महंगा मज़हब
महंगा मज़हब
शीतल की छोटी ननंद ने आवाज़ दी भाभी जल्दी आईये टी.वी. पर आपके पसंदीदा गोविंदा की फ़िल्म चल रही है। शीतल ने बहाना कर दिया प्रिया तुम देखो आज थोड़ा सर दर्द है मैं आराम करुंगी।
ओर शीतल मन की ड़गर पे चलकर यादों का दामन थामें चल पड़ी अतीत की ओर मन ही मन बड़बड़ाती,
आज इतने क्यूं याद आ रहे हो?
मत याद आओ,
पर न....न ये यादें है तो मैं ज़िंदा हूँ
टी.वी.पर वो फिल्म चल रही है जो हमने पहली बार साथ में देखी थी,
नहीं भूल सकती, कैसे भूलूँ, तुम ख्वाब नहीं हकीक़त हो मेरी ज़िन्दगी की, मीठी सुखद हकीक़त
पर ज़हर से भी कड़वी, क्या किया था हमने ? इश्क ही ना ?
क्यूँ नही रास आयी दुनिया को हमारी खुशीयाँ ये मज़हबी लोगों के सीने में दिल नहीं होता क्या ?
आज ४ साल बाद सबकुछ याद आ रहा है तुम्हारा वो पहला मेसेज, ज्यादातर मैं मेसेन्जर नहीं देखती थी पर तुम्हारे मेसेज पर नज़र पड़ते ही तुम्हारी प्रोफाइल देखने को ललचाई, बड़े ही खूबसूरत दिख रहे थे,
'समीर' नाम भी अट्रेक्टिव पर कुछ पोष्ट ने तुम्हारा मज़हब ज़ाहिर कर दिया,ना मैं कोई छोटी सोच वाली नहीं कोई फ़र्क नहीं पड़ता था मुझे, उस दिन तो सिर्फ़ तुम्हारी hi के जवाब में मैंने भी hello लिख दिया फिर मैं तो भूल भी गई थी,काॅलेज का आखरी साल था तो पढ़ने में लग गयी पर कुछ दिन बाद वापस तुम्हारे मेसेज ने याद दिलाया, तुमने लिखा था 'u look like a doll' मैं मुस्कुरायी ओर thanks for compliment लिखकर छोड़ दिया,
तुम्हारा तुरंत मेसेज आया शीतल कैसी हो क्या हम दोस्त बन सकते है ? मैं आईटी इन्जीनियर हूँ पूणे में एक कंपनी में जाॅब करता हूँ, वेसे जल्दी किसीेको दोस्त नहीं बनाता पर पता नहीं तुम्हारी स्वीट मुस्कान ने दावत दी तो गुस्ताख़ी हो गई, इस नाचीज़ को लायक समझो तो रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करना।
तुम्हारा स्वीट सलीके से बात करना कुछ अच्छा लगा तो हम दोस्त बन गये,
फिर तो ढ़ेरों बातें होती रोज, कितने मिलते थे हमारे शौक़ हमारी आदत,ओर तुम्हें सेन्डविच के साथ hot coffee पसंद थी मुझे cold बस इतना ही फर्क,
पर सबसे बड़ा फ़र्क जो दुनिया की नज़रों में गुनाह था वो न तुम्हें दिखा न मुझे 'रंगों का फ़र्क तुम्हारा हरा था मेरा केसरी'
हाँ मैं एक गुजराती ब्राह्मण परिवार से थी ओर तुम एक मुसलमान,
मेरा काॅलेज का आखरी साल खत्म हुआ इस एक साल में हम दोनों काफ़ी करीब आ गये थे,
यूँ कहो चाहने लगे थे, हम दोनों ने एक दूजे के दिल में पहले प्यार की नींव रख दी थी,
मैं भी आगे m.c.a. करने की सोच रही थी ओर तुमने मेरे मन की बात कही शीतल क्यूँ पूणे नहीं आ जाती तुम भी आगे की पढ़ाई करने,
my god मैं खुशी से पागल हो गयी मम्मी पापा को मुश्किल से समझाया अहमेदाबाद से पुणे भेजने को बिलकुल राज़ी न थे, पर मैं पापा की बहुत लाड़ली हूँ तो अनमने मन से मान गये,हमने एक दूसरे को कभी देखा नहीं था बस प्रोफाइल पीक पर ही फ़िदा थे।
पहली बार पापा छोड़ने आये तुम बहुत उत्सुक थे की स्टेशन लेने आऊँगा पर मैं पापा को शक हो एेसा कुछ करना नहीं चाहती थी, तुम थोड़े नाराज़ हुए पर दूसरे दिन तय की हुई रेस्टोरेन्ट में मुझे मिलने आये मुझे देखकर बस देखते ही रह गये।
तुम मुझे शीनू बुलाते थे मेरा चेहरा अपने हाथों में लिये तुम इतना ही बोले माशाअल्लाह मेरी शीनू इतनी सुंदर ओर प्यारी है तौबा किसीकी नज़र ना लगे, ओर मेरी नज़रे भी ओर कहीं टिकती ही नहीं थी अपलक तुम्हें देखे जा रही थी मैं, मेरा समीर इतना handsome है मेरी आँखें भर आयी, तुमने प्रश्नार्थ नज़रों से मेरी ओर देखकर मेरे आँसू अपनी हथेली पर ले लिये ओर बोले लो अब से ये मेरे हुए, मैं तुम्हारी फ़ेन हो गयी।
फिर तो एक सिलसिला बन गया पूणे शहर का कोना कोना हम दोनों के मिलन का गवाह बन गया,हम एक दूसरे में यूँ खो गये की दुनिया भूल गये, इतने में डेढ़ साल बीत गया एक दिन मेरा एक्टिवा स्लीप हुआ ओर एक्सिडेन्ट हो गया मुझे १० दिन का बेड रेस्ट आया, तुम ज़ीद करके अपने फ्लेट पर ले गये मेरी देखभाल खुद करते रहे, एक अंतर निभाते, कितने नजदीक थे हम दोनों पर तुम कभी नहीं बहके, मैं तुम्हारी कायल हो गयी,
पर लो अब तो मेरा MCA भी खतम होने आया एक्ज़ाम्स खतम होते ही मैं उदास हो गयी, तुमने पूछा क्या हुआ शीनू उदास क्यूँ हो,
मैंने जवाब के बदले सवाल किया समीर अब आगे क्या प्लान है ? तुमने तुरंत कहा जो मेरी शीनू बोले कहो तो अभी उठकर ले चलूँ बना लूँ अपनी घरवाली,फिर तुम थोड़ा सिरीयस होकर मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोले देखो शीनू मेरी तरफ़ से हमारे मज़हब को लेकर कोई सवाल नहीं उठाएगा मेरे parents का इकलौता बेटा हूँ ओर पापा ने पूरी छूट दी है की तुम जिसे पसंद करोगे वोही इस घर की बहू बनेगी,रहा सवाल तुम्हारे घर वालों का अगर तुम्हारे मम्मी पापा संमति देंगे तो जब तुम कहो मैं तैयार हूँ तुमसे शादी करने।
मेरी तो सोच ही रुक गई पापा पूरे देशी खयालों वाले कट्टर ब्राह्मण कैसे मनाऊँगी,पर हिम्मत तो करनी होगी मैं इतना ही बोली ठीक है समीर कल जाती हूँ घर मम्मी पापा से बात करुंगी मन में ड़र ओर दिल में थोड़ी सी उम्मीद लिये पूने से अहमदाबाद जाने निकली।
तुम स्टेशन छोड़ने आये मेरी नम आँखों को देख कर तुम बोले नहीं शीनू ये आँसू पर सिर्फ़ मेरा हक़ है इस चेहरे पर हंमेशा मुस्कराहट देखना चाहता हूँ,ओर ट्रेन की खिड़की में से जब तक ओझल न हुए हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे।
घर पहूँची पापा-मम्मी बहुत खुश थे,ओर मैं भी,
दो दिन बाद मम्मी ने ब्लास्ट किया शीतल तुम्हारे पापा के दोस्त मुकेश भाई के बेटे विकास से तुम्हारा रिश्ता करने की सोच रहे है,
अगले रविवार वो लोग आ रहे है तुम मिल लो फिर सब तय करते है,मैं क्या बोलूँ कुछ समझ नहीं आया मन किया सबको छोड़कर सीधी तुम्हारे पास चली आऊं,क्यूँ वापस आयी क्यूँ तुमने मुझे आने दिया पर ये सब सोचने का अभी वक्त नहीं।
मन में संकल्प लिया ओर सो गई नींद कोसों दूर थी ये रात सदियों जितनी लंबी गुजरी,सुबह पापा के ओफिस जाते ही हिम्मत इकठ्ठा करके मम्मी को सब बता दिया, मम्मी ने एक थप्पड़ रशीद की पर मेरे चेहरे पर द्रढता देखकर इतना ही बोली तुम्हारे पापा से बात करके देखती हूँ।
कहीं मन नहीं लग रहा था पर पापा के निर्णय का इंतज़ार करने के सिवा कोई चारा न था, रात को खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में मम्मी को इशारा करके चली गयी, पर थोड़ी ही देर में मम्मी की चीख़ सुनकर दौड़ी उनके कमरे में देखा तो पापा तड़प रहे थे सीने पर हाथ दबाये, मैं समझ गयी तुरंत होस्पिटल फोन करके एम्ब्युलेन्स मंगवाई ओर पापा को एड़मिट किया major heartatteck था कुछ दिन बाद पापा घर लौटे पर मेरे साथ बात करना तो दूर मेरे सामने देखते तक नहीं थे।
की एक दिन तुम्हारा call आया मैंने तुम्हें सब बताया तुमने इतना ही कहा की शीनू इतने दिनों तक तुम्हारी कोई खबर नहीं मिली तब ही समझ गया था,
तुम उदास मत हो माँ बाप हमारे सबकुछ होते है उनकी कब्र पर हम अपने घर की नींव केसे रख सकते है, मैं सुबक रही थी तुम्हें खोने का खयाल कहीं मेरी जान ना ले लें,मेरी जुबाँ पर आ गया समीर मुझे भगाकर ले जाओ I can't live without you पर तुमने ये कहकर इस बात पे पर्दा ड़ाल दिया की शीनू तुम्हारे पापा ज़िन्दगी का सवाल है बगावत की कोई गुंजाइश नहीं।
जहाँ तुम्हारे पापा चाहे वहाँ शादी कर लो शीनू मज़हब मोहब्बत से महंगा है, हम दुआ करेंगे अगले जन्म में उपर वाला हमें एक ही मज़हब में जन्म दे शायद तब मज़हब की कीमत में गिरावट आये ओर हमें हमारा अधूरा प्यार लौटा दे, इस जन्म में मैं किसी ओर से शादी नहीं करुंगा ओर तुमने फोन काट दिया।
पर मुझे तो अपने अरमानों की चीता सजानी पड़ी केसरिया रंगों से भले ही एक एेसे इंसान के साथ मुझे ज़िन्दगी क्यूं न बितानी पड़े जिसे मेरी भावनाओं से कोई सरोकार नहीं, ना ही आदत मिलती है ना ही शौक़, हाँ सांस लेने भर को जीये जा रही हूँ।
समीर एक हवा का झोंका मेरी ज़िन्दगी में आया था,उसके साथ जो पल बीते उतनी ही मेरी ज़िन्दगी बाकी की उम्र दो रंगो पर कुरबान है बस अगले जन्म का इंतज़ार है करोगे न मेरा इंतज़ार ?
भाभी अब उठो भी भैया आते ही होंगे,
ओह हाँ भाभी ये सीमा कौन है ? जिसे याद करके आप कुछ बड़बड़ा रहे थे लगता है बहुत अज़ीज़ दोस्त थी जो आज इतनी याद आ गयी ?
अरे हाँ प्रिया मेरी जान थी वो सीमा मन में प्यार से बोली समीर मेरा पहला प्यार, जान ही तो है मेरी॥