर ही पड़ा रहेगा न।", उन लड़कों की बातों पर क्रोध के स्थान पर मुझे हँसी आ रही थी।
उसके बाद तो यह नित्यकर्म हो गया। जिस वक्त रानी आती तभी ये लड़के भी आते और उसे निहारते रहते। ये भी कमाल हो गया था कि पहले जब मैं किसी काम में मदद के लिए उनको आवाज देती थी तब वे अनसुना कर देते थे मगर अब बिना कहे ही वे छोटे मोटे कामों में मदद के लिए आने लगे थे।
रानी हमारे दूधवाले से ही अपने घर के लिए भी दूध ले जाती थी। ठीक दस बजे उसका डब्बा दूध के लिए आ जाता था। उसके डब्बे को मुझे फ्रिज में रखना होता था क्योंकि रानी काम से लौटते हुए 2 बजे उस डब्बे को लेकर जाती थी। एक तारीख को ही पैसे के लिए शोर मचाने वाले हमारे दूधवाले ने जब रानी से पैसे मांगे तो वह आंखें मटका कर बोली, "अगले महीने ले लेना, इस महीने नहीं दे सकती।" आश्चर्य कि वह मुस्कुरा कर ठीक है कहकर चला गया।
रानी के आने से मेरे घर में चहल- पहल बढ़ गई थी। मैं सब समझ रही थी लेकिन मुझे बाई की जरूरत थी इसलिए चुप थी। अब तक तो वह काम ठीक से अच्छा ही कर रही थी लेकिन महीना भर बीतने के बाद उसके स्वभाव में परिवर्तन दिखना शुरू हो गया। वह पगार बढ़ाने की बात करने लगी। मैंने उसे समझाया कि अभी तो तुझे महीना भर ही हुआ है। साल भर बाद पगार बढ़ाते हैं। बड़ी मुश्किल से बात उसकी समझ मे आई। लेकिन अब वह हर काम मे अहसान सा दिखाने लगी थी। उसकी साड़ी के साफ रहने की चिंता उसे बर्तनों और घर से ज्यादा थी।
रानी की समय की पाबंदी भी बढ़ने लगी थी भले ही वह 9:30तक आए या 10 बजे लेकिन ग्यारह बजते ही वह घड़ी की ओर इशारा कर चली जाती थी। इस कारण कभी पोंछा गोल तो कभी आधे बर्तन साफ करने छोड़ जाती थी यह कहकर कि अब शाम को कर दूंगी। उसकी छुट्टियों में भी इजाफ़ा होने लगा था और इस कारण मेरे साथ-साथ मोहल्ले के लड़के और दूधवाला भी परेशान होने लगे थे।
अब मुझे खिसिआहट होने लगी थी रानी से। एक दिन रानी ने आते ही कहा, "आंटी मेरे आने के समय तेल मत गर्म किया करो, मुझे खांसी होने लगती है।"
" तू अपने घर मे काम नहीं करती क्या।" ,पकोड़े उतारते हुए मैने चिढ़ कर उससे कहा।
"न मैं प्याज काटती हूँ, न ही सब्जी छोंकती हूँ। ये सब काम मेरा आदमी करता है।", मैं लाजबाव सी खड़ी रह गई।
इसके बाद कुछ दिन की छुट्टी लेकर जब वह आई तो मैंने उसे नाश्ते के साथ चाय दी। "आंटी, मैंने चाय पीना छोड़ दिया है, अब मैं कॉफी पीती हूँ। वही बनाया करो मेरे लिए।", गर्व से भरे आदेशात्मक स्वर में उसने मुझसे कहा।
" मगर मुझे और अंकल को कॉफी नहीं पसंद इसलिए हम अपने घर में नहीं रखते।", इस बार मैं चुप नहीं रही और "अपने घर" शब्द पर थोड़ा जोर डाल कर मैंने उससे कह दिया। यह सुनकर वह फिस्स से हँस पड़ी और बोली," तो मेरे लिए रखना शुरु कर दो।"
इधर कुछ समय से उसे फिनायल से भी एलर्जी होने लगी है और वह लाइजोल की मांग करने लगी है। ब्यूटी पार्लर के साथ बुटीक के शौक से भरी अपनी 2 माह की पगार मुझसे एडवांस ले चुकी है। उसके जलवों से मोहल्ले के लड़कों और दूधवाले के साथ अब मैं भी "उफ्फ़" करने लगी हूँ और सोचती हूँ कि किस घड़ी में इसे रखा था। जब तक कोई और बाई नहीं मिलती तब तक तो इसे झेलना ही है। क्या आपकी निगाह में कोई बाई है, तो कृपया मेरे पास भेज दीजिये।