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संघर्ष

संघर्ष

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डॉक्टर साहब..कैसे है अब बाबूजी ?..उनकी हालत में कुछ सुधार आया या नहीं ?

देखिये हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं है ! इसीलिए अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।

जब जब अमित डॉक्टर साहब की यह बात सुनता उसका दिल और बैठता जाता ! उम्मीद की किरण जगने से पहले ही बुझ जाती ऊपर से माँ के लगातार सवाल कि बाबूजी कब ठीक होंगे ? उसे अंदर से तोड़ कर रखते जा रहे थे।

डॉक्टर से बात करके जैसे ही अमित मुड़ा पीछे माँ को खड़ा पाया ! क्या हुआ अमित बेटा ? क्या कहा डॉक्टर ने ? बाबूजी ठीक तो हो जायेगे ना ? माँ की कँपकँपाती सी आवाज़ सुन कर अमित खुद को सँभालते हुए बोला, ”हाँ, माँ आप चिंता मत करो, वो ठीक हो रहे हैं जल्द ही हमारे साथ घर वापिस लौटेंगे।”

“तू क्या समझता है अमित बेटा कि मुझे समझ में नहीं आता। पिछले पंद्रह दिन पहले से तेरे बाऊजी वेंटिलेटर पर है इसका मतलब जानती हूं मैं कि नकली सांसें दी जा रही हैं उन्हें ! डॉक्टर रोज़ सुबह शाम आते हैं, बस एक ही बात कह कर चले जाते हैं ! मेरी बात मान,उन्हें घर ले चल..कुछ नहीं होगा इनसे ! बस अस्पताल के बिल बढ़ाने का तरीका है !..कहते कहते अमित की माँ के आंखों में आंसू आ गए व रोते हुए ऊपर वाले से उनके प्राणों की मुक्ति की गुहार लगाने लगी।

यह क्या कह रही हो माँ ! पिता है वो मेरे और तुम्हारे पति। भला कोई ऐसा कैसे बोल सकता है ? अपना पूरा जीवन हमारे लिए जीया है उन्होंने तो आज जब मेरा फर्ज़ निभाने की बात आयी तो मैं पीछे नहीं रहूंगा ! मानता हूँ कि अकेला हूँ, जिम्मेदारियां है लेकिन ये सब ज़िम्मेदारिया बोझ नहीं है मेरे लिए। तुम कुछ भी अनाप शनाप मत बोलो माँ ! सब ठीक हो जाएगा कहते हुए अमित अपनी आँखों की नमी को छुपा मन पक्का करते हुए अपनी माँ को गले से लगाकर उन्हें हिम्मत देने लगा।

अफसोस था अमित की माँ को कि अपने मन में ऐसे विचार लायी लेकिन वो डॉक्टर द्वारा अमित को बोली जाने वाली बातों को सुन चुकी थी कि “अब उनका बचना मुश्किल है और अगर बच भी गए तो उनका बाकी का जीवन व्यर्थ ही बीतेगा, बस बोझ बन कर रहेंगे वो।”

 सदैव सही राह व अपने उसूलों पर चलने वाले बाबूजी ने जीवन के हर कदम पर संघर्ष ही संघर्ष पाया था। किस्मत, वक़्त व खुद के परिवार से मिली हर चोट पर दोनों ने एक दूसरे को मरहम लगाते हुए साथ निभाया। वक़्त चाहे जैसा भी रहा, जब दोनों ने मेहनत करके एक-एक पाई जोड़कर अमित को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया और आज जब अमित के ज़िम्मेदार व समझदार होने के बाद कुछ पल खुशियों व सुख चैन के जीने का सोचा तो अचानक से बाबूजी के सीढ़ियों से गिरने के बाद हुए ब्रेन हैमरेज ने फिर से उनके जीवन में एक संघर्ष का मोड़ ला खड़ा किया, जहां अब उम्मीद भी ना थीस बस था तो सिर्फ संघर्ष वो भी उनका खुद का खुद की साँसों से जिसे उन्हें अकेले ही लड़ना था।


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