मकङजाल
मकङजाल
ना जाने कितने ही हाथ पाँव मारती रहती थी वो उच्च शिक्षित होने के लिये। कितने जतन किये थे उसने। आज भी उसे अपनी टीचर ट्रेनिंग की फीस भरने का वो अन्तिम दिन याद है। पति की सारी कोशिशों के बाद भी जब इन्तजाम न हुआ तो उसके पिता ने फीस का इन्तजाम कैसे किया वो ही जानती थी।
आज फिर रीट का परीक्षा परिणाम आने वाला था पर अत्यधिक घबराहट व बैचेनी से वह पसीना पसीना हो रही थी। "अगर आज भी असफल रही तो ? मेरी सारी मेहनत मिट्टी में मिल जायेगी, हे ईश्वर ! ऐसा न हो।"
घबराहट और बढ़ गई।
"रीना ओ रीना तुम्हारा परिणाम आ गया है, नम्बर भी बहुत अच्छे है, तुम सफल तो हो पर ..."
"पर ... पर क्या बताओ ना, मुझे घबराहट हो रही है।"
"सरकार ने बी.ऐड. वालों को प्राथमिक शिक्षण के अयोग्य करार दे दिया है तुम्हारे लिये मुझे बहुत दुख ...तुम पास होकर भी योग्य नहीं ये कैसा न्याय ?"
"कुछ नहीं ये सरकारी नौकरी भी छद्म मकड़जाल है। हम शिक्षित बेरोजगार उसमें मक्खियों से फँसते जा रहे हैं। ये बस मकड़जाल है बस मकड़जाल।"