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रानी पद्मावती का जौहर

रानी पद्मावती का जौहर

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इस विषय पर कुछ भी कहने से पहले हमें ये जानना होगा कि रानी पद्मिनी (या फिर उन्ही को रानी पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है, वो) कौन थी? इस बात को समझने के लिए हमे कई सारे ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करना होगा।

सबसे पहले तो ये बात सामने आती है कि रानी पद्मावती का को सा नाम सही है " पद्मिनी या पद्मावती "। ऐतिहासिक तथ्यों पर ध्यान दिया जाए तो हमे पता चलता है कि दोनों ही नाम महारानी पद्मावती के ही हैं। कुछ लेखक उन्हें पद्मिनी

कहते हैं और कुछ उन्हें पद्मावती के नाम से बुलाते हैं।

अगर "मलिक मुहम्मद जायसी" के ग्रन्थ "पद्मावत" की कथा को देखा जाए तो हमे पता चलता है कि -

रानी पद्मावती ( पद्मावत में उनका यही नाम वर्णित है) "सिंघल" राज्य के राजा "गन्धर्व सेन" की पुत्री थी। रानी पद्मावती के बारे में जायसी जी ने लिखा है कि रानी पद्मावती एक अद्वितीय सुंदरी थीं। इनके पास एक तोता था। रानी ने उस तोते के साथ ही सारे वेद और पुराणों का अध्ययन किया था। राजा "गन्धर्व सेन" को जब तोते के बारे में पता चला तो उन्होंने उस तोते को मारने का आदेश दिया। रानी का प्रिय तोता होने की वजह से उसे राज्य के बाहर निकाल कर छोड़ दिया गया ।जब वह तोता राज्य से बाहर निकलकर उड़ते उड़ते चित्तौड़ (राजस्थान ) पहुचता है ।तो वहां के एक शिकारी द्वारा पकड़ लिया जाता है। चित्तौड़ के राजा "रतनसेन" उस तोते के ज्ञान और विद्या से बहुत प्रसन्न होते हैं, और उसे अपने महल में रख लेते हैं।एक दिन उसी तोते के मुह से रानी पद्मावती की खूबसूरती के बारे में सुनते हैं और उनसे मन ही मन उनसे दिल लगा बैठते हैं।

अब इस दिल्लगी पर मैं अपनी तरफ से कुछ कहना चाहूंगा -

"दिल्लगी तो साये से ही होती है जनाब,

नैनों से तो सिर्फ हुस्न ही देखे जाते हैं।"

अब फिर से उस कहानी पर आते हैं। राजा "रतनसेन" रानी "पद्मावती" से इस कदर दिल लगा बैठते हैं कि महाराज एक जोगी बनकर सात समुन्दर पार चले जाते हैं और कई सालों के बाद उन्हें रानी पद्मावती के दीदार होते हैं।और तब जाकर वो महाराज "गन्धर्व सेन" से रानी "पद्मावती" कक हाथ मांगते हैं और उनसे विवाह करके उन्हें चित्तौड़ लेकर आते हैं।

महल में आने के बाद महल की परंपरा के अनुसार रानी पद्मावती की बुद्धि और विवेक की परख करने के लिए उन्हें भी राजगुरु "राघव चेतन" के पास ले जाया जाता है। "राघव चेतन " उनकी अद्वितीय बुद्धि और विवेक से आश्चर्यचकित रह जाते हैं।

रात को राजा "रतनसेन" और रानी "पद्मावती" आपस में बात कर रहे होते हैं और उसी समय पंडित "राघव चेतन" राजा के कक्ष के बाहर दिखाई पड़ते हैं। इस पर रानी बहुत क्रोधित होती हैं और "राघव चेतन" को देश निकाला दे देती हैं।

इस अपमान के बाद राघव चेतन जाकर दिल्ली के सम्राट "अल्लाउद्दीन खिलजी" से जा मिलता है और उनसे महारानी "पद्मावती" की अपूर्व सुंदरता का वर्णन करता है। अब अल्लाउद्दीन खिलजी को रानी को पाने की लालसा लग जाती है और इस वजह से वो चित्तोड़ पर आक्रमण कर देता है।

लेकिन अफसोस जब वो महल को जीतकर महल के अंदर प्रवेश करता है तो उसको राख के सिवा और कुछ भी नही मिलता।

अब कुछ लोग कहते हैं कि राजा "रतनसेन" के पराजित होने के बाद रानी " पद्मावती " ने जौहर किया था ताकि कोई और उन्हें छू भी न सके। परंतु कुछ का कहना है कि ऐसा कुछ इतिहास में वर्णित ही नही है।

अब कुछ इतिहासकारों जैसे "कर्नल टॉड" के लेखन से पता चलता है कि रानी पद्मावती का नाम कुछ और था और उन्होंने वास्तव में जौहर किया था। वही दूसरी तरफ देखा जाए तो एक इतिहासकार " गौरीशंकर हीराचंद ओझा " ने अपने ग्रंथ में लिखा है कि "इतिहासकारों के अभाव में "मलिक मुहम्मद जायसी" ने जो भी लिखा उसी को इतिहास में लिया गया।

अब इन मतों में देखा जाए तो दोनों ही अपनी अपनी जगह सही हैं। लेकिन हमें सही दिशा में कौन ले जाएगा इसका फैसला हम कैसे करें?

अब इस पर फिर से मैं कुछ अपने शब्द कहना चाहूंगा-

"वो मुसाफिर ही क्या जो बनी बनाई लीक पर चलना पसंद करता हो।

हमें तो सातवें आसमान तक का सफर तय करना है जनाब।"

मतलब हमे खुद से सोचना है कि ये कहानी केवल एक कथा है या फिर इसमें कुछ सच्चाई भी है।

सबसे पहले तो "पद्मावत" की तरफ रुख करते हैं । अगर हम " जायसी " की इस रचना को देखें तो हमे पता चलता है कि ये रचना कितनी सजीव है। मतलब पढ़ के ही पता जाएगा कि ये रचना एक ऐतिहासिक रचना ही है। इसमें कुछ भी मिलावट नही है। जिस हिसाब से "जायसी" साहब ने ये रचना लिखी है इसे पढ़ के ही समझ आ जायेगा कि रानी "पद्मावती" की कहानी बिल्कुल सच है।

अब हम चलते हैं एक इतिहासकार "कर्नल टॉड" के ग्रंथ की तरफ। यहां हमे पता चलता है कि कहानी तो कुछ ऐसी ही है बस नाम मे थोड़ा बहुत फर्क आता है। नाम तो हम सम्मिलित ही नही कर रहे हैं। हम यह सिर्फ ये प्रमाणित करना चाहते हैं कि ये कहानी सही है या नहीं। इस तरह यह भी हमे यही पता चलता है कि ये कहानी कुछ हद तक ऐतिहासिक तथ्यों पर निर्भर करती है।

अब हम रुख करते हैं कुछ ऐतिहासिक शिलालेखों पर जहा पर भी हमे रानी "पद्मावती" के बारे में कुछ न कुछ सुराग जरूर मिल जाते हैं। हम बात कर रहे हैं "बिरला मंदिर , नई दिल्ली" की जहां पर रानी "पद्मावती" के शिलालेख मौजूद हैं। अब अगर हम कहे कि रानी पद्मावती कोई था ही नही तब तो ये इतिहास के साथ नाइंसाफी होगी। दूसरी तरफ अगर हम कहे कि रानी "पद्मावती" का जौहर झूठ है तो "चित्तोड़" का वो जौहर वाला कुआँ जो अभी भी मौजूद है । वो फिर रानी "पद्मावती" का प्रमाण होगा।

उपर्युक्त सभी तथ्यों से अंततः यही निष्कर्ष निकलता है कि रानी " पद्मावती " का जौहर एक काल्पनिक घटना नही है । "रानी " पद्मावती " का जौहर एक ऐतिहासिक सत्य है" ।

इसे लेकर भले ही सभी मे मतभेद हो लेकिन एक न एक दिन सबको यही मानना होगा कि " रानी पद्मावती का जौहर एक ऐतिहासिक घटना ही है।"


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