अभिशाप
अभिशाप
“कब तक अपनी ममता से लडेगी, लाडो!! एक बार उसे अपना के तो देख, तू भी इस सुख को न महसूस करे तो कहना”|
"एक बार देख तो, कैसे टुकर -टुकर देख रही है ये मासूम इन दोनों को |"
रधिया ने पास बैठी बेटी को धीरज बँधाते हुए कहा |
दौड़ कर मुनिया को सीने से लगाते हुए वो बोली-
"हाँ माँ,ममता तो ज़ोर मारती है पर जब भी इसे देखती हूँ वो मनहूस घडी याद आ जाती है जब ससुराल वालों ने और पति ने बेटी को अभिशाप बता बोझ उठाने से मना कर धक्के देकर घर से निकाल दिया था |"
"क्या उनके सीने में ममता नही थी या वे सिर्फ पत्थर हैं जो आज भी बेटी को अभिशाप कहते हैं”