कुत्ता चीज़
कुत्ता चीज़
कुत्ता चीज़
वो मेरे ठीक सामने बैठी थी। हम लगभग चार या पाँच साल के बाद मिल रहे थे। मैंने दो कप कॉफ़ी का ऑर्डर दिया और उसकी तरफ देखा। हालाँकि उसके होंठो पर मुस्कुराहट थी मगर,आँखें बोल रही थीं कि,भीतर कहीं गहरी उदासी दबी पड़ी है।
"कैसी हैँ आप?" मैंने धीरे से पूछा।
"ठीक ही हूँ" उसके जवाब मेँ जो दर्द था वो मैँ भाँप गया था। कहीँ न कहीँ मैँ भी उसके लिए जिम्मेदार तो था।
"शादी हो गयी?" मैंने झिझकते हुए पूछा।
"हाँ। देख नहीं रहे ये सिन्दूर?" उसने अपने सिर की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"ओह सॉरी ! मैंने ध्यान नहीं दिया।"मैं सकपकाते हुए बोला।
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद-
"कैसा चल रहा है?" मैंने कुछ सहानुभूति दर्शाते हुए पूछा।
"कुछ नहीं।सबका वही हाल है। दूसरी औरतों का चक्कर!" और उसने मेरी तरफ हिक़ारत भरी नज़रें फेरी।
मैँ थोड़ी देर चुप रहा।
"हाँ। आदमी है ही बड़ी कुत्ती चीज़।" मेरी आवाज़ मेँ निर्ल्लजता और अपराध-बोध दोनों का समावेश था जो उसे पसन्द नहीं आया।
"कुत्ती नहीं, कुत्ता चीज़! डोंट डिस्क्रिमिनेट सेक्स-वाइस" उसने तपाक से कहा और मेरी तरफ कुछ क्रोध से और कुछ नफ़रत से देखा।
"हाँ हाँ...कुत्ता चीज़।" मैंने उसकी हाँ मे हाँ मिलाई। मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे मुँह पर तमाचा जड़ दिया हो ,
और फिर वहाँ गहरा सन्नाटा छा गया।