Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

"क्षितिज"

"क्षितिज"

5 mins
14.8K


कहने को तो बहुत कुछ था आकाश के पास पर शायद धरा के पास ही वक़्त  की कमी थी।
आज तीन साल हो गये थे आकाश को पर धरा आज भी सबके सामने उसके प्यार का मज़ाक बना मुस्करा कर गुज़र जाती हैं ।धरा रखती तो अपने क़दम ज़मीन पर ही है पर आकाश को ऐसा लगता था ।
जैसे धरा का एक एक कदम उसके दिल की दहलीज को लहूलहान कर देता है।

आकाश की धुँधली आँखों मैं एक बार फिर तीन साल पुराने मंज़र का साया लहरा गया था।

कॉलेज के पहले दिन बेफ़िक्र आकाश अपनी मोटरसाइकिल स्टैंड पर लगाने ही वाला था। तभी धरा तूफ़ान की तरह अपनी स्कूटी के साथ आकाश से जा टकरायी थी ।गलती धरा की ही थी पर वो मानने को तैयार नहीं थी चोट दोनों को ही लगी थी।

पर आकाश का जख़्म कुछ ज्यादा गहरा था ।उसका दिल भी घायल हो गया था इस हादसे में और उस पर सितम यह सामने वाले को कोई फरक ही नहीं पड़ा था।एक  छोटा सा sorry भी नहीं बोला था धरा ने।

और आकाश की तो दुनिया ही बदल गई थी उस दिन से ,
सुबह शाम धरा को याद करता आकाश ख़ुद को भूल गया था।

अपनी सारी दुआ कबूल लगी थी आकाश को जब पता लगा था की धरा उसके ही क्लास में है ।

पर साथ ही बुरा भी लगा कि पूरी क्लास जान देती है धरा पर ।
कहने को यह तो धरा की गलती नहीं थी। पर अगर आकाश का बस चलता तो वो पूरी क्लास को जादू गायब कर देता ।कोई और उसकी धरा को देखता भी था तो आकाश का ख़ून खौल जाता था।

धरा मस्त मौला सी लड़की थी ।हमेशा मुस्कुराने वाली और जब जब वो मुस्कुराती उसके गालों पर डिम्पल पड़ जाते।और बस तभी आकाश का दिल भी उसी डिम्पल में उलझ जाता।

बहुत मुश्क़िल में था आकाश दिल उसकी बात समझता नहीं था ।और धरा शायद समझ कर भी अनजान बन जाती।

आकाश समझ नहीं पा रहा था की क्या करें ।
कैसे धरा को बताये वो धरा से कितना प्यार करता हैं साल गुजर गया था पर आकाश आज भी पहले दिन के मायाजाल से निकल नहीं पाया था।

आज धरा का जन्मदिन था ।
और आकाश ने भी यह सोच लिया था चाहे कुछ हो जाये वो धरा को अपने दिल की बात बता कर रहेगा।
अपनी साल भर की पाकेट मनी को कुरबान कर आकाश ने धरा के लिए कॉलेज कैन्टीन मे एक छोटी सी पार्टी रखी थी।पर आकाश आज भी धरा को अपने प्यार का यक़ीन नहीं दिला पाया था।

जाने क्या हो जाता था आकाश को ,
धरा के सामने आते ही जैसे आकाश के सारे लफ्ज जम जाते है।आकाश को लगता जैसे अचानक हिमयुग आ गया हो ।और सब कुछ बर्फ की सफ़ेद चादर के साये तले छुप गया हों।जज़्बातों की नदी बर्फ़ की चादर से ढक कर अपना वजूद खो बैठी हों।।

बेबस सा आकाश धरा के प्यार की गरमी के लिए तड़पता रह जाता हैं ।

उस दिन सुबह से ही दिल घबरा रहा था आकाश का।
कुछ बुरा होने वाला हो जैसे । और तभी मोबाईल में आये एक मैसज ने आकाश के सारे अन्देशों को सच कर दिया था।

धरा को एक बस ने टक्कर मार दी थी।धरा की हालत बहुत नाज़ुक थी।उसके बचने की उम्मीद बहुत कम थी।आकाश को उस वक़्त  अपना दिल बन्द होता हुआ महसूस हुआ था ।जाने कैसे वो हास्पिटल पहुँचा था यह सिर्फ़ उसका ही दिल जानता था।

बहुत मुश्क़िल वक़्त  था यह आकाश के लिए धरा को बहुत ख़ून की ज़रूरत थी।आकाश के साथ और भी कुछ लोगों ने धरा को बचाने के लिए अपना रक्त दिया था। आकाश की दुआ कबूल हो गयी थी आज ।
धरा फिर से लौट आयी थी ज़िन्दगी की तरफ और आकाश उसकी तो ख़ुशियों का कोई ठिकाना ही नहीं था।उसको फिर से जैसे नयी ज़िन्दगी मिल गयी थी।

कहते हैं ना जो होता है अच्छे के लिए ही होता है।आकाश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

यह हादसा धरा को आकाश के प्यार का यक़ीन दिला गया था। धरा औऱ आकाश के जीवन में प्यार का मौसम आ गया था।आकाश को कभी कभी डर भी लगता कहीं उसकी ख़ुशियों को किसी की नज़र ना लग जाये।

दूसरा साल गुज़रते  गुज़रते  पतझड़ आ गयीं थी ।औऱ यह पतझड़ सिर्फ़ मौसम में ही नहीं धरा औऱ आकाश के जीवन मे भी आई थी ।

धरा फिर पहले की तरह आकाश को नज़रअन्दाज करने लगती थी।आकाश से बात नहीं करती हैं ।आकाश को कभी- कभी लगता शायद वो प्यार का मौसम आया ही नहीं था।उसने एक सपना देखा था ।जो आँख खुलने के साथ ही बिखर गया था।धरा आकाश से दूर जाती जा रही थी ।अब तो आकाश को भी लगने लगा था कि धरा और आकाश का कभी मिलन नहीं हो सकता दूर सें देखने मे लगता तो हैं कि दोनों मिल रहे हैं पर कितनी भी कोशिश कर ले क्षितिज तक पहुँचना तो असम्भव ही है ना ।
आकाश के लिए धरा का प्यार बिल्कुल वैसा ही है जैसे तपते हुऐ रेगिस्तान में ठंडे पानी का भ्रम होना।

और फिर एक दिन आकाश के इन्द्र धनुष के सारे रंग चुरा ले गया कोई उदास सा इन्द्रधनुष अपने वजूद के मिट जाने का मातम कर रहा था।धरा अपनी पढाई अधूरी छोड़ कर चली गयी थी ।पर आकाश की दुनिया से नहीं पूरी दुनिया को छोड़ कर ।उस हादसे ने जान तो बचाई थी धरा की पर कुछ लापरवाही के कारण दूषित रक्त घुल गया था धरा की नसों मे HIV हो गया था धरा को और यह जानकर ही दूर चली गयी थी धरा आकाश की ज़िन्दगी से।

बेवफ़ा नहीं थी धरा बस वक़्त ने ही वफ़ा नहीं की।

( नेहा अग्रवाल )

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract