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उचित अनुपात

उचित अनुपात

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"मम्मी, आप जतिन को सूप और मुझे कॉफ़ी बनाने को कह रही हो... आप क्या पीने वाली हो कॉफ़ी या सूप?" पूनम ने अपनी माँ सावित्री से पूछा।

"तुम दोनों चुपचाप अपना काम करते जाओ, बस..." सावित्री बोली।

कुछ समय पश्चात दोनों बच्चों ने सूप और कॉफ़ी बन जाने की सूचना देते हुए दोनों चीजें मेज पर लाकर रख दी। मम्मी आगे क्या करेंगी दोनों ही यह जानने को उत्सुक थे।

सावित्री ने बिना चखे जतिन को सूप में और नमक और पूनम को कॉफ़ी में और मीठा डालने को कहा।

"अभी तो मैंने चखा था, नमक एकदम सही था।"

"मैंने भी काफी डालने से पहले मीठा चखा था।"

"भई, मुझे कॉफ़ी में थोड़ा मीठा और सूप में थोड़ा नमक और चाहिए, बस।" सावित्री ने आदेश दिया।

दोनों बच्चों ने माँ के आदेश का पालन किया और जल्दी से फिर हाज़िर हो गए।

सावित्री ने दोनों को बैठा कर सूप, पूनम को और कॉफ़ी जतिन को देते हुए कहा "अब तुम दोनों इसे पियो।"

दोनों ने थोड़ा सा मुँह में लेते ही आवश्यकता से अधिक नमक और मीठा होने से बुरा सा मुँह बनाया और बोले, "मम्मी अब ये पीने लायक नहीं है, पहले ठीक था... आपने नाहक ही इसमें और मीठा और नमक डलवाया।" दोनों ने अपनी राय दी।

"हाँ वही तो तुम्हें जतलना था... ये जो तुम सारा दिन दोस्तों के साथ चिपके रहते हो और मेरे मना करने पर भी नहीं समझते... और तुम पूनम, जो हर समय अपनी सहेलियों से झगड़ती रहती हो ना... तुम भी समझ लो।"

पूनम बोली, "अच्छा... तभी दादी हमेशा कहती थी ना इतने मीठे बनो कि कोई गटक जाए, ना इतने कड़वे कि कोई तुम्हें थूक दे।"

"हाँ बेटा, हमें जीवन में दूसरों के साथ ऐसा ही व्यवहार रखना चाहिए ना अधिक मीठा ना अधिक कड़वा... बस उचित अनुपात... समझे।"


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