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वड़वानल - 45

वड़वानल - 45

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‘‘रॉटरे जैसे वरिष्ठ अधिकारी को गर्दन नीची करके जाना पड़ा यह हमारी विजय है, नहीं तो आज तक फ्लैग ऑफिसर बॉम्बे, रिअर एडमिरल रॉटरे की कितनी दहशत थी। इन्स्पेक्शन के लिए रॉटरे बेस में आने वाला है यह सुनते ही हमारे हाथ–पैर  ढीले  पड़  जाते  और  हम  आठ–आठ  दिन  पहले  से  तैयारी  में  लग  जाते थे, मगर आज वही ‘रॉटरे आवारा कुत्ते जैसा पैरों में पूँछ दबाए भाग गया। यह हमारी जीत ही है।’’ पाण्डे सीना ताने सबसे कहता फिर रहा था।

‘तलवार’  का वातावरण ही बदल गया था। हर कोई विजेता की मस्ती में ही घूम रहा था। सैनिकों की मनोदशा  में यह परिवर्तन देखकर दत्त,  खान, गुरु,  मदन सभी कुछ चिन्तित हो गए,  क्योंकि उन्हें इस बात की पूरी कल्पना थी कि असली लड़ाई तो आगे है, यह तो सिर्फ सलामी है।

‘‘खान,  मेरा  ख़याल  है  कि  सभी  सैनिकों  को  असलियत  के  बारे  में  जानकारी दी जाए, वरना बिछी हुई बिसात बीच ही में उलट जाएगी। अपने हाथ कुछ नही लगेगा।’’ मदन ने अपनी चिन्ता व्यक्त की।

‘‘मेरा  विचार  है  कि  हम  सबको  इकट्ठा  करके  उनसे  बात  करें  और  यह काम दत्त ही अच्छी तरह कर सकेगा। हमारे इस विद्रोह की प्रेरणा और शक्ति वही है।’’ गुरु की इस सूचना को सबने मान लिया। ‘तलवार’ पर फिर एक बार 'Clear lower decks' बिगुल का स्वर सुनाई दिया और सारे सैनिक परेड ग्राउण्ड पर इकट्ठे हो गए। ''Silence please and pay attention to me. Friends, Please listen to me.'' दत्त ने प्रार्थना की और पलभर में सब शान्त हो गए।

‘‘दोस्तो ! अन्याय के विरुद्ध विद्रोह करके, स्वतन्त्रता की सामूहिक माँग करने के लिए आपने जिस एकजुटता का परिचय दिया, उसके लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन ! जातीयवाद को सींचकर फूट पैदा करने के अंग्रेज़ी सिद्धान्त के शिकंजे में देश के मान्यवर नेता फँसते जा रहे हैं,  ऐसे वक्त में आप सामान्य जनता के सामने हिन्दू–मुस्लिम एकता का जो उदाहरण पेश करने जा रहे हैं उसके लिए आपकी जितनी तारीफ़ की जाए, कम है।

‘‘रॉटरे क्रोधित होकर बेस से बाहर गया और घण्टे भर में उसने गोरे सैनिकों, अधिकारियों और महिला सैनिकों को  बेस से बाहर निकाल लिया। हम सबके विरोध की परवाह न करते हुए उसने कैप्टेन जोन्स को ‘तलवार’ का कमांडिंग ऑफिसर नियुक्त किया है। ध्यान दीजिए, वह कहीं भी पीछे नहीं हटा है, बल्कि अधिकाधिक आक्रामक होने की कोशिश कर रहा है। मेरा ख़याल है कि आज ही रात को वह कोई न कोई कार्रवाई करेगा। रॉटरे साँप है। डंक धरने की उसकी आदत है। उसका काटा पानी नहीं माँग सकेगा, यह मत भूलो !’’

‘‘आज, इस पल नौसेना के कितने सैनिक हमारे साथ हैं इसका अन्दाज़ नहीं। आज सबेरे ही हमारे द्वारा किए गए विद्रोह की पूरी जानकारी नौदल के सभी ‘बेसेस’ को और जहाजों को भेजी है। यदि अंग्रेज़ हमारे सूचना प्रसार साधनों में दखलअंदाज़ी न करें तो कल सुबह तक हमें यह पता चल जाएगा कि नौदल के कौन–कौन से ‘बेस’ और जहाज़ हमें समर्थन दे रहे हैं।’’

‘‘हम अन्तिम पल तक लड़ते रहेंगे। जो साथ में आएँगे उन्हें लेकर, वरना अकेले ही लड़ेंगे।’’  कोई चिल्लाया और नारे शुरू हो गए :

‘‘हिन्दू–मुस्लिम  एक  हैं।’’

‘‘वन्दे मातरम् !’’

‘‘इन्कलाब जिन्दाबाद !’’

‘‘दोस्तो ! मैं तुम्हारे जोश को समझता हूँ।’’ सैनिकों को शान्त करते हुए दत्त ने आगे कहा, ‘‘यह समय नारेबाजी का नहीं, बल्कि कुछ कर दिखाने का है। हमें कुछ महत्त्वपूर्ण बातों के बारे में विचार करना है, निर्णय लेना है। रॉटरे ने हमें सुबह साढ़े नौ बजे तक की मोहलत दी है। हमारे प्रतिनिधि को उसने बातचीत के लिए बुलाया है।’’

 ‘‘हमारी ओर से बातचीत करने के लिए कोई राष्ट्रीय नेता जाने वाला है।’’ दो–तीन लोग चिल्लाए।

‘‘बिलकुल ठीक। मगर उस नेता को हमें यह तो बताना होगा ना कि हमारी माँगें क्या हैं। वरना वह किस विषय पर बात करेगा ? और ये माँगें क्या होंगी यह हमें निश्चित करना है।’’  दत्त के इस कथन पर  सैनिकों ने अपनी माँगें गिनवाना शुरू कर दिया।

‘‘सम्पूर्ण स्वतन्त्रता।’’

‘‘अंग्रेज़ देश छोड़कर चले जाएँ।’’

‘‘तुम्हारी हर माँग महत्त्वपूर्ण है। मगर हमारा माँग–पत्र ऐसा होना चाहिए कि उसमें हरेक की माँगों का समावेश हो।’’ दत्त ने समझाने की कोशिश की।

‘‘हमारा यह संघर्ष स्वतन्त्रता के लिए है और यह माँग स्पष्ट रूप से बतानी होगी।’’ क्रान्तिकारी विचारों के कुछ सैनिकों ने माँग की।

‘‘स्वतन्त्रता की माँग यदि हमारे माँग–पत्र में परावर्तित हो गई तो भी चलेगा।’’ दूसरे गुट ने कहा।

‘‘दोस्तो ! हमारा संघर्ष स्वतन्त्रता के लिए ही है। यह हमारी प्रमुख माँग है। अब सवाल यह है कि इसे प्रस्तुत कैसे किया जाए ? यदि हम सब लोग चर्चा ही करते रहेंगे तो हासिल कुछ भी नहीं होगा। हमें एक यही निर्णय नहीं लेना है, कुछ और महत्त्वपूर्ण निर्णय भी लेने हैं। उदाहरण के लिए, बातचीत करने के लिए राष्ट्रीय नेता कौन–सा होगा,  किस राष्ट्रीय नेता से सम्पर्क स्थापित किया जाए,  और  इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण  बात - ‘बेस’  में अनुशासन बनाये रखने के लिए एक समिति बनाई जाए।’’ दत्त ने सुझाव दिया और सभी ने इसे मान लिया।

‘‘हमारा नेता – दत्त; हमारा नेता - दत्त !’’ कुछ लोग चिल्लाये।

‘‘दोस्तो ! आपका मुझ पर जो प्रेम एवं विश्वास है वह अतीव है। मगर हम सभी की भलाई की दृष्टि से मैं  आपकी  इच्छा  अस्वीकार करता  हूँ। तुम्हें मालूम है कि मेरे खिलाफ वारंट्स तैयार हैं। किसी भी पल वे यह घोषणा कर सकते हैं कि मुझे नौसेना से निकाल दिया गया है; पुलिस के कब्जे में दे सकते हैं।  और  यदि  ऐसा  हुआ  तो  गड़बड़  हो  जाएगी।  तुम्हें  चिढ़ाने  के  लिए,  तुम्हारे विद्रोह की हवा निकाल देने के लिए सरकार यह करेगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ। मेरा सुझाव  है  कि  तुम  कोई  दूसरा  नेता  चुनो। हममें से हर व्यक्ति नेतृत्व करने में समर्थ है। परिस्थिति को स्पष्ट करते हुए  दत्त ने सुझाव दिया। थोड़ी देर चर्चा करने के बाद खान की अध्यक्षता में मदन, गुरु, दास, पाण्डे, एबल सीमन चाँद और सूरज की सदस्यता वाली एक समिति बनाई गई। समिति ने अपनी बैठक तत्काल आरम्भ   कर दी। दत्त सलाहकार के रूप में बैठक में उपस्थित था। सर्वसम्मति से निम्नलिखित माँग–पत्र तैयार किया गया:

1.  सभी राजनीतिक कैदियों और आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों को आज़ाद करो।

2.  कमाण्डर किंग द्वारा इस्तेमाल किए गए अपशब्दों के कारण उस पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

3.  सेवामुक्त होने वाले सैनिकों को शीघ्र सेवामुक्त करके उनका पुनर्वसन किया जाए।

4. रॉयल नेवी के सैनिकों को जो वेतन तथा सुविधाएँ दी जाती हैं वे ही हिन्दुस्तानी सैनिकों को मिलें।

5.  तीनों सैन्य दलों के लिए जो एक कैन्टीन है उसमें हिन्दुस्तानी सैनिकों को भी प्रवेश दिया जाए।

6.  सेवामुक्त करते समय कपड़ों के पैसे न लिये जाएँ।

7.  रोज़ के भोजन में दिये जानेवाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए।

8. इण्डोनेशिया का स्वतन्त्रता आन्दोलन कुचलने के लिए भेजे गए हिन्दुस्तानी सैनिकों को फ़ौरन वापस बुलाया जाए।

‘‘क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि इस माँग–पत्र में ज़रा भी दम नहीं है ?’’ गुरु ने दत्त से पूछा।

‘‘तुम्हारी राय से मैं पूरी तरह सहमत हूँ। इन माँगों में स्वतन्त्रता की माँग का उल्लेख साफ–साफ होना चाहिए था। परन्तु यदि स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल होने  के  इच्छुक  तथा  इस  संग्राम  से  दूर  रहने  के  इच्छुक  लोगों  को  साथ  लेकर चलना हो, संघर्ष को सर्वसमावेश बनाना हो तो यही माँग–पत्र योग्य है।’’ दत्त ने माँग–पत्र का समर्थन किया।

‘‘आज शेरसिंह को आजाद होना चाहिए था !’’ गुरु ने निराशा से कहा।

‘‘शेरसिंह की गिरफ्तारी होने के बाद उन्हें किस विशेष स्थान पर ले जाया गया है यह मालूम करने  के लिए मैंने उनके निकट सहयोगियों से सम्पर्क स्थापित किया था। मगर कुछ भी पता नहीं चला।’’ मदन ने जानकारी दी।

‘‘दुर्भाग्य हमारा,  और क्या !’’  गुरु ने गहरी साँस छोड़ी,  ‘‘सोचा था कि बाबूजी का आशीर्वाद लेकर हम युद्ध का बिगुल बजाएँगे मगर...  और अब शेरसिंह साथ में नहीं हैं !’’ गुरु की आवाज़ में विषण्णता थी।

‘‘उन्हें यदि इस बात की भनक भी मिल जाए तो वे जेल तोड़कर हमारे बीच आएँगे और अन्य सैनिक दलों में इस वड़वानल को प्रज्वलित करने का काम करेंगे !’’ मदन ने विश्वासपूर्वक कहा।

‘‘ठीक कह रहे हो। वे आज नहीं हैं इसलिए हमें दुगुने जोश से काम करना चाहिए।’’ दत्त ने सुझाव दिया।

उस रात को ‘तलवार’ पर कोई भी नहीं सोया। हर बैरेक में एक ही चर्चा हो रही थी - कल क्या होगा ?  कुछ भोले सैनिक स्वतन्त्रता के और हिन्दुस्तानी नौसेना के सपनों में खो गए थे। रात के उस शान्त वातावरण में रास्ते से गुजरने वाले एकाध ट्रक की आवाज़ यदि सुनाई देती तो रॉटरे भूदल के सैनिकों  को ‘तलवार’  में  लाया होगा,  इस आशंका से सैनिक अस्वस्थ हो जाते और नारे लगाते हुए मेन गेट पर जमा हो जाते। मगर बगैर किसी विशेष घटना के वह रात गुज़र गई।

मुम्बई से प्रकाशित होने वाले सभी सायंकालीन अखबारों ने नौदल के विद्रोह की खबर मुम्बई के घर–घर  में  पहुँचा  दी  थी। लाल बाग स्थित लाल झण्डे के कार्यालय में इकट्ठा हुए कार्यकर्ता इसी खबर पर चर्चा कर रहे थे।

‘‘जोशी, पहले पृष्ठ पर छपी वह नौदल की खबर पढ़ !’’ वैद्य ने अखबार आगे बढ़ाते हुए कॉम्रेड जोशी से कहा।  जोशी  ने  कुछ  जोर  से  नौसैनिकों के विद्रोह की खबर पढ़ी और नाक पर चश्मे को सीधा करते हुए जोर से वैद्य से कहा,  ‘‘मुझे उम्मीद ही थी इस ख़बर की।’’

‘‘बड़ा ज्योतिषी बन गया है ना ?  कहता है,  उम्मीद ही थी इस ख़बर की।’’ वैद्य ने हमेशा की तरह जोशी की फिरकी लेने की कोशिश की।

‘‘अरे,  आँखें खुली रखकर चारों ओर देखते रहो तो क्या होने वाला है इसका अन्दाज़ा हो जाता है। एक सप्ताह पहले ही बिलकुल सुबह–सबेरे मालाड़ के आसपास स्वतन्त्रता के नारों से रंगा हुआ ट्रक बेधड़क घूमता हुआ दिखा था। करीब महीना भर पहले ‘तलवार’ में दत्त नामक सैनिक के नारे लिखते हुए पकड़े जाने की ख़बर उसकी फोटो समेत छपी थी। मुझे तभी ऐसा लगा था कि जल्दी ही यह विस्फोट होने वाला है।" जोशी ने सुकून से जवाब दिया।

 ‘‘सैनिकों में भी असन्तोष व्याप्त होगा,  ऐसा लगता तो नहीं था।’’  वैद्य ने कहा।

‘‘क्यों ? वे भी इसी मिट्टी के हैं। मेरा ख़याल है कि हम राजनीतिक पक्षों से ही ग़लती हुई है। हमने उन्हें कभी भी अपने निकट करने की कोशिश नही की। कम से कम हमारी पार्टी को तो उन्हें अपना बनाना चाहिए था। रूस की क्रान्ति सैनिकों द्वारा ही की गई थी।’’

‘‘रूसी क्रान्ति का आरम्भ भी इसी तरह जहाज़  पर ही हुआ था।’’ वैद्य ने जानकारी दी।

‘‘चाहे जो भी हो जाए, हमें इन सैनिकों को समर्थन देना ही चाहिए। इस सम्बन्ध में कल ही मीटिंग बुलानी चाहिए।’’ जोशी की राय से वैद्य ने सहमति जताई और वे दूसरे दिन की बैठक की तैयारी में लग गए।

 ''It's done, it's done...'' ‘तलवार’ के विद्रोह की खबर सुनकर मुम्बई के नौदल के जहाज़ HMIS गोंडवन का यादव नाचते, चिल्लाते हुए बैरेक में घूम रहा था।

‘‘मैं शनिवार को दत्त और मदन ने मिलने ‘तलवार’  पर गया था। उस समय वातावरण बहुत गर्म था। मगर यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा ऐसा लगता नहीं था। मगर गुरु, खान, मदन, दत्त इन सबने यह कर दिखाया। They are great. Bravo !" वह जो भी मिलता उसे गले लगाते हुए कह रहा था।

‘‘ये सब ख़त्म होना ही था। अब हम अंग्रेज़ों के अत्याचार से निश्चय ही मुक्त हो जाएँगे। हम स्वतन्त्र हो जाएँगे। स्वतन्त्रता प्राप्त होने तक हमें रुकना नहीं चाहिए !’’ बैनर्जी चिल्ला रहा था। आनन्दातिरेक से उसका गला भर आया था।

‘‘अरे, तो फिर खामोश क्यों बैठे हो ? गोरों को समझ में कैसे आएगा कि यहाँ के सैनिक भी सुलग उठे हैं। हम  भी विद्रोह में शामिल हैं।’’ जगदीश ने कहा और पूरा जहाज़ जोशीले नारों से गूँज उठा। कुछ लोगों ने थालियों पर चमचे पीटते हुए हंगामे को अधिक ज़ोरदार बना दिया।

जहाज़ पर मौजूद गोरे अधिकारियों और गोरे सिपाहियों को पलभर समझ ही में न आया कि हुआ क्या है।

‘‘इन bloody black pigs को हुआ क्या है ? क्यों चिल्ला–चोट मचा रहे हैं ये ?’’ स. लेफ्ट. जॉन पूछ रहा था। और वह यह देखने के लिए निकला कि क्या हुआ है।

‘‘जाओ मत उधर; तुमने शायद अभी समाचार नहीं सुने। नौसैनिकों ने विद्रोह कर दिया है।’’ जॉन को रोकते हुए लेफ्टिनेंट शॉ ने कहा। समूची ऑफिसर्स मेस में एक खौफनाक ख़ामोशी छाई थी। हरेक के मन में एक ही सवाल था: ‘यदि ये सैनिक हिंसक हो गए तो?  इस परिस्थिति से कैसे बाहर निकला जाए ?’

‘‘अरे, हमें भी इस ऐतिहासिक संघर्ष में शामिल होना चाहिए !’’ यादव की इस राय का सभी ने समर्थन किया और अलग–अलग गुटों में बैठे सैनिक फॉक्सल पर इकट्ठा हो गए।

‘‘हम अभी जाकर ‘तलवार’ के सैनिकों को समर्थन देंगे।’’ उत्साही जगदीश ने एकत्रित हुए सैनिकों से कहा।

‘‘दोस्तो !  हमें  इतनी  जल्दबाजी  नहीं  करनी  चाहिए  ऐसा  मेरा  विचार  है। सरकार ने यदि ‘तलवार’ की घेराबन्दी कर दी तो संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए किसी का तो बाहर होना ज़रूरी है और हम वह करेंगे।’’ यादव ने सुझाव दिया।

‘‘मतलब, क्या हमें सिर्फ देखते रहना है ?’’  किसी ने गुस्से से पूछा।

‘‘नहीं, हम शत–प्रतिशत शामिल होने वाले हैं। ‘तलवार’  के सैनिकों की योजना समझकर शामिल होना अधिक योग्य है ऐसा मेरा ख़याल है।’’  यादव का यह विचार सबको उचित लगा और यह तय किया गया कि कल सुबह ही ‘तलवार’ पर चला जाए।

सरकार की पराजय के सपने देखते हुए सारा ‘गोंडवन’ रातभर जाग रहा था।


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