श्यामली
श्यामली
सर्द हवा का झोंका उसकी अधपकी जुल्फों से टकरा कर उसके चेहरे पर बिखर गया और श्यामली ने अपने आपको शाल से लपेट लिया और खुशनुमा मौसम को निहारने लगी, पहाड़ों पर शाम ज़रा जल्दी ही गहरा जाती हैI देखते ही देखते पूरा मसूरी अंधेरे के आगोश में समां गया और बिजली की रौशनी से सारा शहर जगमगाने लगा। डॉ गुप्ता के हॉस्पिटल में एक काउंसलर थी, “श्यामली सेन,
उसने अच्छी ख्याति बटोरी थी अपने काम में।
चालीस पार कर चुकी श्यामली को मसूरी बेहद पसंद थाI
“विश्वास” के साथ पंद्रह साल का वैवाहिक जीवन रहा, पर संतान की प्राप्ति न हुयी थी।
विश्वास को एक बड़ा ऑफर मिला और उसे जापान जाना पड़ा, श्यामली को अपना देश और मसूरी दोनों ही नहीं छोड़ने थे, इसलिए आपसी सहमति से दोनों अलग हो गए, और अपना-अपना जीवन अपने हिसाब से जीने लगेश्यामली थी तो मनोविज्ञान की विद्यार्थी पर हिंदी साहित्य में विशेष रूचि रही उसकी अंग्रेजी साहित्य भी पसंद था।
पर हिंदी के लेखकों और कवियों की तो वो मुरीद थी।
बहुत ज़्यादा लोगो से मिलना या बहुत सारे दोस्त बनाना उसे कोई खास पसंद भी ना था।
वो अपने एकाकी पलों में क़िताबें पढ़ना और संगीत सुनना पसंद करती और बहुत खुशनुमा मूड में उसे पंजाबी छोले-भटूरे खाना बहुत पसंद था।जो उसकी काम वाली “जस्सी” बहुत ही स्वादिष्ट बनाती थी।
एक छोटा सा फ्लैट था श्यामली का, जो विश्वास उसी के नाम पर कर गया था। उसके ऊपर के दो कमरे खाली ही रहते थे।
एक दिन डॉक्टर गुप्ता के कहने पर उसने कमरा किराये पर देने के लिए एक इश्तहार पेपर में दे दिया।
सुबह नौ बजे ही डोर बेल बजी, तो श्यामली ने जस्सी से कहा।
“ये इतवार के दिन इतनी सुबह कौन है ? देख तो जरा !”
जस्सी ने आकर बताया,
“कोई लड़का है, आपसे मिलना चाहता है, कह रहा है कमरा किराये पर लेना है।”“अरे हाँ ! वो मैंने इश्तहार तो दिया था, कह दे जा के बारह बजे के बाद आ कर मिले।”
कह कर श्यामली ने पेपर पर अपनी नज़रे टिका दी, और ताज़ा समाचारों से रूबरू होने लगीतभी जस्सी की तेज़ आवाज़ उसके कानो में पड़ “कहा ना, अभी मेम साब नहीं मिल सकती”
दूसरी आवाज़ उतनी ही विनती भरी थी।“प्लीज ! आप एक बार मिलवा दो, मैं बस बात कर के चला जाऊंगा”I जस्सी और उस नयी आवाज़ की चक-चक सुन श्यामली स्वयं ही गैलरी में आ बोली
“आप बारह बजे के बाद आ जाइए, तब मै बात करती हूँ।”
अपने सामान के साथ खड़ा वो सत्ताईस-अट्ठाइस साल का लड़का श्यामली से मिन्नतें करने लगा“प्लीज ! आप अभी दे दो मुझे टाइम।”
पता नहीं क्या सोच कर श्यामली ओवरकोट पहन कर ड्राइंग रूम में आ गयी और जस्सी से बोली।
“आने दो उसको।”
“हेल्लो मैम ! मैं नवीन, नवीन नाम है मेरा, और मैं नीचे देहरादून से आया हूँ, मुझे फ़ोटोग्राफ़ी का शौक है, और उस से जुड़े कोर्स को पूरा करने के लिए मैं मसूरी आया हूँ।मुझे दो-तीन महीने के लिए कमरा चाहिए, आप चाहे तो यह मेरा एड्रेस है। आप यहाँ से कन्फर्म करा सकती हैं। आपका रेंट भी मै समय पर दे दिया करूँगा।
वो सब फटाफट बोले जा रहा था, उसकी रफ़्तार को देख कर श्यामली बोल ही पड़ी।“किसी जल्दी में हैं आप ?”
“जी !”
कह कर, वो श्यामली के चेहरे को देखने लगा।
एक बार में ही श्यामली का आकर्षक व्यक्तित्व नवीन के मन को सहला गया, खींच कर बांधे हुए उसके अधपके बाल, उसके सांवले गोल चेहरे को और भी दमका रहे थे।वह फिर बोला।
“मैम !, मेरा पूरा ग्रुप है, वो आगे किसी होटल में रुकने के लिए गया है, उनका एक हफ्ते का कोर्स है, पर मै यहाँ दो-तीन महीने रुकना चाहता हूँ।
“पहाड़ों की रानी” को बहुत करीब से देखना चाहता हूँ, तो मैं होटल कैसे अफ्फोर्ड कर सकता हूँ ? मुझे अपना इन्तज़ाम करके उन लोगो का साथ भी पकड़ना है, इसी लिए थोडा सा जल्दी में हूँI” नवीन से बात कर श्यामली को लगा, दो-तीन महीने का ही किरायेदार है।
कोई खास झंझट भी नही है, अकेला इंसान है। इसलिए ज़्यादा न सोचते हुए, उसने कहा।
“ठीक है, पर कुछ कागज़ी कार्यवाही है, जो पूरी करनी पड़ेगी।“मैम, मै सब कर दूँगा पर वापस आकरI अभी बस आप मेरा सामान रखवा लीजिए, मैं वापस आकर आपसे मिलता हूँ। ये मेरा नंबर और परिवार के डिटेल्स हैं और ये रही मेरे आधार कार्ड की कॉपी, अभी मैं जल्दी में हूँ।”
कहते हुए सब कुछ टेबल पर रख और अपना समान कोने लगा वह तेज़ी से बहार निकल गया।श्यामली को उसका तरीका कुछ अजीब लगा बहुत सोच-विचार के हर काम करने वाली श्यामली को नवीन की यह रफ़्तार समझ न आई उसने फैसला किया शाम को जब नवीन आयेगा तो वो साफ़ मना कर देगी उसे कमरा किराये पर देना ही नहीं है।
अलसाया इतवार अपने ही तरीके से ढल गया, और श्यामली की प्यारी संध्या का वक़्त आ गया और वह अपनी कॉफी की प्याली के साथ अपनी गैलरी में बैठ “हेमंत दा” के गाने सुनने लगी और ढलते सूरज की लालिमा को धीरे- धीरे घने बादलों की गोद में समाते देख, कुछ अनमयस्क सी हो गयी। रात के नौ बज गए पर अभी तक नवीन का पता नहीं था।
टाइम की पाबंद श्यामली सोने का मन बना कर अपने कमरे में जाते हुए जस्सी से बोली।
“वो लड़का आये तो उसे मन कर देना हमें नहीं देना रूम,”फिर ठिठक के बोली।
“अच्छा ! आज रात के लिए उसे गेस्ट रूम दे देना सुबह मना कर देंगे रात को कहाँ जाएगा वह।”
श्यामली गाउन पहन “शरद चंद्र” का उपन्यास ले कर उसके पन्ने पलटने लगी। और दस बजते-बजते वो उनीदी सी हो कर करवट बदल कर सो गयी।
सुबह-सुबह श्यामली को ब्लैक कॉफ़ी पीने की आदत थी। ये आदत वो तब भी न बदल पाई थी, जब विश्वास और वह साथ थे।
वो ग्रीन टी पीना पसंद करता था और वह ब्लैक कॉफी ही पीती थी।
कहती भी की पूरे दिन का मूड बन जाता है ब्लैक कॉफ़ी से, विश्वास बस मुस्कुरा देता।
सच तो यह था की उन दोनों के जीवन में कोई वाद-विवाद था ही नहीं, दोनों अपनी-अपनी ज़िंदगी अपने-अपने हिसाब से एक ही छत के नीचे जी रहे थे।
श्यामली किसी बात पर कोई मत रखती तो विश्वास कहता।
“ये तुम्हारे “पॉइंट ऑफ़ व्यू” से ठीक है, तो तुम देख लोI”बात वही खत्म हो जाती और यही तब होता जब विश्वास कुछ कहता। तो इसीलिए संबंधों में कहीं कोई कटुता थी ही नही, पर मधुरता भी सूखी खांड सी हो गयी थी।
साथ-साथ होते हुए भी दोनों एक दूसरे के साथ नही थे।
और जब विश्वास को जापान जाने का ऑफर मिला तो राहें भी अलग-अलग हो गयीI
श्यामली आज भी अपनी ब्लैक कॉफी का मग ले कर गैलरी में बैठ पेपर पलट रही थी कि तभी उसे लगा जैसे कोई है जो उसकी बिगुन बलिया के झाड़ के पीछे झुरमुट में कुछ कर रहा है।
“कौन है वहाँ ?”
तेज आवाज़ देकर वह उधर ही तीक्ष्ण दृष्टि से देखने लगी।
तभी झाड़ियों के बीच से नवीन अपने कैमरे के साथ बाहर आया और बोला। “गुड मोर्निंग ! मैंम, आपकी तेज़ आवाज़ ने मेरा आखिरी शूट ख़राब कर दिया।
देखिये मैंने गिरगिट के रंग बदलते हुए कितने पिक्चर निकाले हैं पर, आपकी आवाज़ से आखिरी वाली पिक्चर हिल गयी और सारी मेहनत पर पानी फिर गयाI”श्यामली कुछ कहती, उस से पहले ही वो बोल पड़ा।
““मैंम एक कप चाय मिल सकती है क्या ? मै इसी समय सारे पेपर साइन कर दूँगा और आपके साथ चाय भी पी लूँगा।”
कहते हुए वह सीढ़ियों की तरफ बढ़ने को हुआ कि श्यामली ने कहा“तुम ड्राइंग रूम में रूको, मै जस्सी से चाय और पेपर भिजवाती हूँ”, नवीन के बेपरवाही से बढ़ते हुए कदम थम गए और एक क्षण में ही उसने अपना रुख सीढ़ियों से मोड़ कर ड्राइंग रूम की तरफ कर लिया और फिर तेज़ी से सीढ़ियां चढ़ता हुआ आधे जीने को पार कर बोल“वो मैंम, मै आपको अपना आज का फोटो शूट तो दिखा दूँ और उसने कैमरा सीढ़ियों से ही श्यामली कि तरफ बढ़ा दिया।”ऐसी बेतकल्लुफ के व्यवहार की आदत नहीं थी श्यामली को तो उसने आँखों को सिकोड़ते हुए नवीन को देखा अब नवीन को लगा की शायद उससे कहीं कोई गलती हो गयी है तो वह
“सॉरी”
बोल कर वापस सीढ़ियां उतरने लगा।
थोड़ी देर में जस्सी चाय और पेपर लेकर नवीन के पास गयी बोली, “तुम्हारा रूम पीछे से ऊपर वाला है, उसकी सीढ़ियां भी पीछे से ही हैं, तुम वहां जा कर अपना सब देख लो और हाँ मैडम जी ने तुम्हारा कैमरा भी मंगवाया है।”नवीन के गोर चिट्टे पहाड़ी चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी, और उसने जस्सी को पेपर बिना शर्त को पढ़े ही साइन करके दे दिए और साथ ही कैमरा भी और जल्दी से कमरे में जा अपना समान सेट करने लगा। जस्सी कैमरा और पेपर ले कर श्यामली के रूम में गयी और बोली, “मेम साहब, आप तो रूम देने को मना कर रहे थे, फिर ?”
श्यामली ने कैमरे में कैद तस्वीरों को सर-सरी नज़रों से देख, कैमरा जस्सी को पकडाते हुए कहा।
“वो...कुछ नहीं, देखते हैंI”
अगले दिन सुबह श्यामली हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार हो अपनी कार निकाल ही रही थी कि तभी नवीन नीचे आ कर बोला।
“वो मैंम, यहाँ से माल रोड जाने के लिए क्या कन्वेंस मिलेगा ?”, श्यामली ने उसे बहुत ही थोड़े शब्दों में रास्ता बताया और अपनी कार स्टार्ट कर चली गयीI श्यामली का पूरा दिन ही थकान भरा था, आज कई काउन्सलिंग लगी थी।
वह पूरा दिन व्यस्त रही और शाम को थकी-हारी घर वापस आ अपने दिन भर के मैसेज और मेल्स चेक करने लगी कि डोर बेल दो-तीन बार एक-साथ बजी।
इस तरह की हरकत से वह चौक गई और जस्सी तेज़ी से डोर की तरफ बढ़ीडोर खोलते ही देखा, नवीन के कान पर मोबाइल और ऊँगली अभी भी कॉल बेल पर ही थी।
वह बड़े ही बेतकल्लुफी से बोला। “जस्सी दी !, एक बोतल पानी दे दो, वो मैं नीचे से पानी की बोतल लाना भूल गया और अभी मेरे पास पीने को पानी नहीं है।”
जस्सी का सारा गुस्सा तो “जस्सी दी” सुन कर ही काफूर हो गया था, पर उसे पता था कि श्यामली का क्रोध तो ज़रूर बढ़ा होगा इसलिए वह बोली।“कॉल बेल एक बार ही बजाया कर, बच्चे !”
“ओह सॉरी ! जस्सी दी मेरी यह आदत है, घर पर भी डांट पड़ती थीI” पानी ले वह वापस जाने लगा फिर मुड़ कर श्यामली की ओर मुखतिब हो कर बोला।“मैम आपको मेरी फ़ोटोग्राफ़ी कैसी लगी आपने बताया नहीं ?”
“ हाँ अच्छी है।”
कह कर श्यामली ने अपनी नज़र फ़ोन पर टिका दी। वह पहले थोडा आगे बढ़ा और फिर पीछे की तरफ आकर बोल“ गुड नाइट मैम।”
प्रित्युत्तर में श्यामली ने भी उसको देखते हुए।
“गुड नाइट”
बोल दिया
धीरे-धीरे एक महीना नवीन की छिटपुट हरकतों के साथ बीत गया। श्यामली को उसकी हरकत अजीब तो लगती पर वह नवीन को कुछ कह न पातीI
ऐसी ही एक बारिश भरी सुबह जब श्यामली अपने हॉस्पिटल जाने के लिए निकली तो नवीन भी कैमरे और बैग के साथ तेजी से उतरता हुआ बोला।
“श्यामली मैम ! क्या आप मुझे ड्राप कर देंगी ? बारिश तेज़ है और मेरा कैमरा भीग जायेगाI”श्यामली ने अपनीं बड़ी-बड़ी आँखों से कार में बैठने का इशारा किया।
अब नवीन और श्यामली एक साथ रास्ता तय कर रहे थे।
श्यामली की पसंद का मधुर संगीत गाड़ी में बहुत ही धीमी आवाज़ में बज रहा था। और नवीन बोले जा रहा था “आपको संगीत का शौक है ?”
“ हूँ ! किसे नहीं होता ?”
श्यामली बोली। नवीन ने कहा।
“नहीं ! बहुत से लोगों को नहीं होता।”
श्यामली बोली।
“नहीं, ऐसा नहीं है, धीमा, तेज़ या शोर से भरा या फिर क्लासिकल, नहीं तो भक्ति संगीत कुछ न कुछ सबको ही पसंद होता ही हैI” नवीन ने फिर जिरह करते हुए कहा।
“मैं ऐसे कई लोगों से आपको आपसे मिलवा सकता हूँ, जिन्हें संगीत नहीं पसंद”I
श्यामली ने कहा।
“मैं सायकॉलिजस्ट हूँ, और मुझे पता है संगीत मन को कितनी राहत देता हैI”,
नवीन ने फिर प्रत्युत्तर में कहा।
“आप एक ही तरह के लोगों से मिलती हैं, या यूँ कहिए की बीमार लोगो से मिलती हैं, तभी आपको नहीं पता, पर ऐसा है की कई लोग संगीत सुनना पसंद नहीं करते।”
कहते-कहते नवीन का स्टॉप आ गया औरवह
“थैक्स”
बोल कर गाड़ी से उतर गया और फिर गाड़ी का शीशा नॉक कर के बोला“क्या, आप ! मुझसे दोस्ती करेंगी ?”
श्यामली उसकी बेबाकी पर उसे निहारने लगी फिर एक हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर आयी और वह बोली।
“मेरी और तुम्हारी उम्र में बहुत फर्क है।”
और गाड़ी आगे बढ़ा दीआज श्यामली ने खुद को कुछ ज़्यादा ही फ्रेश फील कर रही थी।
शाम को नवीन अपने उसी सवाल के साथ एक बार फिर श्यामली से मिला।
“आपने बताया नहीं, क्या आप मुझसे दोस्ती करेंगी ?”,
श्यामली ने कहा।
“कहा तो था, मेरी और तुम्हारी उम्र में बहुत फर्क है।”
“तो क्या आप उम्र से दोस्ती करती हैं ?”
यह प्रश्न नवीन ने श्यामली से किया तो श्यामली निरुत्तर सी हो गयी, फिर कुछ अचकचाते हुए बोली।
“वो बात नहीं पर...”,
“पर क्या ?”
नवीन ने बीच में ही टोंका।
“आप मुझे अच्छे लगते हो, मैं आपकी तस्वीरें लेना चाहता हूँ, ‘दैट्स इट’, अब आप बताओ, आपको मुझमें क्या कमी लगती है ?, जो हम दोस्त नहीं बन सकते ? दोस्ती के लिये हम उम्र होना जरूरी है, ये कहाँ लिखा है ?”
“पर विचार तो मिलने ही चहिये।”
श्यामली ने कहा।
“आप गलत सोचती हैं, अगर एक जैसी विचारधारा वाले दोस्त होते हैं, तो वहाँ एकरसता आ जाती है, जीवन का रोमांच ख़त्म हो जाता है।
हाँ में हाँ मिलाने से हमें एक दूसरे की जरूरत नहीं रह जाती, प्रगाढ़ता तो तब आती है जब विचारों का आदान-प्रदान हो और हर बात में न सही दूसरी-तीसरी बात में मत अलग हों” नवीन कहे जा रहा था और श्यामली सोचने लगी।
“ सच ही तो कह रहा है नवीन ! यही तो हुआ था उसके और विश्वास के रिश्ते में
एकरसता ही तो अ गयी थी। रोमांच था ही नहीं, वाद-विवाद तो बड़ी तो बहुत दूर की बात थी उत्तर-प्रत्युत्तर भी नहीं बचा था।“बाल इन योर कोर्ट” का डिसीजन दोनों ही तरफ होता था।
श्यामली बिना कुछ जवाब दिये अपने कमरे में चली गयीI
बारिश के बाद पहाड़ों की सुबह और भी खुशगवार हो जाती है।
श्यामली अपनी ब्लैक कॉफ़ी ले कर अपनी सुबह इंजॉय कर रही थी कि दो कपों में कड़क चाय ले कर नवीन आ गया और बोला। “दोस्ती न कबूल करिए, पर मेरी बनाई अदरक वाली चाय ज़रूर ट्राई करिए और हाँ ! अब ये मत कहियेगा की आप चाय नहीं पीती।”
“हाँ ! ये सच है, की मै चाय नहीं पीती.”
श्यामली बोल ही रही थी की नवीन ने उसके होंठो पर उंगली रख दी। एक अजीब सी सिहरन श्यामली ने महसूस की और चाह कर भी कुछ न बोली और पता नहीं किस जादुई चक्र में फँस चाय हाथ में लेकर पीने लगी।
तभी नवीन ने उसे अपने कैमरे में कैद कर लिया।
अब रोज़ का ही नियम सा हो गया था, कभी चाय तो कभी कॉफ़ी के दौर के साथ बहुत सारी बातों पे वाद-विवाद और हंसी-मज़ाक में वक़्त बीतने लगना चाहते हुए भी श्यामली को नवीन की दोस्ती कबूल हो गयी थीI श्यामली के शुष्क मन में एक अंकुर पल्लवित हो रहा था ख़ुशी का। अब लगभग हर सन्-डे ही छोले-भटूरे बनते और नवीन को भी परोसा जाता और नवीन दिल खोल के 'जस्सी दी' की पाक कला की तारीफ़ करता आज भी संध्या उतनी ही खुशगवार थी जितनी इन दिनों, श्यामली को हर वो लम्हा लगता था जो वह नवीन के साथ बताती थी।
तभी नवीन ने उसके कस के बंधे बालों से उसकी क्लिप खोल दी और लपेटी हुई शाल को हौले से उसके शाने से खींच लिया, और श्यामली ने उसे ये सब करने दिया क्यूँ ?
यह वह खुद भी नहीं समझ सकी, और नवीन ने उसके बिलकुल करीब जा कर उसके कानो में कहा।
“मुझे मेरी सबसे खूबसूरत तस्वीर शूट करने का ये मौका दे दो प्लीज़।”
और उसके सर्द हो रहे गालों पर अपनी गर्म हथेलियों से हल्का सा सहला दिया।
एक साथ कई पिक्चर श्यामली के खींच लिए।और फिर श्यामली के करीब जा कर कहा।
“आई एम इन लव विद यू !, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो ! !”
श्यामली ने नवीन को छिटकते हुये कहा।
“ये सब संभव नहीं, तुम सोच भी कैसे सकते हो ?”
“क्यूँ नहीं संभव, और मैं सोच नहीं रहा, मैं करता हूँ, आप भी मेरे अहसासों को जी रही हैं। पर अपनी शिक्षा और उन किताबों में लिखी बातों से बाहर नहीं आना चाह रहीं, जो आपको एक साईक्लोजिस्ट होने की वजह से पता हैंI
मुझे नहीं पता, आपकी वो किताबें और आपकी उम्र, बस मुझे ये पता है कि मैं....”
वह और बोलता इससे पहले हाई श्यामली ने उसके होंठो पर उंगली रख दी और कहने लगी।
“जी तो मै भी रही हूँ न उस अहसास को पर इनका कोई वजूद नहीं है।”
नवीन ने श्यामली को खुद में समेटते हुये कहा।
"वजूद तो उस रिश्ते का भी नहीं रहा, जो आपने पंद्रह साल जिया, तो क्यूँ न, हम आज को ही जी लें कल के लिए कल को क्यूँ सोचें।”
लोगों के दिल और दिमाग को पढ़ने वाली श्यामली का दिल और दिमाग शायद इस वक्त नवीन पढ़ रहा थाश्यामली ने खुद की हथेलियों को नवीन हथेलियों में बेफ़िक्री से सौंप दिया और हल्का सा रोमांच महसूस करने लगी सूखी हुई रेत पर पानी की कुछ बूँदे ठंढक देने को मचल उठी थी।
शायद वह भी आज को जी लेने को आतुर हो उठी थी।