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Kalyani Nanda

Romance

4.2  

Kalyani Nanda

Romance

पहला प्यार

पहला प्यार

5 mins
507


शिक्षा वर्ष के शुरू होते ही, कॉलिज में नये विद्यार्थियों का आना प्रारम्भ हो जाता है।

शिक्षा वर्ष के पहले दिन में जैसे महाविद्यालय में एक रौनक छा जाती है। प्रथम वर्ष के छात्र, छात्राओं में एक नयी उमंग, एक नया जोश भर जाता है। कॉलिज का वातावरण जैसे रंगीन हो जाता है।

अन्य कक्षाओं में भी पिछले कक्षा के उत्तीर्ण छात्र, छात्राओं की जमघट लगी रहती है। हर तरफ एक खुश नुमा परिवेश।और इस तरह सारी कक्षाओं की पढ़ाई भी शुरू हो जाती है। बी.ए. की कक्षाओं का भी पढ़ाई शुरू हो गयी थी। कुछ पुराने प्राध्यापको के स्थान पर नये अध्यापक और अध्यापिकाओं का भी आगमन हुआ था। सभी के मन मे एक उत्साह था।

सौमेन्द्र की भी नियुक्ति उत्कल युनिवर्सिटी में हुई थी। आज उसका पहला दिन था। अर्थशास्त्र का अध्यापक था। बी.ए की कक्षा में अर्थशास्त्र का पहला क्लास था। सौमेन्द्र के कक्षा में प्रवेश करते ही सारे छात्र छात्राएँ उसे आश्चर्य हो कर देख रहे थे। सौमेन्द्र बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी था। आकर्षक व्यक्तित्व के अधिकारी सौमेन्द्र बहुत ही कम दिनों में सभी का प्रिय पात्र हो गया।

सौमेन्द्र मृदुभाषी था। अर्थशास्त्र की कक्षा में ज्यादा छात्र, छात्राएँ नहीं थे। लेकिन उनमें से एक छात्रा लिप्सा सबसे अलग लगती थी। बहुत ही सीधी-सादी, कम बोलने वाली लडकी थी। पढ़ने में भी विलकक्षण थी। यही बात सौमेन्द्र को उसकी तरफ आकृष्ट किया था। लेकिन लिप्सा को अपनी पढ़ाई के सिवा, और कुछ गिने चुने सहेलियों के अलावा और किसी बात पर ध्यान नहीं था। कभी कभी लाईब्रेरी में जाकर नोट्स लिखती थी नहीं तो पढ़ती थी। मध्यम वर्ग की लड़की थी। दो भाई, बहन और पिता माता के साथ अपने पिताजी के क्वार्टर में रहती थी। पिता उसके रेल्वे में टी.टी थे। पढ़ाई ही उसका मुख्य ध्येय था।

लाईब्रेरी में कभी-कभार उसकी भेंट सौमेन्द्र से हो जाती थी। लेकिन लिप्सा सिर्फ उससे शिक्षक और छात्रा के सम्बन्ध तक सीमित रहती थी। लेकिन सौमेन्द्र का एक अलग सा झुकाव लिप्सा के प्रति था। लिप्सा की नम्रता, सादगी, कोमल सौन्दर्य उसके दिल की धड़कन बन गई थी। वह समय समय पर लिप्सा की मदद भी करता था उसकी पढ़ाई में।

लेकिन कभी अपने मन की बात कर नहीं पाया था उससे। दिल ही दिल में उस का लिप्सा के प्रति प्यार पनप रहा था। एक अनोखी, अनकही, पावन प्यार था उसका। हिम्मत नहीं होती थी, प्यार का इज़हार वो लिप्सा से कर पाए। वो कुछ कह पाता लिप्सा से, उस का तबादला दूसरी जगह हो गया।

समय पंख लगाकर बीत रहा था। देखते देखते चार साल गुज़र गए थे। बहुत कुछ बदल गया था वक्त के बीतते ही। मौसम आए गए। कभी रंगीन, कभी रंगहीन। वक्त को गुजरना ही था, सो गुजरता गया।

स्टेशन से ट्रेन छूटने वाली थी। सेकेण्ड ए.सी में सौमेन्द्र चढ़कर गया अपना सामान लेकर। उसे लखनऊ जाना था एक कॉन्फ्रेंस में योग देने के लिए। साइड का सीट उसका था। वह अपना सामान रखकर बैठ गया। कुछ देर में अन्य यात्रियों का भी उस बोगी में आना शुरू हो गया। और कुछ देर बाद ट्रेन चलना शुरू किया।

बहुत देर बाद किसी के बोलने की आवाज़ सुनकर सौमेन्द्र सर उठाकर देखा। एक सुन्दर, सरल लड़की उसकी तरफ मुखातिब है। नमस्ते कर रही थी वह उसे। सौमेन्द्र चकित हो उसे देखने लगा। ये तो लिप्सा है। उसकी लिप्सा। वही सादगी भरी खूबसूरती।

सत्य या स्वप्न है यह। भौचक साथ वह उसे देख रहा था, तभी लिप्सा ने कहा, " सर, क्या आपने मुझे पहचाना नहीं ? मैं आपकी छात्रा लिप्सा हूँ।" " हाँ, हाँ पहचानता हूँ। लेकिन अचानक इस तरह तुमसे भेंट होगी, ये ना सोचा था " । उसे बैठने के लिए कहा सौमेन्द्र ने। फिर दोनो में बाते होने लगी।

लिप्सा भी अपनी मौसेरी बहन के घर लखनऊ जा रही थी। ट्रेन से उतरते वक्त सौमेन्द्र हिम्मत करके लिप्सा को फिर से मिलने के लिए राजी करा लिया। सौमेन्द्र ने देखा था, लिप्सा ने अब तक शादी नहीं की थी। उसके मन में एक आशा जागी थी। उसने निश्चय किया था, कि अबकी बार वह लिप्सा से अपने पहले प्यार का इज़हार जरूर करेगा। लिप्सा को भी राज़ी कराएगा।

अगले दिन शाम को एक रेस्टोरेंट में दोनो मिले। सूरज ढलने को हो रहा था।

पंछी लौट रहे थे अपने घोसले की तरफ। घर लौटने की खुशी थी उनके मन में। सौमेन्द्र सोचा रहा था, अचानक इस तरह, लिप्सा से भेंट होना ज़रूर भगवान के कोई संकेत है। नहीं तो इस तरह दोनो का मिलना .....! ! अब जैसे भी हो सौमेन्द्र इस मौके को हाथ से जाने देना नहीं चाहता था । कुछ देर बात करने के पश्चात सौमेन्द्र ने अपने दिल की बात लिप्सा से कह डाली। लिप्सा तो पहले आश्चर्य होकर उसे देखने लगी। लेकिन बाद में जब सब समझ मे आया तो उसका मुख्य शर्म से लाल हो गया। जैसे डूबते सूरज की लाली कोई उसके मुख्य पर छाँट दी हो। सौमेन्द्र ने साहस करके उसका हाथ पकड़कर कहा, "लिप्सा, मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ, अगर तुम राज़ी हो तो। तुम मेरा पहला और आखरी प्यार हो। तुम्हारे सिवा मैं किसी और से शादी नहीं करुंगा । आज जब तुम फिर से मिली हो, तो मैं ये वक्त फिर गँवाना नहीं चाहता। तुम हाँ कहोगे तो मैं अपने माँ, बाबा को तुम्हारे घर भेजुगा।" लिप्सा और क्या कहती?? सौमेन्द्र जैसे व्यक्ति को जीवनसंगी के रूप में पाना तो सौभाग्य की बात होगी। वह थोड़ा शर्मा कर, सर हिलाकर अपनी सम्मति दे दी । सौमेन्द्र खुशी से भाव विभोर हो गया । उसने सोचा न था कि उसका पहला प्यार भगवान इस तरह उसे देंगे। एक खुश्बू का झोंका उसके तन-मन को छु गया। शायद लिप्सा ने भी ये प्यार की खुश्बू को महसूस किया। पहले प्यार की खुश्बू जो थी ।


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