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चर्चा: मास्टर & मार्गारीटा 18

चर्चा: मास्टर & मार्गारीटा 18

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अभागे मेहमान

इस अध्याय का शीर्षक है “अभागे मेहमान”। इस अध्याय में कुछ नए पात्रों से हमारा परिचय होता है और तत्कालीन सोवियत संघ की कुछ वास्तविकताओं का भण्डाफोड़ भी किया जाता है।आपको शायद याद होगा कि अध्याय 3 में, जब बेर्लिओज़ पत्रियार्शी पार्क से बाहर निकलकर रहस्यमय प्रोफेसर के बारे में अधिकारियों को सूचित करने का निश्चय करता है, तो चौख़ाने वाला लम्बू उससे टकराता है और पूछता है कि क्या वह बेर्लिओज़ के चाचा को कीएव में तार भेज दे। यह लम्बा, पतला आदमी, जैसा कि आप जानते हैं, कोरोव्येव था और यह चाचा इस अध्याय का एक प्रमुख पात्र है।

बेर्लिओज़ के चाचा, मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच पप्लाव्स्की एक अर्थशास्त्री संयोजक था। वह कीएव के इंस्टिट्यूट रोड पर रहता था, वह कीएव के बुद्धिमान लोगों में गिना जाता था। पिछले कुछ सालों से वह मॉस्को जाकर बसने की सोच रहा था। उसने अपना कीएव वाला फ्लैट मॉस्को के किसी फ्लैट से बदलने की कोशिश की, मगर सफ़लता न मिली। अख़बारों में इश्तिहार भी दिए, मगर मॉस्को में फ्लैट नहीं ले पाया। और अब, अचानक उसे अपनी पत्नी के भतीजे का तार मिलता है: मुझे अभी-अभी ट्रामगाड़ी ने कुचल दिया है पत्रियार्शी तालाब के पास। अंतिम संस्कार शुक्रवार को तीन बजे दोपहर आ जाओ -  बेर्लिओज     

पप्लाव्स्की बड़ी देर तक इस टेलिग्राम के बारे में सोचता रहा: भेजने वाला तो बेर्लिओज़ है, वह कहता है उसे ट्रामगाड़ी ने कुचल दिया है, फिर वह टेलिग्राम कैसे भेज रहा है? और यदि वह जीवित नहीं है तो वह यह बात कैसे जानता है कि अंतिम संस्कार शुक्रवार को तीन बजे होने वाला है? चाचा, हमें मानना पड़ेगा कि, अपनी पत्नी के भतीजे की अचानक मृत्यु से ज़्यादा दुखी नहीं थे। एक ख़याल उनके दिमाग़ में कौंध गया: भतीजे के तीन कमरों को हथियाने का ये अच्छा मौका था; और ऐसा मौका फिर कभी नहीं आएगा; उसे भतीजे के अंतिम संस्कार में जाना चाहिए और यह सिद्ध करके कि वही बेर्लिओज़ का इकलौता वारिस है सादोवाया पर स्थित बिल्डिंग नं। 302 बी के 50 नं के फ्लैट के उन तीन कमरों पर अधिकार कर लेना चाहिए।

पप्लाव्स्की शुक्रवार को मॉस्को पहुँचता है। वह सीधा बिल्डिंग नं। 302 पहुँचकर हाउसिंग कमिटी के दफ़्तर में जाता है।हम जानते हैं कि हाउसिंग कमिटी के प्रेसिडेण्ट निकानोर इवानोविच स्त्राविन्स्की के क्लिनिक में हैं, सेक्रेटरी भी ग़ायब है और कमिटी का बचा हुआ, परेशान और डर से मरा जा रहा इकलौता मेम्बर, जो वहाँ उपस्थित था, उसे भी किसी ने इशारे से बाहर बुलाया और वह भी ग़ायब हो गया।

पप्लाव्स्की सीधे फ्लैट नं। 50 में जाता है जहाँ कोरोव्येव उसका स्वागत करता है। बेर्लिओज़ के साथ हुई दुर्घटना का वर्णन करते हुए कोरोव्येव इतना फूट फूट कर रोता है कि पप्लाव्स्की को शक होने लगता है कि कहीं यह व्यक्ति उसके भतीजे का फ्लैट तो हथियाना नहीं चाहता। पप्लाव्स्की के इस सवाल के जवाब में कि उसे टेलिग्राम किसने भेजा था, बिल्ला बेगेमोत कहता है कि टेलिग्राम उसने भेजा था। और वह पप्लाव्स्की से पूछता है, ‘तो फिर क्या ?’ वह पासपोर्ट दिखाने की मांग करता है और पप्लाव्स्की थरथराते हाथों से पासपोर्ट उसे थमा देता है।

बेगेमोत पूछता है, “किसने दिया है ये पासपोर्ट? ऑफिस नं। 412 ने? वहाँ वे हरेक को पासपोर्ट दे देते हैं। मैं तो तुम्हारे चेहरे को देखकर तुम्हें कभी भी पासपोर्ट नहीं देता!”

पप्लाव्स्की से साफ़-साफ़ कह दिया जाता है कि अंतिम संस्कार में उसकी उपस्थिति को रद्द किया जाता है; वह कीएव वापस लौट जाए और मॉस्को में किसी फ्लैट का सपना देखना बन्द करे। उसका ब्रीफकेस सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया जाता है और उसे भी फ्लैट से बाहर निकालकर सीढ़ियों से नीचे धकेल दिया जाता पप्लाव्स्की वाक़ई में बुद्धिमान था; वह ‘इन’ लोगों की ताक़त का अन्दाज़ लगा लेता है और भगवान को धन्यवाद देता है कि उसकी ज़िन्दगी तो बची।

उसे इतनी ज़ोर से सीढ़ियों से धक्का दिया गया था कि वह सीढ़ियों के मोड़ पर बनी खिड़की से बाहर फेंक दिया गया और उसने स्वयँ को इस बिल्डिंग के गोदाम के बाहर एक बेंच पर बैठा पाया। अचानक एक बीमार सा, मरियल सा आदमी उससे पूछता है कि फ्लैट नं। 50 कहाँ है। पप्लाव्स्की की उत्सुकता जाग उठती है, वह यह जानना चाहता है कि वे गुण्डे इस आदमी के साथ कैसा सलूक करते हैं; यह सोचकर उसने उसके वापस लौटने तक वहीं बैठे रहने का निश्चय किया।

मगर अपेक्षा से अधिक इंतज़ार करना पड़ा कीएव निवासी को। सीढ़ियाँ न जाने क्यों खाली थीं। बड़ी आसानी से सब कुछ सुनाई दे रहा था। आख़िरकार पाँचवीं मंज़िल का दरवाज़ा धड़ाम् से बन्द हुआ। पप्लाव्स्की के दिल की धड़कन रुक गई। ‘हाँ, उसके पैरों की आहट है। नीचे आ रहा है।’ चौथी मंज़िल पर इस फ्लैट के ठीक नीचे वाले घर का दरवाज़ा खुला। आहट रुक गई। स्त्री की आवाज़। दुःखी व्यक्ति की आवाज़।हाँ यह उसी की आवाज़ है।शायद कुछ इस तरह कह रहा था, “छोड़ो, ईसा मसीह की ख़ातिर।” पप्लाव्स्की का कान टूटे शीशे से सट गया। इस कान ने सुनी एक स्त्री की हँसी, जल्दी-जल्दी नीचे आने वाले कदमों की निडर आहट; और उसी स्त्री की पीठ की झलक दिखाई दी। हाथ में रेक्ज़िन का हरा पर्स पकड़े वह स्त्री मुख्य दरवाज़े से निकलकर आँगन में गई और उस व्यक्ति के कदमों की आहट फिर से आने लगी। “अचरज की बात है, वह वापस फ्लैट में जा रहा है। कहीं वह इस चौकड़ी में से एक तो नहीं? हाँ, वापस जा रहा है। फिर ऊपर का दरवाज़ा खुला। चलो, और इंतज़ार कर लेते हैं।

इस बार कुछ कम इंतज़ार करना पड़ा। दरवाज़े की आवाज़। कदमों की आहट। कदमों की आहट रुक गई। एक बदहवास चीख। बिल्ली की म्याऊँ-म्याऊँ। आहट तेज़, टूटी-फूटी, नीचे, नीचे, नीचे!।

पोप्लाव्स्की का इंतज़ार पूरा हुआ। बार-बार सलीब का निशान बनाता और कुछ-कुछ बड़बड़ाता वह मुसीबत का मारा उड़ता हुआ आया, बिना टोपी के, चेहरे पर वहशीपन, गंजे सिर पर खरोंचें और गीली पतलून के साथ। वह घबराकर बाहर वाले दरवाज़े का हैंडिल घुमाने लगा, डर के मारे यह भी भूल गया कि वह बाहर की ओर खुलता है या अन्दर की ओर। आख़िरकार दरवाज़ा खुल ही गया और वह बाहर आँगन की धूप में रफू-चक्कर हो गया।

तो फ्लैट की जाँच पूरी हो चुकी थी, अपने मृत भांजे के बारे में, उसके फ्लैट के बारे में ज़रा भी न सोचते हुए मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच उस ख़तरे के बारे में सोच-सोचकर काँपने लगा जिससे वह दो-दो हाथ कर चुका था। वह सिर्फ इतना ही बड़बडा रहा था: “सब समझ गया! सब समझ गया!” और वह बाहर आँगन में भाग गया। कुछ ही मिनटों के बाद एक ट्रॉली बस अर्थशास्त्री संयोजक को कीएव जाने वाले रेल्वे स्टेशन की ओर ले गई।

यह दुबला-पतला मरियल, उदास आदमी कौन था? वह था अन्द्रेइ फोकिच, वेरायटी के रेस्तराँ का मैनेजर। वह वोलान्द से मिलने आया था। उसने वोलान्द से शिकायत की कि कल के काले जादू वाले ‘शो’ में जनता ने जो नोट इकट्ठा किए थे वे सब बोतलों के लेबलों में बदल गए हैं। रेस्तराँ ने इन नोटों को लेकर काफ़ी सारी चीज़ें दर्शकों को बेची थीं। उनके गायब हो जाने के कारण रेस्तराँ को काफ़ी नुक्सान हुआ है। मगर जब फोकिच ने जेब से निकालकर ये लेबल्स वोलान्द को दिखाए तो वे फिर से नोटों में बदल गए थे। मगर वोलान्द फोकिच को खूब डाँटता है। वह कहता है कि उसके रेस्तराँ की हर चीज़ भयानक है: चाय तो बस गरम पानी ही है, पनीर इतना बासा था कि वह हरा हो गया था।वह ज़ोर देकर कहता है कि खाने-पीने की चीज़ें निहायत ताज़ा होनी चाहिए। फोकिच को ताज़ा भुना हुआ माँस दिया जाता है, सोने की तश्तरी में रखकर, उस पर नींबू निचोड़ा जाता है; जब उसे बैठने के लिए कुर्सी दी गई तो फोकिच के बैठते ही उसकी टाँग टूट जाती है, मेज़ पर रखी वाइन का ग्लास टूट जाता है और उसकी पतलून पूरी भीग जाती है। फोकिच को एक और बात के कारण भी डाँट पड़ती है: उसके कमरे में फर्श के नीचे छुपाकर रखे गए सोने के सिक्कों और करेन्सी नोटों के कारण। बेगेमोत कहता है कि यह सब उसके किसी काम नहीं आयेगा क्योंकि वह ठीक नौ महीने बाद मॉस्को के सरकारी अस्पताल में यकृत के कैन्सर से मरने वाला है।फोकिच बाहर निकलता है, मगर तभी उसे याद आता है कि अपनी हैट तो वह वहीं भूल गया है। वह वापस जाता है; हैला उसे हैट दे देती है; जैसे ही वह हैट अपने सिर पर रखता है, वह बिल्ली के बच्चे में बदल जाती है, जो उसके सिर को खुरचकर वहाँ से भाग जाता है।

लहूलुहान सिर लिए फोकिच डॉक्टर के पास जाता है और विनती करता है कि किसी भी तरह उसे कैन्सर से बचा ले।

बुल्गाकोव ने इस अध्याय में दो डॉक्टर्स को भी दिखाया है: डा। बूरे और डा। कुज़्मिन।डॉक्टरों को बड़े सम्मानपूर्वक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। डॉ। कुज़्मिन फोकिच से ज़्यादा फीस नहीं लेता; वह उसका अच्छी तरह परीक्षण करता है और कहता है कि इस समय उसके जिस्म में कैन्सर का कोई लक्षण उपस्थित नहीं है।

मगर डॉक्टरों को भी बुल्गाकोव थोड़ा बहुत सताते ही हैं।फोकिच जो नोट डॉक्टर की मेज़ पर छोड़ कर गया था, वह बिल्ली के पिल्ले में बदल जाते हैं और फिर एक चिड़िया के रूप में, जो एक टाँग पर नाच रही थी और डॉक्टर को आँख मार रही थी। प्रोफेसर कुज़्मिन ने प्रोफेसर बूरे को टेलिफोन करने का प्रयत्न किया यह जानने के लिए कि इस सबका क्या मतलब हो सकता है। इस दौरान चिड़िया बड़ी-सी दवात पर बैठ गई, जो प्रोफेसर को उपहार में मिली थी, उसमें बीट कर दी , फिर ऊपर उड़कर हवा में तैर गई, एक झटके के साथ सन् 1894 में युनिवर्सिटी से निकले स्नातकों की तस्वीर फोड़ दी और फिर खिड़की से बाहर उड़ गई। प्रोफेसर ने टेलिफोन का नम्बर बदल दिया और बूरे के बदले जोंक बेचने वाले ऑफिस को फोन करके कह दिया, “मैं प्रोफेसर कुज़्मिन बोल रहा हूँ। मेरे घर पर फौरन जोंके भेज दीजिए।”रिसीवर रखकर जैसे ही वह पीछे मुड़ा, प्रोफेसर फिर सकते में आ गया। टेबुल के पीछे नर्स जैसा रूमाल सिर पर टाँके एक महिला हाथ में बैग लिए बैठी थी, जिस पर लिखा था, ‘जोंके’। उसके मुँह की ओर देखते ही प्रोफेसर चीख पड़ा। वह आदमी का चेहरा था, टेढ़ा, कान तक मुँह से निकलता एक दाँत था। उस महिला की आँखें बेजान थी “ये पैसे मैं ले लूँगी,” मर्दों-सी आवाज़ में वह नर्स बोली, “इन्हें यहाँ पड़े रहने की ज़रूरत नहीं है। फिर उसने पंछियों जैसी हथेली से लेबल उठा लिए और वह हवा में विलीन होने लगी।

दो घण्टे बीत गए, प्रोफेसर अपने शयन-कक्ष में पलंग पर बैठा था। उसकी भँवों पर, कानों के पीछे, गर्दन पर जोंकें चिपकी हुई थीं। कुज़्मिन के पैरों के पास जो मोटे रेशमी कम्बल के नीचे थे बूढ़ा, सफ़ेद मूँछों वाला प्रोफेसर बूरे बैठा था। वह बड़ी सहानुभूति से कुज़्मिन की ओर देख रहा था और उसे सांत्वना दे रहा था, कि यह सब बकवास है। खिड़की से रात झाँक रही थी।

बुल्गाकोव ने डॉक्टर्स को क्यों सज़ा दी, मुझे समझ में नहीं आ रहा। चिड़िया ने डॉक्टर्स का सन् ’94 का फोटो भी फोड़ दिया।शायद कीएव मेडिकल कॉलेज में उसके साथ कोई अप्रिय बात हुई हो? बुल्गाकोव ने वहीं से तो डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की थी।अगर आपको कोई जानकारी हो तो अवश्य बताएँ।

तो, हमने देखा कि पप्लाव्स्की को उसके लालच के कारण, मॉस्को में फ्लैट पाने की इच्छा के लिए सज़ा दी गई; फोकिच को खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट करने की सज़ा मिली। रेस्तराँ और होटेल्स की दुर्दशा के बारे में बुल्गाकोव ने कुछ अन्य रचनाओं में भी लिखा है। मॉस्को में उस रात और न जाने कितनी अजीब, ख़ौफ़नाक घटनाएँ हुईं! हम कह सकते हैं कि वोलान्द और उसकी मंडली पूरे जोश में थी।

बुल्गाकोव उन सबका वर्णन नहीं करते, क्योंकि उन्हें मार्गारीटा से मिलने के लिए जाना है।

हम भी बुल्गाकोव के साथ चलेंगे।


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