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जौहरी

जौहरी

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"भैया जल्दी से यह दवाई दे दीजिये, रिक्शे वाला खड़ा है। "रूही ने हड़बडाते हुये कहा।

"जी अभी देता हूँ ।"कैमिस्ट ने दवाई पैकेट से निकालते हुये कहा।

"भैया मेरी बारी कब आएगी?" पीछे से आई तेज आवाज सुनकर, रूही मुढ़ कर देखने लगी।

"अरे तुम !"रूही ने आश्चर्य से कहा।

"जी ...!"उस अजनबी महिला ने आश्चर्य से पूछा।

"अरे भूल गयी मुझे ...मैँ रूही ...!"

"रूही !अच्छा वो दासपुर वाली न ...!"

"हाँ और बता इति तू कैसी है ?"

"अच्छी हूँ "

"इसी शहर में है क्या ?"

"नहीं मैं तो चंडीगढ़ में ही रहती हूँ ...बस माँ !"

"माँ कौन सी माँ ?"

"अरे ...कितनी माँ हैं मेरी तू भी न ?"

"पर तू तो ...!"

"हाँ रूही वही माँ जिनको लेकर मेरे मन में कितनी घृणा थी। आज उन्ही की बदौलत मेरा वजूद है। नहीं तो मैँ तो अंधेरे के गर्त में ही धँसी जा रही थी। सहारा बन कर संभाल लिया मुझे ,नहीं तो आज मैं भी अंधेरो में भटक रही होती ।"इति ने भावुक होते हुए कहा ।

"खैर अच्छा हुआ। जब जागो तभी सवेरा। आंटी हैं कौन से हॉस्पिटल में ...?"

"सिटी हॉस्पिटल में। सच माँ ने मेरे लिए बहुत कुछ किया। मैं तो कुएं की मिट्टी थी माँ ने तराश कर हीरा बना दिया।

"चल शाम को मैं भी आती हूँ आंटी से मिलने।"

"ठीक है।"कहकर इति अपने रास्ते चली गयी। रूही रिक्शे में आकर बैठ गयी।

रूही रास्ते भर सोचती रही इति के बारे में गांव के स्कूल में साथ साथ पढ़तीं थीं इति और रूहि। हालांकि दोनो के घर दूर दूर थे फिर भी एक बार दिन में रूही इति के घर जाती जरूर थी।

इति की मम्मी बचपन में ही जब वह मात्र सात महीने की थी गुजर चुकी थीं। दादा और पापा ने ही पाला था चारों भाई बहनो को। कोई ज्यादा ध्यान नहीं देता था इसलिए मन माने तरीके से रहते थे चारों। पैसे चुराना इधर उधर घूमना यही काम था चारों का। एक दिन इति ने बताया कि उसके पापा दूसरी मम्मी ले आये और साथ में एक बच्चा भी है। फिर तो रोज की कहानी हो गयी। इति रोज माँ की बुराई करती कि हर वक्त रोक टोक लगाती रहतीं हैं। हालांकि अब इति साफ सुथरी होकर स्कूल आने लगी थी। फिर भी सौतेली माँ की बुराई करना तो जैसे उसने अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझ लिया था। सभी बच्चे पढ़ने लगे थे। इति भी समय से विद्यालय आ जाती फिर वो लोग शहर चले गए। एक दिन इति का ख़त मिला रूही को कि नाइंथ क्लास में शहर के स्कूल में एडमिशन करा दिया है। उसके बाद कोई बात नहीं हुई और आज जब हुई तो इति को इतना कामयाब और खुश देखकर बहुत खुशी हुई। बरबस ही रूही के होठों पर मुस्कान आ गयी। अगर सभी अपने अपने कर्तव्यों को आत्मा से निभायें , वही रिश्ते असल में सफल होते हैं। सगे और सौतेले नहीं। अचानक रिक्शे वाले ने रिक्शा रोका तब रूही वर्तमान में लौटी और पैसे देकर अपने घर की ओर बढ़ गयी।


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