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द्वंद्व युद्ध - 15.2

द्वंद्व युद्ध - 15.2

12 mins
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हल्के और शानदार क़दमों से रमाशोव अपनी आधी रेजिमेंट के सामने बीच में आकर खड़ा होता है। उसकी आत्मा में एक अच्छी सी, ख़ूबसूरत सी और गर्वीली अनुभूति बढ़ती है।

उसने पहली पंक्ति के चेहरों पर जल्दी से नज़र दौड़ाई। वयोवृद्ध बहादुर ने अपने सिपाहियों को बाज़ की नज़र से देखा, उसके दिमाग़ में यह शानदार वाक्य घूम गया, जब वह ख़ुद भी सुर में खींचते हुए चिल्लाएगा: “दू—सरी आधी रे-जि-मेंट।”

एक, दो! रमाशोव ख़यालों में गिनती करता है और सिर्फ जूतों की नोक से ताल पकड़ता है। बाएँ क़दम से शुरू करना होगा, बाएँ, दाहिने! और प्रसन्न चेहरे से सिर पीछे की ओर फेंककर वह ऊँची, पूरे मैदान पर खनखनाती आवाज़ में चिल्लाता है, “सीधे!”

और फ़ौरन एक पैर पर मुड़कर, जैसे उसे स्प्रिंग लगी हो, वह बिना पीछे मुड़े, सुर में, दो सुर नीची आवाज़ में आगे कहता है, “क़-ता-र दाहिने-ने!”

इस पल की ख़ूबसूरती से उस पर सुरूर छा गया। एक पल के लिए उसे लगा कि यह संगीत उसे दबा रहा है, ऐसी झुलसाती हुई, चकाचौंध करने वाले प्रकाश की लहरों से जैसे तांबे की, उल्लासपूर्ण चीखें मानो ऊपर से, आसमान से, सूरज से नीचे गिर रही हों। जैसा कि पहले भी होता था, मुलाक़ात के समय, - एक मीठी, कंपकंपाती ठंडक उसके जिस्म में दौड़ गई और उसकी त्वचा को कठोर बना कर सिर के बालों को खड़ा करके सहलाने लगी।

जनरल की तारीफ़ों के प्रत्युत्तर में दोस्ताना अंदाज़ में, संगीत की ताल पर पाँचवीं रेजिमेंट चिल्लाई। मानव शरीरों की ज़िन्दा रुकावट से आज़ाद, जैसे अपनी आज़ादी से ख़ुश होते हुए, और अधिक ऊँची आवाज़ में एवं और अधिक प्रसन्नता से रमाशोव के सामने आईं मार्च की स्पष्ट आवाज़ें। अब सेकंड लेफ्टिनेंट को स्पष्ट रूप से अपने सामने और अपनी दाईं ओर दिखाई दे रही थी भूरे घोड़े पर बैठी जनरल की भारी भरकम आकृति, उसके पीछे उसके निश्चल सहयोगी, और उससे भी आगे महिलाओं की पोषाकों का रंगबिरंगा समूह, जो इस दोपहर की चकाचौंध धूप में परीकथाओं जैसा, जलते हुए फूलों जैसा प्रतीत हो रहा था। बाईं ओर ऑर्केस्ट्रा के सुनहरे, गाते हुए भोंपू चमक रहे हैं, और रमाशोव को महसूस हुआ कि जनरल और ऑर्केस्ट्रा के बीच एक अदृश्य, जादुई डोर खिंची है, जिसे पार करना बड़ा आनन्ददायक होगा और डरावना भी होगा।

मगर पहली अर्धरेजिमेंट इस दायरे में प्रवेश कर चुकी थी। “बहुत अच्छे, जवानों!” कोर कमांडर की प्रसन्न आवाज़ सुनाई देती है। “आ-आ-आ-आ!” सिपाही ऊँची, ख़ुशनुमा आवाज़ों में इस गूँज का साथ देते हैं। सामने संगीत की आवाज़ और ऊँची हो जाती है। “ओह, प्यारे!” बड़े प्यार से रमाशोव जनरल के बारे में सोचता है, बड़ा ज़हीन है!

अब रमाशोव अकेला है। शानदार सहजता और बड़े लचीलेपन से, मुश्किल से पैरों से ज़मीन को छूते हुए, वह इस इच्छित दायरे की ओर बढ़ रहा था। उसका सिर धृष्ठता से पीछे की ओर झुका था और गर्वीली ललकार से वह बाईं ओर देख रहा था। उसके पूरे शरीर में ऐसे हलकेपन और आज़ादी का एहसास फैल रहा था, जैसे अचानक उसे उड़ने की योग्यता प्राप्त हो गई हो। और स्वयँ को सबकी तारीफ़ों का केन्द्र मानते हुए, दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ मानते हुए वह किसी स्वर्गीय, उत्साहपूर्ण सपने में अपने आप से कहता है, देखिए, देखिए-यह रमाशोव जा रहा है, महिलाओं की आँखें उत्साह से चमकने लगीं, एक, दो, लेफ्ट!अर्ध रेजिमेंट के आगे शानदार चाल से ख़ूबसूरत चाल से ख़ूबसूरत नौजवान सेकंड लेफ्टिनेंट चल रहा था...लेफ्ट, राइट! कर्नल शूल्गविच, आपका रमाशोव , बस एक नायाब हीरा है, कोर कमांडर ने कहा, मैं इसे अपने एड्जुटेंट के रूप में लेना चाहूँगा। लेफ्ट..

एक और सेकंड, एक और पल, - और रमाशोव इस सम्मोहक डोर को पार कर लेगा। संगीत पागलपन से, विजेता की भाँति, धधकते उत्साह से गूंज रहा है। अब वह मेरी तारीफ़ करेगा, रमाशोव सोचता है, और उसकी आत्मा उत्सवपूर्ण चमक से परिपूर्ण हो जाती है। कोर कमांडर की आवाज़ सुनाई देती है, ये रही शूल्गविच की आवाज़, कुछ और आवाज़ें...बेशक, जनरल ने तारीफ़ कर दी है, मगर सिपाहियों ने जवाब क्यों नहीं दिया? पीछे से कोई चिल्ला रहा है, पंक्तियों से...क्या हो गया?

रमाशोव ने पीछे मुड़ कर देखा और उसका चेहरा फक् हो गया। उसकी पूरी की पूरी अर्ध-रेजिमेंट दो सुगठित सीधी पंक्तियों के बदले एक बेसलीक़ा, विकृत, टूटी-फूटी, सब दिशाओं में, एक दूसरे को धकियाते हुए, भेड़ों के झुँड़ की तरह, भीड़ में परिवर्तित हो गई थी। ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि सेकंड लेफ्टिनेंट, अपने जोश में सराबोर और अपने उत्कट सपनों में खोया हुआ, स्वयँ भी नहीं जानते हुए कि कैसे एक एक क़दम वह अर्ध रेजिमेंट को दबाते हुए, और अंत में उसके दाहिने पार्श्व में चला गया, पूरे प्रवाह को कुचलते और बिगाड़ते हुए। यह सब रमाशोव फ़ौरन एक छोटे से पल में, एक ख़याल जितने छोटॆ से पल में समझ गया। साथ ही उसने सिपाही ख़्लेब्निकोव को भी देखा जो अकेला, संरचना से बीस क़दम पीछे, जनरल की ही आँखों के सामने लंगड़ाता हुआ चला जा रहा था। वह चलते चलते गिर पड़ा था और अब, पूरी तरह धूल धूसरित, अपनी अर्ध रेजिमेंट तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था, हथियारों के बोझ तले नीचे झुका हुआ, मानो चार पैरों पर दौड़ रहा हो, एक हाथ में बंदूक को बीच में पकड़े हुए, और दूसरे हाथ से लगातार नाक पोंछते हुए।

रमाशोव को अचानक प्रतीत हुआ कि मई की चमकदार दोपहर अचानक काली पड़ गई है, कि उसके कंधों पर एक अनजान, मुर्दा बोझ पड़ा है, रेत के पहाड़ की तरह, और संगीत बड़े रूखेपन से और उकताएपन से बज रहा है। और उसने स्वयँ को एक छोटे, कमज़ोर, बदसूरत, ढीली ढाली चाल वाले, भारी, भद्दे, लड़खड़ाते क़दमों वाले व्यक्ति के रूप में अनुभव किया।

कम्पनी एड्जुटेंट उसके पास विद्युत गति से लपका। फ़्योदरव्स्की का चेहरा लाल और घृणा एवँ क्रोध से विकृत हो गया था, निचला जबड़ा थरथरा रहा था। वह भीषण क्रोध से और तेज़ घुड़सवारी के कारण हाँफ़ रहा था। दूर से ही उसने तैश में चिल्लाना शुरू कर दिया, शब्दों को चबाते और दबाते हुए, “सेकण्ड लेफ्टिनेंट...रमाशोव, कम्पनी कमांडर आपको सूचित करते हैं। सर्वाधिक कठिन दंड, सात दिनों के लिए गार्ड हाऊस में, डिविजन स्टाफ़ में, फूहडपन, स्कैण्डल...पूरी कम्पनी ओ..ई! बेवकूफ़!”


रमाशोव ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, उसकी ओर सिर भी नहीं घुमाया। सच है, उसे डाँट खानी ही चाहिए! सभी सिपाहियों ने भी सुना कि एड्ज़ुटेंट कैसे उसके ऊपर चिल्ला रहा था। तो क्या सुनने दो, मेरे साथ ऐसा ही होना चाहिए, और ऐसा ही होने दो, अपने आप के प्रति तीव्र घृणा से रमाशोव सोच रहा था। मेरे लिए अब सब ख़त्म हो गया है। मैं स्वयँ को गोली मार लूँगा। मैं हमेशा के लिए कलंकित हो गया। सब कुछ, सब कुछ ख़त्म हो गया है मेरे लिए। मैं हास्यास्पद, मैं छोटा, मेरा चेहरा विवर्ण, बदसूरत है, कैसा भद्दा सा चेहरा है, दुनिया भर में सभी चेहरों से ज़्यादा घृणित। सब ख़त्म हो गया! सिपाही मेरे पीछे आ रहे हैं, मेरी पीठ की ओर देखते हैं और हँसते हैं, और एक दूसरे को कोहनियाँ मारते हैं। शायद मुझ पर दया आ रही है उन्हें? नहीं, मैं ज़रूर, ज़रूर गोली मार लूँगा अपने आप को!


आधी रेजिमेंट्स कोर कमांडर से काफ़ी दूर जाकर एक के पीछे एक मुड़ गईं बाएँ कंधे की ओर और अपनी पहले वाली जगह पर आ गईं, जहाँ से उन्होंने परेड़ शुरू की थी। वहाँ उन्हें वापस रेजिमेंट में खड़ा किया गया। जब तक पिछले हिस्से पहुँचते रहे, लोगों को आराम से खड़े रहने की इजाज़त दी गई, और अफ़सर अपनी अपनी जगह से हट गए, हाथ पैरों को सीधा करने के लिए और सिगरेट पीने के लिए। सिर्फ़ अकेला रमाशोव फ्रंट के बीच में रह गया, दाहिने पार्श्व में अपनी रेजिमेंट के। नंगी तलवार की नोक से वह ध्यानपूर्वक अपने पैरों के निकट ज़मीन खोद रहा था और हाँलाकि उसने झुका हुआ सिर नहीं उठाया, मगर वह महसूस कर रहा था कि चारों ओर से उत्सुक, मज़ाक उड़ाती हुई, नफ़रत करती हुई नज़रें उस पर टिकी हैं।


कैप्टेन स्लीवा रमाशोव के पास से गुज़रा और, बिना रुके, बिना उसकी ओर देखे, जैसे अपने आप से बात कर रहा हो, भर्राए स्वर में बुदबुदाया, अपनी कटुता पर काबू करते हुए, भिंचे हुए दाँतों से, “आ-आज ही दूसरी रेजिमेंट में त-तबादले के लिए दरख़्वास्त दे दी-दीजिए।


फिर वेत्किन उसके पास आया। उसकी स्वच्छ, प्यार भरी आँखों में और नीचे झुके होठों के कोनों पर रमाशोव ने देखा एक तिरस्कार और दया का भाव, जिससे लोग ट्रेन द्वारा कुचले गए कुत्ते की ओर देखते हैं। और साथ ही खुद रमाशोव भी नफ़रत से अपने चेहरे पर एक बेमतलब, बुझी बुझी मुस्कुराहट महसूस कर रहा था।


 “चलो, सिगरेट पिएंगे, यूरी अलेक्सेयेविच,” वेत्किन ने कहा। और ज़ुबान से चुचकार कर और सिर हिलाते हुए निराशा से आगे बोला, “ओह, प्यारे!”


रमाशोव की ठुड्डी थरथराई, और उसे गले में कड़वाहट और घुटन महसूस हुई। मुश्किल से हिचकी रोकते हुए उसने किसी अपमानित बच्चे जैसी टूटी टूटी, दबी-घुटी आवाज़ में जवाब दिया, “नहीं, अब..अब क्या है..जी नहीं चाहता”


वेत्किन किनारे को हट गया। अभी जाता हूँ और जाकर स्लीवा के गाल पर तमाचा मारता हूँ, रमाशोव के दिमाग़ में न जाने कैसे ये बेपरवाह ख़याल कौंध गया। या कोर कमांडर के पास जाकर कहता हूँ: शर्म आनी चाहिए तुझे, बुड्ढे, सिपाहियों से खिलौने जैसे खेलते हुए और उन्हें सताते हुए। छोड़ो उन्हें, आराम करने दो। तेरे कारण दो हफ़्तों से सिपाहियों को मारा जा रहा है।


मगर तभी उसे सुदृढ़, ख़ूबसूरत सेकंड लेफ्टिनेंट से संबंधित अपने हाल ही के गर्वीले ख़याल, महिलाओं की उत्तेजना, युद्ध में भाग ले चुके जनरल की आँखों से छलकती प्रसन्नता याद आई, और उसे इतनी शर्म महसूस हुई कि पल भर में न केवल उसका चेहरा, बल्कि सीना और पीठ भी लाल हो गए।

तुम हास्यास्पद हो, घृणित हो, नीच आदमी हो! ख़यालों में वह अपने आप पर चिल्लाया। जान लो, सभी लोग, कि आज मैं अपने आप को गोली मारने वाला हूँ।


इंस्पेक्शन समाप्त हो गया। रेजिमेंट्स ने कई बार कोर कमांडर के सामने परेड़ की: पहले हर रेजिमेंट ने चलते हुए, फिर दौड़ते हुए, फिर संकुचित कॉलम में बन्दूकें ऊपर उठाए। जनरल मानो काफ़ी ठंडा पड़ गया था; कई बार, थोड़ी सी तारीफ़ भी कर दी उसने सिपाहियों की। क़रीब चार बज चुके थे। अंत में कम्पनी को रोका गया और लोगों को विश्राम से खड़े रहने का आदेश दिया गया। स्टाफ़-बिगुलवादक ने ‘अधिकारियों को बुलाने का’ बिगुल बजाया।


 “अफ़सर महाशय, कोर कमांडर के पास!” पंक्तियों में गूँज उठा।


अफ़सर संरचना से बाहर आए और एक तंग घेरा बनाते हुए कोर कमांडर के चारों ओर खड़े हो गए। वह झुक कर घोड़े पर बैठा था, नीचे झुका हुआ, ज़ाहिर था कि वह बेहद थका हुआ था, मगर उसकी बुद्धिमत्तापूर्ण, सिकोड़ी हुई फूली फूली आँखें सुनहरे चश्मे की ओट से ज़िन्दादिली और व्यंग्य से देख रही थीं।


 “संक्षेप में कहूंगा,” उसने रुक रुक कर और अधिकारपूर्ण स्वर में कहा। “कम्पनी किसी काम की नहीं है। सिपाहियों को गाली नहीं दूँगा, सारा दोष अफ़सरों पर लगाऊँगा। यदि कोचवान बुरा हो – तो घोड़े नहीं चलेंगे। मैं आपमें दिल नहीं देखता, लोगों के बारे में कर्त्तव्य का तर्कसंगत ज्ञान नहीं देखता। अच्छी तरह याद रखिए : ‘अपने दोस्त के लिए, अपनी आत्मा न्यौछावर करके, सौभाग्यशाली हूँ।’ और आप के पास तो बस, एक ही ख़याल है – इन्स्पेक्शन के समय अधिकारियों को खुश कर दिया जाए। लोगों को भगा भगा कर परेशान कर दिया – जैसे वे गाड़ी में जुते घोड़े हों। अफ़सर उपेक्षित और जंगली नज़र आते हैं, जैसे कोई चर्च का सबसे छोटा सेवक ओवरकोट पहन कर आ जाए। ख़ैर, इस बारे में मेरे आज्ञा-पत्र में पढेंगे ही आप। एक लेफ्टिनेंट, शायद छठी या सातवीं रेजिमेंट से, अपनी सीध ही खो बैठा और अपनी रेजिमेंट की खिचड़ी बना डाली। शर्मनाक! मुझे तिहरी चाल में मार्च करने वाले नहीं चाहिए, मगर सबसे पहले अच्छी नज़र और ठंडे दिमाग़ का होना ज़रूरी है।


मेरे बारे में, ख़ौफ़ से रमाशोव ने सोचा, और उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि वहाँ खड़े सभी लोग एकदम उसकी ओर मुड़े। मगर कोई भी हिला तक नहीं था। सभी ख़ामोश, निश्चल, हतोत्साह, जनरल के चेहरे से नज़रें हटाए बिना खड़े थे।


पाँचवीं रेजिमेंट के कमांडर को मेरा हार्दिक धन्यवाद!” कोर कमांडर कहता रहा। “कहाँ हैं, आप, कैप्टेन? आह, यहाँ!” जनरल ने कुछ नाटकीय अंदाज़ में, दोनों हाथों से सिर पर टोपी ऊँची उठाई, अपना भारी भरकम गंजा सिर अनावृत करते हुए जो एक कोन की शक्ल में माथे से मिल रहा था, और झुक कर स्तेल्कोव्स्की को सलाम किया। “फिर से आपको धन्यवाद देता हूँ और ख़ुशी ख़ुशी आपसे हाथ मिलाता हूँ। अगर ख़ुदा मेरी कोर को मेरे नेतृत्व में युद्ध करने का सौभाग्य देगा,” जनरल की आँखें झपकने लगीं और आँसुओं से चमकने लगीं, “तो याद रखिए, कैप्टेन, पहला ख़तरनाक काम मैं आपको सौंपूंगा। और अब, महाशय, मेरा सलाम। आप आज़ाद हैं, दोबारा आपसे मिलकर ख़ुशी होगी, मगर एक दूसरे रूप में। कृपया घोड़े को रास्ता दीजिए।”


 “महामहिम,” शूल्गविच आगे आया, “मैं जुर्रत कर रहा हूँ मेरे अफ़सरों की सोसाईटी की तरफ़ से, आपको हमारी मेस में डिनर की दावत देता हूँ। हमें..”

 “नहीं, वो किसलिए!” रूखेपन से जनरल ने उसकी बात काटते हुए कहा। “मेरे स्वागत के लिए धन्यवाद, मुझे आज काऊंट लेदाखोव्स्की के यहाँ दावत दी गई है।”


चौड़े रास्ते से, जिसे अफ़सरों ने साफ़ किया था, वह सरपट घोड़ा दौड़ाकर कम्पनी की ओर गया। लोग अपने आप, बिना किसी आदेश के, जोश में आ गए, तन गए और ख़ामोश हो गए।

 “शुक्रिया, जवानों!” दृढ़ता और प्यार से जनरल चिल्लाया। “तुम्हें दो दिनों की छुट्टी देता हूँ। और अब” उसने प्रसन्नता से ऊँची आवाज़ में कहा, “अपने अपने तंबुओं में दौड़ते हुए मार्च करेगा! हुर्रे!”  


ऐसा लगा कि उसने इस छोटी सी चीख़ से पूरी कम्पनी को हिला दिया। कानों को बहरा कर देने वाली प्रसन्न गर्जना से डेढ़ हज़ार लोग विभिन्न दिशाओं में भागे और उनके पैरों के नीचे ज़मीन थरथराने लगी और गूँजने लगी।


रमाशोव अफ़सरों से अलग हो गया जो झुंडों में शहर की ओर लौट रहे थे, और दूर के रास्ते से छावनी से होता हुआ जाने लगा। उसे महसूस हुआ कि वह एक दयनीय बहिष्कृत व्यक्ति है, जिसे कम्पनी के परिवार से बाहर फेंक दिया गया है; एक अप्रिय, सबके लिए अजनबी व्यक्ति है, और बड़ा आदमी भी नहीं, बल्कि एक घृणित, पापी, विकृत बच्चा है।


जब वह अपनी रेजिमेंट के तंबुओं के पीछे से गुज़र रहा था, अफ़सरों की रेखा से होते हुए, तो किसी की दबी दबी मगर क्रोधित चीख़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया। वह एक मिनट के लिए रुका और तंबुओं के बीच की रोशनी में उसने छोटे से, लाल चेहरे वाले, आड़े-टेढ़े, गठीले बदन वाले अपने सीनियर अंडर ऑफ़िसर रीन्दा को देखा, जो बदहवासी से डाँटते हुए ख़्लेब्निकोव के चेहरे पर मुक्के बरसा रहा था। ख़्लेब्निकोव का चेहरा काला, बेवकूफ़ी भरा, घबराया हुआ था, और भावहीन आँखों में जानवरों जैसा भय समाया था। उसका सिर एक ओर से दूसरी ओर डोल रहा था और सुनाई दे रहा था कि कैसे हर वार के साथ उसके जबड़े ज़ोर ज़ोर से एक दूसरे से टकरा रहे हैं।


रमाशोव जल्दी जल्दी, लगभग दौड़ते हुए वहाँ से गुज़र गया। ख़्लेब्निकोव के लिए लड़ने की उसमें शक्ति ही नहीं थी। और साथ ही बड़े दुख से उसने महसूस किया कि आज के दिन उसका अपना भाग्य और इस अभागे, टूटे हुए, सताए हुए सिपाही का भाग्य एक अजीब निकटता के और विरोधाभास के रिश्ते से जुड़ गए हैं। जैसे वे दो अपंग व्यक्ति हों जो एक ही बीमारी से जूझ रहे हों और लोगों में एक ही प्रकार की नफ़रत पैदा कर रहे हों। और हाँलाकि एक जैसी परिस्थितियों के होने का यह एहसास रमाशोव के दिल में चुभन भरी शर्म और घृणा पैदा कर गया, मगर उसमें भी कोई अजीब, गहरी, सचमुच में मानवीय चीज़ थी।



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