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Aswin Patanvadiya

Drama Tragedy

4.9  

Aswin Patanvadiya

Drama Tragedy

दमयंती

दमयंती

4 mins
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मैं ऑफिस जाने बस स्टैंड पहुँचा, तब मैंने सामने से एक एक हसीन स्त्री को आते हुए देखा। मैं केवल उसका आधा चेहरा ही देख पाया, क्योंकि उसने ठंड के कारण अपना आधा चेहरा दुपट्टे से बांध रखा था। जिस तरह चाँद आधा होने पर भी ज्यादा खूबसूरत दिखता है उसी तरह यह स्त्री का आधा चेहरा ढकने पर भी उसकी खूबसूरती को और भी खूबसूरत बनाता था।

मुझे उसका पूरा चेहरा देखने की मन में जिज्ञासा हुई। तभी अचानक से एक गाड़ी बहुत तेजी से उसके पास से गुजरी। गाड़ी की पवन की लहर से उसका बांधा हुआ दुपट्टा का एक छोर छूटकर हवा में लहराने लगा। एक पल तो मुझे ऐसा लगा कि खुदा भी मेरे साथ उसका चेहरा देखने को आतुर हुआ होगा।

दुपट्टा छूटने पर मेरी नजर उसके चेहरे पर स्थिर हुई। उसका चेहरा देखते ही मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ उठी।

अरे ! यह तो गौरी है !

मैं और गौरी 12वीं कक्षा में साथ में ही पढ़ते थे। गौरी अपने नाम की तरह ही गोरी थी। जितनी वह गोरी थी उतना ही उसका शरीर बहुत ही सुंदर था। इतना ही नहीं, वह पढ़ाई में भी बहुत अच्छी थी। गौरी के ऐसे व्यक्तित्व के कारण क्लास के सभी छात्र, सूरजमुखी का फूल बन जाते ! और गौरी जिधर भी जाती सभी छात्रों का ध्यान उसी तरफ जाता।

एक बार क्लास में सर प्रेमानंद लिखित नल आख्यान की एक इकाई पढ़ा रहे थे। उसमें हंस और नारद मुनि ने जो दमयंती की सुंदरता का वर्णन किया है वो विस्तार से हमें समझा रहे थे। इकाई पूरी होने पर सर ने छात्रों को सवाल पूछना शुरु किया। सवाल यह था कि हंस के मुताबिक दमयंती का रूप कैसा था।

इस सवाल का जवाब पूरा कोई नहीं दे पाया। वह सवाल देखते ही देखते मेरे पास आ पहुँचा।

सर ने कहा, "चलो, अमित बताओ, हंस के मुताबिक दमयंती का रूप कैसा था ?"

सर जब दमयंती के रूप का वर्णन विस्तार से समझा रहे थे तब मैं दमयंती की जगह अपनी क्लास की छात्रा गौरी को देख रहा था। इसलिए मेरे मन में जो जवाब आया ऐसा ही मैं सर के सामने बोल पड़ा,

"सर, दमयंती का रूप यानी, अपनी क्लास की गौरी को ही देख लो।"

10 पन्ने का जवाब, मैंने 10 ही शब्दों में बता दिया।

इस जवाब से सारी क्लास खिलखिलाकर हँस पड़ी और उसका दाहिना हाथ मेरे गाल पर आ पड़ा। सर मेरे इस जवाब से लाल-पीले हो गए।

वे गुस्से में बोले, "तब तो तुम खुद को नल राजा ही समझते होंगे।"

यह कहते हुए सर ने मेरे दोनों हाथों में लाठियां बरसाई।

इस घटना के बाद सभी छात्र गौरी को दमयंती के नाम से बुलाने लगे। मेरी वजह से गौरी को बहुत बुरा लगा और मुझे भी अपनी गलती समझ में आई। मैंने सोचा कि कल पाठशाला में सबसे पहले आकर सबके सामने गोरी से माफी माँग लूँगा।

दूसरे दिन में पाठशाला की सीढ़ियों में ही बैठा था, कि मिलन आकर बोलने लगा, "यार अमित, गजब हो गया ! गौरी तो पाठशाला से दाखिला लेकर चली गई।"

मिलन के ये शब्द पूर्ण हो इससे पहले मैं पाठशाला के ऑफिस पहुँचा। मैंने प्रिंसिपल सर से कहाँ कि मुझे भी पाठशाला से निकाल दे। गौरी की पाठशाला छुड़वाकर मैं कैसे इस पाठशाला में पढ़ सकता हूँ ?

सर ने मुझे बहुत समझाया पर मैं अपने निर्णय पर अटल रहा, क्योंकि अब मेरे स्वाभिमान का सवाल था।

मुझे जाते हुए देख सर बोल पड़े, "उस दिन तुम्हें गौरी में दमयंती दिखती थी। आज मुझे तुम्हारे में नल राजा दिखता है।"

पाठशाला छोड़ते वक्त मेरी आँखें भर आई और आज भी मैंने अपनी आँखें रूमाल से साफ करते हुए उस हसीना से पूछा, "माफ कीजिएगा क्या आपका नाम गौरी है ?"

उसने जवाब देते हुए कहा, "जी नहीं, मेरा नाम गौरी तो नहीं हैं।

मैं उस हसीना के सामने से निशब्द होकर चल पड़ा।

तभी उस हसीना ने आवाज दी, "मैं भले ही आज गौरी नहीं हूँ पर किसी की दमयंती आज भी हूँ।"


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