Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

अंतिम विदाई

अंतिम विदाई

3 mins
8.0K


पापा से मेरी अंतिम विदाई - 20/जुलाई/2003

मर्चेंट नेवी में शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया कंपनी में चयन के तत्पश्चात-

अब समय था, शिप पर ट्रेनिंग ( प्रशिक्षण ) का । शिप सिंगापुर से जॉइन करना था । गाँव से कोटा, कोटा से मुम्बई और फिर मुम्बई से सिंगापुर ...का सफर। आप मुझे गाँव से कोटा रेलवे स्टेशन छोड़ने आये थे। गोल्डन टेम्पल में स्लीपर कोच एस-5 में रिजर्वेशन था। ट्रेन लगभग 35 मिनट देरी से थी। आप और मैं रेलवे स्टेशन पर मौन थे। एक दूसरे से बिछोह के भाव इतने गहरे थे कि शब्द, आवाज़ ने साथ छोड़ रखा था। समझ नहीं आ रहा था कि आप मुझे सांत्वना दें या मैं आपको। बरबस आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। आवासीय नवोदय स्कूल में कक्षा 6 से पला बढ़ा मैं, आज सबसे अधिक द्रवित था, मन हलचलित था। जब जब भी आप मुझे नवोदय स्कूल छोड़कर आते ऐसी विदाई तो बचपन से देता आया था परन्तु आज कुछ अलग ही बेचैनी महसूस कर रहा था। स्वयं को बचपन से ही निडर, साहसी समझता आया था परन्तु उस दिन अनजाना डर मन में घर किये हुए था। अचानक रेलवे स्टेशन पर अनाउंसमेंट हुआ की ट्रेन कुछ ही समय मे प्लेटफॉर्म पर आने वाली है। आप और मैं अब एक दूसरे से नज़र मिलाने में भी असमर्थ हो रहे थे। आपने मेरे दो भारी भारी लगेज अपने कंधों पर वैसे ही ले लिए और मुझे एक हल्का वाला शोल्डर बेग लेने को कहा। मैने बिना कोई प्रतिकार किये आपकी बात मान ली।

क्योंकि अब तो वैसे भी आपसे बिछड़ने पर सारा बोझ उठाना ही था तो कुछ देर इस बहाने पिता के वात्सल्य की मिठास महसूस कर लेना चाहता था। कोच में सीट के नीचे लगेज आपने सुव्यवस्थित ढंग से लगा दिए। मैं जड़वत आपको एकटक देखे जा रहा था, मुझे कुछ भी करने की आवश्यकता महसूस नहीं हो रही थी, आप जो साथ थे पापा। सामान रखने के बाद आपने अपनी पॉकेट से कुछ और रुपये मुझे निकाल कर दिए, अपने पास उतने शेष रख कर कि आप गाँव लौट सकें। पता नहीं क्यों मैं आज बिना प्रतिकार किये आपकी हर बात मानते जा रहा था। आप ने मुझे सफर की सभी सावधानियाँ , समय पर भोजन कर लेने का रिमाइंडर, फ़ोन पर सकुशल पहुँच कर सूचित करने आदि-आदि सभी जांच सूची से पुनः अवगत करा दिया था। मैं आपकी आँखों से निकल रहे बरबस आँसुओं को देख कर भी स्वयं को कठोर बनाने की भरसक कोशिश करने में लगा हुआ था। ट्रेन के छूटने के समय आ चुका था, सीटी बजने को थी और मेरा सब्र का बांध टूट चुका था, मैं बच्चों की तरह आपसे लिपट कर दहाड़ मार कर रोने लगा। आप स्वयं समझ नहीं पा रहे थे कि मुझे चुप करायें की स्वयं को।

ट्रेन मंद-मंद चल चुकी थी, नहीं चाहते हुए भी आप कोच से नीचे उतरे और अब सिर्फ हाथ हिलाते हुए, मैं दरवाजे पर खड़ा आपको और आप मुझे देखे जा रहे थे । ट्रेन के साथ चंद मिनट तक आप दौड़ते रहे और फिर ठहर गए। ऐसा लग मानो समय भी ठहर गया था।

पापा, मैं नहीं जानता था कि इसके बाद मैं आपसे कभी नहीं मिल पाऊँगा, मुझे आपके नहीं रहने की खबर ही मिलेगी ( देवलोकगमन 30/मार्च/2004 ) वरना मैं उस दौड़ती ट्रेन से भी कूद जाता।

आज भी मन अफसोस करता है। काश....

पर....

ईश्वर की नियति बहुत ही कठोर अनुशासन से गन्तत्वयित है। आपका और मेरा मिलना अक्सर ख्वाबों में होता है पर इस दुनिया में अब वो सम्भव नहीं।

शायद किसी भी दुनिया में नहीं ...!


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama