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परिणति

परिणति

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'अरी छुटकी हमरी मुनिया को शहर लैजाओ अबकी बार। इहां गाँव में कउनौ पढ़ाई-लिखाई का इंतजाम ना है। बेबी बिटिया के साथ ऊ भी थोड़ा पढ-लिख लेइ, हमरी तरह गंवार ना रहीं।'

'ठीक है भाभी हम लेकर जायेंगे मैना को शहर वहाँ अच्छे स्कूल में दाखिला करवा देंगे।'

इस तरह मैना गाँव व अपनी माँ को छोड़कर चाची के साथ शहर आ गई।कुछ दिन ठीक चलता रहा। किन्तु जो सोचा होता है वो क्या कभी हो सकता है ? विधाता क्या सबका भाग्य एक जैसा ही लिखता है ?

शुरू में मैना को थोड़ा बहुत पढाया गया और साथ ही में घर के कामकाज में हाथ बटाने के लिए भी हिदायत दे दी गई कि 'केवल पढ़ने से ही क्या होगा ? कुछ काम भी सीखना होता है लड़की जात कल को ससुराल जायेगी तो कुछ सीखा ही तो काम आयेगा, नहीं तो लोग कहेंगे चाची के पास रही इतना भी न सीख पाई।' कभी-कभी मैना कह देती 'चाची बेबी भी तो लड़की है उसे भी तो घर का काम आना चाहिए।ट इस पर कहा जाता टबेबी तो पढने में तेज है वो डाक्टर बनेगी तुम्हारी तरह ढपोर नहीट मैना यह सुनकर चुपचाप काम में लगे जाती।

एक दिन घर में पार्टी का आयोजन था। कुछ मेहमान आए हुए थे। मैना को दौड़-दौड़ कर काम करते देख चाची की सखियों ने कहा अरे चारू कहा से पकड़ लाई हो ऐसी होशियार कामवाली ? इस पर चाची ने कहा अरे भई पिछली बार गाँव गई थी तब इन लोगों के घर की खराब हालत देख कर दया रख कर ले आई, सोचा दो रोटी खा लिया करेगी और काम कर दिया करेगी। चूँकि पार्टी का आयोजन चारू के पति के प्रमोशन के उपलक्ष में किया गया था जो कि एक बहुत बड़ी कम्पनी में काम करते थे। तथाअच्छे पद पर पदोन्नति हुई थी, तो कम्पनी के बड़े अधिकारी वर्ग, मालिक तथा कुछ स्थानीय नेता आदि भी आए हुए थे। उनमें से नेताजी की नजर मैना पर पड़ गई, मैना को अभी चौदह पूरा कर पंद्रहवा लगा था, मैना वैसे भी खूबसूरत थी और कैशोर्य अवस्था से नवयौवना होने की शुरुआत थी। अतः खिले गुलाब की तरह लगती थी। नेताजी ने अपने नजदीक खड़े चारू के पति की तरफ मुखातिब होकर कहा, टअरे नरेश ये गुलाब किस बगिया से लेकर आए हो ?ट यह सुनकर नरेश सकपका गया चूंकि। मैना नरेश के अपने भाई की बेटी थी सो उसे यह सुनकर अच्छा नहीं लगा। किन्तु एक अंजाने डर से घिर गया। उसने चारू से कहा कि मुनिया को तुरंत अंदर भेजो और सख्त हिदायत दो कि वो कमरे से बाहर न निकले। चारू कहने लगी आखिर हुआ क्या है तो नरेश ने कहा यह बात बाद में हो जाएगी।

इस तरह पार्टी समाप्त होने के बाद मेहमान चले गए किन्तु नरेश को नींद नहीं आ रही थी उसे आने वाले खतरे का अंदाजा लग गया था।चारू के ज्यादा पूछने पर उसने अपनी चिंता बताई किन्तु चारू को इससे खास फर्क नहीं पड़ा। अगले दिन जब नरेश ऑफिस गया तो कम्पनी के मालिक ने नरेश को अपने कैबिन मैं आने के लिए बुलावा भेजा। कम्पनी मालिक सेठ राधेश्याम ने जो कहा वह सुनकर नरेश बोला सर ऐसे कैसे हो सकता है आखिर वो मेरी भतीजी है , किन्तु राधेश्याम बोले 'सोचलो यदि यह नहीं हुआ तो नेताजी न तो मेरी कम्पनी रहने देंगे न तुम्हारी नौकरी और कम्पनी के नाम जो घोटाले हुए है वे उजागर हो जाएंगे फिर जेल की हवा खानी पड़ेगी जो अलग और साथ में तुम जो भ्रष्टाचार में शामिल होकर कम्पनी का मुनाफा करवाया उस एवज में तुमने प्रमोशन पाया तथा गाड़ी बंगले के मालिक हो, वो एक ही दिन में सड़क पर आ जाएगा। इसलिए समझदारी से काम लो एक ही रात की बात है लड़की को नशे का इंजेक्शन दे दिया जाएगा उसे होश होते हुए भी कुछ मालूम नहीं चलेगा।'

घर आकर नरेश सोचने लगा कि यदि समझौता नहीं किया तो सब कुछ मिट्टी में मिल जाएगा। जो शानो-शौकत इतने बरसों में कमाई है सब खत्म हो जाएगा। इस विषय पर चारू से बात की तो उसने जरा देर भी नहीं सोचा उसने इतना भी महसूस नहीं किया कि कल को यदि उसकी बेटी के साथ ऐसा घट सकता है। उसने अपने पति को उत्साहित किया कि जरा से समझौते से हमारा सब कुछ बच सकता है तो इसमें हर्ज ही क्या है।

इस तरह निर्धारित समय पर रात को नेताजी की गाड़ी आकर रुक गई। मुनिया बेचारी क्या जानती उसे कोई बहाना बना कर तैयार किया गया और गाड़ी में बैठा दिया गया। पांच-छह घंटे बाद जब गाड़ी वापस नरेश के गेट पर आई और हॉर्न बजने पर दोनो पति-पत्नी बाहर आए तो जो देखा तो जड़ हो गए दोनो सिर पकड़ कर बैठ गए। है भगवान् ये हमने क्या कर दिया क्योंकि गाड़ी से मुनिया नहीं बेबी थी। जिसे ड्राइवर उठाकर ला रहा था। ईश्वर कभी-कभी ऐसा ही न्याय कर देता है जो दूसरे का जीवन नर्क बनाता है। उसे उसी के बनाए नर्क में झोंक देता है।

बेबी तो चलती-फिरती लाश बन चुकी थी। पूरी बात मुनिया से मालूम हुई, उसने कहा कि मैं गाड़ी में जा रही थी किन्तु गेट के बाहर निकलते ही बेबी ने कहा कि तुम घर जाओ। नेताजी के घर तो मैं जाऊंगी। उनकी बेटी मेरी सहेली है मैं यह सामान जो पापा ने भेजा है नेताजी को मैं दे दूँगी। इस तरह मैं अपने कमरे में वापस चली गई और सोचा कि आपको सुबह बता दूंगी। मुनिया बेचारी पूछती रह गई चाची बेबी को क्या हुआ ?

आखिर नरेश व चारू अपना सब लुटवा-पिटवा कर वापस मुनिया व बेबी को लेकर सदा के लिए गाँव चले गए।


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