ममता
ममता
रोज़ शाम को समुंदर के किनारे टहलना शुभी का पसंदीदा शगल था। एक शाम टहलते हुए उसकी नज़र एक बच्ची पर पड़ी। यही कोई दो या तीन साल की रही होगी। मैले कुचैले कपड़े पहने वह वहीं भीड़ में खड़ी रो रही थी। शुभी ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई पर कोई भी किसी बच्चे को खोजता हुआ नहीं दिखा। बच्चे की उँगली पकड़ वह भीड़ से थोड़ा हटकर खड़ी हो गई, शायद कोई उसे खोजता हुआ आ जाए।
काफी देर बीत गई। अंधेरा होना शुरू हो गया, पर कोई नहीं आया। शुभी परेशान थी। जब काफी देर के इंतज़ार पर कोई नहीं आया तो वह उस बच्चे को पास के पुलिस थाने में ले गई।
“सुनिए इंस्पेक्टर साहब, यह बच्ची समुंदर के किनारे अकेली खड़ी रो रही थी। पिछले तीन घंटे से मेरे साथ है, इसे लेने कोई नहीं आया। मेरा नाम शुभी सहाय है और मैं एक अनाथालय चलाती हूँ। यह रहा मेरा कार्ड।” कहकर उसने अपना कार्ड पकड़ा दिया।
“सोच रही हूँ, इसे अपने साथ ले जाऊँ। अगर कोई भी इसे ढूँढता हुआ आए तो उसे आप इसी पते पर उसे भेज दीजिएगा। तब तक इस बच्ची को मैं अपने पास ही रखूँगी।”
इंस्पेक्टर भी बच्चे का बवाल नहीं पालना चाहता था, इसलिए उसने ज़रूरी लिखा पढ़ी के बाद उसे खुशी खुशी शुभी के साथ जाने दिया।
शुभी इस बात से अंजान थी कि एक औरत शाम से दूर खड़ी उसपर लगातार नज़र रखे थी। अपनी बच्ची को खोजते खोजते अचानक उसकी नज़र अपनी बेटी पर पड़ी जो एक औरत की उँगली पकड़े चुपचाप खड़ी थी। वह औरत वहीं ठिठक गई। शुभी के चेहरे पर परेशानी और चिंता देख वह निश्चिंत हो गई। वह जानती थी यह औरत जो कोई भी है, उसकी बिटिया को अकेला छोड़कर नहीं जाएगी। शुभी जहाँ जहाँ गई, वह लगातार उसका पीछा करती रही। पर जब पुलिस स्टेशन से निकलकर उसने एक रिक्शा रोका, तो वह औरत अपने आप को नहीं रोक सकी। दौड़कर उसके पास पहुँचकर बोली , “दीदी, ठहरिए, आप इसे कहाँ ले जा रही हैं, यह मेरी बेटी है।” बेटी भी माँ को देखकर लपककर उससे लिपट गई।
“कहाँ थीं तुम शाम से, तुम्हें अपने बच्चे की कोई फिक्र नहीं । पिछले 3,4 घंटों से मैं परेशान हूँ। तुम्हें अभी सुध आई इसकी। जानती हो ज़माना कितना खराब है। कैसी माँ हो तुम, जो इतनी देर से बेटी खोई हुई है, और तुम अब आ रही हो”, शुभी आपे से बाहर हो गई थी।
“दीदी, ज़माना खराब है, इसीलिए तो बचाना चाह रही थी उसे, उसके सौतेले बाप से।”
“आप ले जाइए, मैंने आज देख लिया, आपके पास ज़्यादा सुरक्षित रहेगी। बस अपना पता दे दीजिए, मिलने आती रहूँगी।”
ममता का यह रूप देख शुभी अवाक थी।