मेला
मेला
"क्या आपने मेला देखा ?" एक मित्र ने सवाल किया।
"नहीं।" मैंने संक्षिप्त-सा जवाब दिया।
"अरे देखना चाहिए था। मेला एक आनंददायक जगह है। खासतौर पर बच्चों के लिए तो मेला एक रोमांचित कर देने वाली जगह है। इस जगह पर जाने के बाद लोग अपने दुःख-दर्द और समस्याओं को भूल जाते हैं।"
मित्र की बात सुनने के बाद मैंने कहा- "एक मेला मैंने भी देखा है। मेला लगाकर लोगों को रोमांचित करने वाले का मेला। दोपहर से देर रात तक लोगों को मेले का लुत्फ दिलाने के बाद रातभर तंबुओं में सर्दी, गर्मी और बरसात गुजारने वालों का मेला। सुबह-सुबह ठंड में ठिठुरते बच्चों को ठंडे पानी से नहलाने वालों का मेला। क्या कभी हमने सोचा है कि मेले में लोगों को जन्नत की सैर कराने वाले लोगों की जीवनशैली कैसी है, इनका जीवनयापन कैसा होता हैं और इनके बच्चों का भविष्य क्या है ? हर एक माह बाद किसी अनजान जगह पर जाना और फिर उस जगह को छोड़कर किसी नई अनजान पर जाने वाले लोग अपने बच्चों को शिक्षा कहाँ दिलाते होंगे ? क्या कभी हमने गौर किया हैं, मेले में दुकान, झूला व सर्कस लगाने वालों के उन छोटे बच्चों पर जो हमारे शहर के बच्चों को हसरत भरी निगाहों से देखते हैं कि काश ! वे भी इनकी तरह स्कूल जा पाते ?"
मेरे सवाल सुनकर मित्र लाजवाब हो गया, पर आप लोग जरूर सोचिएगा।