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वड़वानल - 61

वड़वानल - 61

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अपोलो बन्दर से लेकर बैलार्ड पियर तक के पूरे परिसर ने युद्धभूमि का स्वरूप धारण कर लिया था। वह पूरा परिसर भूदल की टुकड़ियों से व्याप्त था, जिसमें हिन्दुस्तानी सैनिक कम और ब्रिटिश सैनिक ही ज़्यादा थे। सेना के पीछे पुलिस थी और पुलिस के पीछे रंग–बिरंगी कपड़े पहने सैकड़ों बच्चे, नौजवान, बूढ़े, स्त्री और पुरुष जमा थे।

पूरी मुम्बई ने सुबह के अखबार पढ़े थे। अंग्रेज़ों की कुटिल नीति को नागरिक समझ गए थे, और इसीलिए वे बड़ी तादाद में ‘गेटवे’, ‘ अपोलो बन्दर’ , ‘ तलवार’ आदि भागों में इकट्ठे हो गए थे।

 ‘फ्री प्रेस जर्नल’ ने लिखा था, ‘‘नौसेना के अनेक सैनिकों ने दिनांक 18 से भूख हड़ताल शुरू की है। नाविक तलों और जहाजों के अनाज, सब्ज़ियों और ताजे दूध का स्टॉक ख़त्म हो गया है। दिनांक 18 से सैनिकों के लिए पानी की सप्लाई भी बन्द कर दी गई है। सैनिकों को चारों ओर से दबोचकर उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने की कुटिल चाल सरकार ने चली है। सभी सैनिक भूख के सामने मजबूर हो जाएँगे इस तथ्य को ध्यान में रखकर सैनिकों में फूट डालने की दृष्टि से कल रात को ‘कैसल बैरेक्स’ में खाद्य सामग्री से भरा हुआ एक ट्रक भेजा गया। मगर सैनिकों ने उसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने भूखे रहना पसन्द किया। इस ट्रक के खाद्यान्नों के बोरों की आड़ से भूदल सैनिकों ने ‘कैसल बैरेक्स’ पर हमला करने की तैयारी की थी।“

यह ख़बर पढ़ने वाले हरेक व्यक्ति ने नौसैनिकों की तारीफ़ की। इससे पूर्व मुम्बई के नागरिकों ने उनका अनुशासन देखा था और अब वे उनका दृढ निश्चय देख रहे थे।

‘‘ये सैनिक स्वतन्त्रता के लिए ज़ुल्मी सरकार के ख़िलाफ खड़े हैं, उनकी मदद करनी ही चाहिए।’’

‘‘सरकार यदि सैनिकों का अन्न–जल तोड़कर उन्हें आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर रही है तो हम सैनिकों को भूखे नहीं मरने देंगे। सैनिक हैं तो क्या वे हमारे ही तो भाई–बन्धु हैं।’’

अनेक लोगों के मन में यही विचार थे। ‘गेटवे ऑफ इण्डिया’, ‘अपोलो बन्दर’ , ‘तलवार’ इन भागों में आए हुए नागरिक अपने साथ खाना लाए थे। कुछ लोग तो पानी की बोतलें भी लाए थे।

‘तलवार’ के चारों ओर इकट्ठा हुए नागरिकों ने जब देखा कि ‘तलवार’ के मेन गेट को ‘आज़ाद हिन्द गेट’ का नाम दिया गया है तो उनका हृदय गर्व से भर आया। रात से ही भूदल सैनिकों से दोस्ती हो जाने के कारण ‘तलवार’ के सैनिक आज़ादी से घूम रहे थे। मराठा रेजिमेंट के गोरे अधिकरियों को ‘फ़ोर्ट’ परिसर ले जाया गया था,  इसलिए तो इन सैनिकों के लिए मैदान साफ़ था।

‘तलवार’ के सैनिकों को खाना देने के लिए जो आए थे उनमें गरीब थे, अमीर थे, मज़दूर थे, नौकरी–पेशा थे। समाज के विभिन्न स्तरों के लोगों का वह एक मेला ही था। विद्रोह के लिए सामान्य जनता का ऐसा समर्थन देखकर ‘तलवार’ के सैनिकों का मन भर आया था।

 ‘‘ए, बाबा लोग, मुझे जाने दे रे आगे।’’ सत्तर साल की एक वृद्धा सिपाही जाधव को मना रही थी।

‘‘ए, दादी, आगे किधर जाती। दब जाएगी पूरी!’’ जाधव उसे समझा रहा था।

‘‘ऐसा न कहो, मेरे राजा बेटा! बुढ़िया की छड़ी बन के ले चल मुझे सफ़ेद कपड़े वाले बच्चे के पास,   ले चल रे,  बच्चे!” बुढ़िया विनती कर रही थी।

‘‘दादी, दे वो इधर,  मैं ले जाकर दे देता हूँ उसे,’’  जाधव उसे समझा रहा था।

‘‘अरे,  चार दिन का भूखा है रे बच्चा! मुझे अपने हाथ से खिलाने दे उसे,’’ वह अभी भी मना रही थी।

जाधव उसकी बात टाल न सका। उसने बुढ़िया का हाथ पकड़ा और धीरे–धीरे उसे आगे ले चला।

‘‘क्या कहती हो मौसी?’’  बुढ़िया उससे मिलने आई है यह पता चलते ही दास ने पूछा।

दास के मुँह पर हाथ फेरते हुए, उसकी नज़र उतारते हुए बुढ़िया ने कानों पर अपनी उँगलियाँ मोड़ीं। दास को उस वृद्धा में अपनी माँ नज़र आई। वह जल्दी से नीचे झुका और उसके पैरों को स्पर्श करने लगा।

वृद्धा ने उसे उठाकर सीने से लगा लिया।

‘‘ चार दिनों से एक टुकड़ा भी नहीं खाया रे! चेहरा कैसा सूख गया है देख। सत्यानाश हो जाए उन गोरे बन्दरों का।‘’ अंग्रेज़ों के नाम से उसने उँगलियाँ कड़कड़ाकर मोड़ीं। ‘‘अरे, वो नहीं देता तो न दे। मैं लाई हूँ ना, वो ही खा ले।’’

वृद्धा ने अपनी गठरी खोली। कपड़े में बँधी ज्वार की चार रोटियाँ बाहर निकालीं। सबसे ऊपर वाली रोटी पर एक प्याज़ थी, चटक लाल रंग की चटनी थी। उस चटनी पर डालने के लिए बूँद भर तेल भी बुढ़िया के पास नहीं था। उसने रोटी का एक टुकड़ा तोड़ा, चटनी से लगाया और दास के मुँह में भरा।

दास की आँखों में आँसू तैर गए।

‘‘ मिरची बहुत लगी ना?  क्या करूँ रे,  तेल ही नहीं था।’’

‘‘ नहीं, नहीं, मौसी! माँ की याद आई ना!’’ दास ने जवाब दिया। बुढ़िया की आँखों में पानी आ गया।

ज्वार की रोटी की भरपूर मिठास दास ने महसूस की।

गेटवे ऑफ इण्डिया के निकट मुम्बई के नागरिकों की जबर्दस्त भीड़ थी। सैनिकों के लिए उन्हें रोकना मुश्किल हो रहा था।

 ‘‘नहीं,  तुम आगे नहीं जा सकते।’’   दो–चार लोगों को रोकते हुए एक पुलिस का हवलदार चिल्ला रहा था।

‘‘अरे, इन्सान हो या हैवान?  वे कोमल बच्चे भूखे पेट आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं और तुम इसी मिट्टी के होकर उनकी हालत मज़े से देख रहे हो? उनके ख़िलाफ़ बन्दूकें तान रहे हो?’’  एक अधेड़ उम्र के नागरिक ने चिढ़कर पूछा।

‘‘अगर तुम उनकी कोई मदद नहीं कर सकते तो कम से कम हमारा लाया हुआ खाना तो उन तक पहुँचा दो।’’  दूसरे ने विनती की।

 ‘‘हम अपनी ड्यूटी से बँधे हुए हैं।’’  एक सैनिक समझाने की कोशिश कर रहा था।

‘‘भाड़ में जाए तेरी ड्यूटी। आज़ादी के लिए लड़ने वाले भाई पर गोली चलाना तेरी ड्यूटी है क्या?’’ पहले नागरिक ने चिढ़कर पूछा।

‘‘मेरे होटल की सारी चीज़ें मुझे सैनिकों को देनी हैं। उन्हें लाने में मेरी मदद करो रे!’’   एक होटल मालिक लोगों को मना रहा था।

एक भिखारी हाथ में रोटियों के टुकड़े लिये खड़ा था। उसे भीड़ में खड़ा देखकर किसी ने पूछा,  ‘‘यहाँ क्यों खड़ा है? यहाँ कोई भीख नहीं देने वाला है तुझे।’’

‘‘मेरे को भीख नहीं चाहिए। मुझे भी ये टुकड़े देना है,’’  उसने ऐसी शीघ्रता से जवाब दिया कि मानो यदि वह जवाब न देता तो उसे वहाँ से धक्के मारकर निकाल देते।

‘‘अरे, तेरे पास तो पाँच–छह टुकड़े ही हैं। वही दे देगा तो तू आज रात को खाएगा क्या?’’  पास खड़े एक सैनिक ने पूछा।

‘‘नईं रे राजा, ऐसा नको कर। मेरा भी टुकड़ा ले रे! मेरा क्या, चार घर माँग लूँगा और मिला तो खा लूँगा, नहीं तो पानी पीकर सो जाऊँगा। मुझे आदत है।’’ वह दयनीयता से कह रहा था,  ‘‘मेरे उन भाइयों को चार दिन से खाना नहीं मिला है। अरे, ऐसे दुश्मन से लड़ने को ताकत तो होना चाहिए ना। दो उन्हें ये टुकड़े!’’ उसने विनती की।

यह सब खामोशी से सुनने वाले सूबेदार मेजर पाटिल को महाभारत वाली सुनहरे नेवले की कहानी याद आ गई। आज़ादी के लिए लड़ने वाले नौसैनिकों के प्रति आदर की भावना जागी। उसकी अन्तरात्मा ने उससे कहा, ‘‘नौसैनिकों की मदद करनी ही चाहिए।’’ उसने एक पल सोचा और आठ–दस लोगों को एक ओर ले जाकर कहा, ‘‘खाना इकट्ठा करो और ‘अपोलो बन्दर’ के आगे जाकर रुको। खाना सैनिकों को पहुँचा दिया जाएगा। उस भाग में पहरा कच्चा है।‘’ और अनेक नागरिक अपोलो बन्दर की ओर चल पड़े।

सामने समुद्र में खड़े ‘खैबर’  से दो मोटर लांचेस तेज़ी से ‘अपोलो बन्दर’ की ओर आईं। सिविल ड्रेस में ‘खैबर’ के सैनिक खाने के पैकेट्स लेकर ‘खैबर’ की ओर कब वापस लौट गए किसी को पता ही नहीं चला। खाना ‘कैसल बैरेक्स’ , ‘फोर्ट बैरेक्स’ और जहाज़ों में पहुँचा दिया गया। नौसैनिकों की खाने–पीने की समस्या हल हो गई थी। दो–तीन दिनों के लिए पर्याप्त भोजन उनके पास था।

 दोपहर का डेढ़ बज गया। ब्रिटिश सैनिकों ने ‘कैसल बैरेक्स’ का हमला और अधिक तेज़ कर दिया। गॉडफ्रे और बिअर्ड को ‘कैसेल बैरेक्स’ पर कब्ज़ा करने की जल्दी पड़ी थी । ‘कैसल बैरेक्स’ के सैनिक हमले का करारा जवाब दे रहे थे । नौसैनिकों ने सेन्ट्रल कमेटी के आदेशानुसार सुरक्षात्मक रुख अपनाया। इस हमले में ब्रिटिश टुकड़ियों का ही ज़्यादा नुकसान हुआ - मारे गए और ज़ख़्मी सैनिकों की संख्या पन्द्रह से ऊपर चली गई,  जबकि हिन्दुस्तानी नौसैनिकों में कृष्णन को वीरगति प्राप्त हुई और चार सैनिक ज़ख्मी हुए।

गॉडफ्रे,  रॉटरे और बिअर्ड स्थिति पर लगातार नज़र रखे हुए थे। फॉब हाउस का फ़ोन खनखनाया ।

‘‘सर,  ‘नर्मदा’ से एक सन्देश सभी जहाज़ों को भेजा गया है।’’  गेटवे के सामने तैनात एक गोरी प्लैटून का कमाण्डर बोल रहा था।

‘‘एक मिनट, ‘’  रॉटरे ने पैड अपने सामने खींचा,  ‘‘हाँ, बोलो।’’  वह सन्देश लिखने लगा।

सुपरफास्ट – 211245 – प्रेषक - अध्यक्ष सेन्ट्रल कमेटी – प्रति - सभी जहाज़ = बन्दरगाह से बाहर निकलने के लिए तैयार रहो। पन्द्रह मिनट पहले सूचना दी जाएगी,  तोपें तैयार रखो =

''Well done, officer.'' रॉटरे ने अधिकारी को शाबाशी दी।

''What's the matter?'' गाडफ्रे ने उत्सुकता से पूछा।

रॉटरे ने प्राप्त हुआ सन्देश दिखाया।

धूर्त गॉडफ्रे की आँखों में एक विशिष्ट चमक दिखाई दी। उसने पलभर विचार किया और रॉटरे से कहा, ‘‘मुम्बई के सभी जहाज़ों और नाविक तलों के लिए एक सन्देश भेजकर रॉयल इण्डियन नेवी के सभी ब्रिटिश अधिकारियों और नौसैनिकों को तुरन्त फॉब हाउस में पहुँचने के लिए कहो।’’

 ‘‘मगर सर, जहाज़ों के और तलों के सारे अधिकारी और ब्रिटिश सैनिक जहाज़ छोड़कर कब के वापस आ गए हैं।” रॉटरे ने स्पष्ट किया।

‘‘मुझे मालूम है ।’’ गॉडफ्रे ने सुकून से जवाब दिया। मानो वह यह कहना चाहता हो, ‘‘रॉटरे,  बेवकूफ़ हो!’’

‘‘ब्रिटिश अधिकारी और सैनिक भले ही 19 तारीख को वापस लौट गए हों, फिर भी यह सन्देश जाना ही चाहिए, वरना लोग समझेंगे कि गोरे घबराकर भाग गए। यह सन्देश हमारे सैनिकों और अधिकारियों की कर्तव्यनिष्ठा दिखाएगा ।’’

गॉडफ्रे ने अपनी बात स्पष्ट की।

‘‘मैं समझ नहीं पाया।’’  रॉटरे अपने आप से पुटपुटाया।

‘‘और, दूसरी बात यह, कि इस सन्देश का उपयोग करके एक प्रेसनोट तैयार करो। प्रेसनोट से यह प्रतीत होना चाहिए कि नौसैनिकों ने मुम्बई पर हमला करने की तैयारी की है, और किसी भी क्षण हमला हो सकता है ।‘’ गॉडफ्रे ने सूचना दी।

वापस जाने के लिए मुड़े रॉटरे को रोकते हुए गॉडफ्रे ने कहा,  ‘‘ ‘कैसल बैरेक्स’ जब तक हमारे कब्ज़े में नहीं आ जाता तब तक ये सैनिक झुकेंगे नहीं और विद्रोह कुचला नहीं जा सकेगा।’’

‘‘आप ठीक कहते हैं, सर!’’  बिअर्ड ने कहा, ‘‘मेरे हिसाब से मुम्बई के करीब–करीब आधे सैनिक ‘कैसल बैरेक्स’ में हैं।‘’

‘‘दिन के ग्यारह बजे से हम हमला कर रहे हैं, मगर हिन्दुस्तानी सैनिक समर्पण नहीं कर रहे हैं। उल्टे, प्राप्त जानकारी के अनुसार,  हमारा ही ज़्यादा नुकसान हो रहा है।’’  रॉटरे ने जानकारी दी।

‘‘मेरा ख़याल है कि अब हम डॉकयार्ड से हमला करें, ’’ गॉडफ्रे ने सुझाव दिया। ‘‘तुम्हारी क्या राय है, बिअर्ड?’’ उसने पूछा।

‘‘डॉकयार्ड से हमला करने की योजना मेरी भी थी मगर वहाँ से हमला करना कठिन है। क्योंकि डॉकयार्ड गेट से दीवार के पास हिन्दुस्तानी सैनिकों ने मोर्चे बनाए हैं और वहीं से हुए हमले में हमारे दो सैनिक शहीद हुए हैं। डॉकयार्ड में प्रवेश करने पर हमारे सैनिकों को ‘नर्मदा’, ‘सिंध’,  ‘औंध’ जहाज़ों के हमले का सामना करना पड़ेगा। इस रुकावट को पार किए बिना हम आगे बढ़ ही नहीं सकेंगे।’’  बिअर्ड ने कठिनाइयाँ बताईं।

‘‘मेरा ख़याल है कि हमें कोशिश करनी चाहिए।’’  गॉडफ्रे ने ज़िद की।

बिअर्ड ने फ़ोन उठाया और मेजर सैम्युअल को सूचनाएँ दीं।


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