मायका भी मेरे ससुराल जैसा होता
मायका भी मेरे ससुराल जैसा होता
"गरिमा ऐसे परिवेश में पली बढ़ी थी, जहां अनुशासित रहना अनिवार्य था। हर काम समय पर होना चाहिए, लड़कीयों को किसी तरह की आजादी नहीं थी। जब गरिमा काॅलेज जाती तभी थोड़ी खुश रहती, उसके मम्मी पापा के सख्त व्यवहार के कारण उसके दोस्त भी जल्दी नहीं आते थे और गरिमा को तो किसी के घर सिर्फ किसी खास मौके पर जाने की परमिशन थी वो भी अपने बड़े भाई के साथ।"
"गरिमा के घर पर टीवी तक नहीं था, उसके मम्मी पापा का मानना था की टीवी देखकर बच्चे बिगड़ जाएंगे। मनोरंजन के नाम पर एक रेडियो था जिस पर बुआ जी का कब्जा था। फुफा जी के ना रहने पर बुआ जी अब अपने भाई के साथ ही रहने लगी थी।"
"वक्त गुजरा गरिमा की पढ़ाई पूरी होने के बाद उसकी शादी मयंक से कर दी गई जो पेशे से इंजीनियर था, उसका परिवार गरिमा के परिवार के बिलकुल उलट नये ख्यालों वाला था। ससुराल में पहले दिन गरिमा की नींद आठ बजे खुली जो की मायके में वह पांच बजे उठ जाती थी। वह बहुत डर गई ना जाने सास और मयंक क्या सोचेंगे मेरे बारे में इसी उधेड़बुन में जल्दी-जल्दी तैयार हो रही थी, तभी गरिमा की सास उसके कमरे में आई।"
"मम्मी जी मुझे माफ़ कर दीजिए मैं इतना लेट कभी नहीं उठती, आज न जाने कैसे मैं इतनी लेट उठी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है - गरिमा सफाई देते हुए बोली।"
"अरे बेटा इतनी सफाई देने की जरूरत नहीं, हम सब भी सात बजे उठते हैं और तुम्हें तो शादी की थकान भी थी। हम वीकेंड के दिन तो और आराम से उठते हैं, तो तुम्हें माफ़ी मांगने की जरूरत नहीं इसे अपना मायका ही समझो। गरिमा सास की बातों से सोच में पड़ गई और मन में बुदबुदाते हुए कहा- "काश! मेरा मायका भी ससुराल जैसा होता।"
"एक - दो दिन में सारे रिश्तेदार चले गए। दूसरे दिन रविवार था तो सब अपने कमरे में सोए थे, आज गरिमा अपने नियत समय पर उठ गई थी, नाश्ते में क्बया नाए इसी उधेड़-बुन में थी। सोचा की मम्मी जी से एक बार पूछ ले की नाश्ते में क्या बनाए लेकिन सब सोए थे तो उसने पोहा बना लिया और सबके उठने का इंतजार करने लगी। नौ बजने वाले थे तभी मम्मी जी बाहर आई।"
"गुड मॉर्निंग गरिमा।"
"गुड मॉर्निंग मम्मी जी, नाश्ते में मैंने पोहा बनाया है फ्रेश होकर आ जाइए। क्या तुमने नाश्ता बना लिया? आज तो हम बाहर जाकर नाश्ता करते हैं। चलो कोई बात नहीं चलो तुम्हारा बनाया नाश्ता भी कर लेंगे और तुम्हें आज 'राम जी हलुवाई' के दुकान का लजीज नाश्ता कराते हैं। लगता हैं आज भी तुम जल्दी उठ गई, कितनी बार कहा बेटा इसे अपना मायका समझो, ससुराल नहीं।"
"गरिमा मम्मी जी की इन बातों से हैरान हो जाती और सोचने लगती" कैसे बताऊं की मेरे मायके में इतने लेट कोई नहीं होता। एक बार मैं लेट उठी तो बुआ जी ने कितना डांटा था, पर यहां तो कोई बंदिश ही नहीं हैं।"
"धीरे-धीरे गरिमा खुलकर जीना सीख गई, अब उसकी सारी हिचक चली गई। सास के रूप में ही माँ मिल गई थी उसे, मायका तो भूल ही गई थी। एक दिन उसके मायके से बुलावा आया, ना चाहते हुए भी गरिमा को जाना पड़ रहा था, खैर गई। वहां जाकर फिर से वही रूटीन फाॅलो करना पड़ रहा था। घर में बंद हो गई थी। उसका मन अपने ससुराल में ही लगा रहता था, सब उसे बहुत प्यार जो करते थे।"
"गरिमा की दोस्त रीमा उससे मिलने आई और ससुराल के बारे में पूछा तो रीमा ने कहा - मैं तो कहती हूं की भगवान करे हर लड़की को ऐसा ही ससुराल मिले मेरे ससुराल में कोई बंदिश नहीं, मम्मी जी बिलकुल मेरी दोस्त की तरह रहती हैं।"
"ऐसा भी ससुराल होता हैं क्या?- रीमा ने हैरान होते हुए कहा। मेरी दीदी तो अपने ससुराल में इतना करने के बाद भी ताना ही सुनती हैं। भगवान तेरे जैसा ससुराल सबको दे। क्योंकि तेरा मायका ससुराल ही था। इसलिए भगवान ने तेरा ससुराल मायका कर दिया। सदा खुश रहो।"
"दीपावली आने वाली थी। गरिमा की बुआ जी ने उसकी सास से कहा की गरिमा को दीपावली में यही रहने दीजिए। गरिमा यह सुनकर दुःखी हो गई और उसने छुपकर अपनी सास को फोन किया और कहा - मैं आपलोग के साथ दीपावली मनाना चाहती हूं, मुझे बुला लीजिए मम्मी जी। गरिमा की सास समझ गई की गरिमा का वहां मन नहीं लग रहा है।"
"एक सप्ताह बाद गरिमा की सास उसके मायके आई। उनको देख कर सब आश्चर्यचकित हो गये।"
"आप अचानक, पहले बताया होता तो हम आपको लेने आ जाते" - गरिमा के पापा ने कहा।
"क्या कहे, अब गरिमा के बिना मन ही नहीं लग रहा था तो मिलने चले आए।"
"गरिमा सबको देख कर खुशी से फूले न समायी, लेकिन अपनी खुशी छुपाये रखा। गरिमा सबके लिए चाय-नाश्ता बनाने चली गई।"
"दरअसल बात ये हैं भाईसाहब हम गरिमा को लेने आए हैं, गरिमा के बिना हमारा मन ही नहीं लग रहा हैं और इस बार सोचा बिना लक्ष्मी कैसी दीपावली इसलिए हम अपनी लक्ष्मी को लेने आ गए - गरिमा की सास ने कहा।"
"पर.. .बहन जी"
"अरे पर और लेकिन छोड़ीए और विदाई की तैयारी कीजिए हम कल सुबह ही निकलेंगे।"
"गरिमा जल्दी-जल्दी अपनी पैकींग में लग गई..."