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Yogesh Suhagwati Goyal

Inspirational

5.0  

Yogesh Suhagwati Goyal

Inspirational

मैं कहानियाँ लिखने लगा

मैं कहानियाँ लिखने लगा

4 mins
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बात कोई ४ साल पुरानी है। हमारे सबसे बड़े साले साहब की शादी की २५वीं सालगिरह थी। यूँ ही कुछ लिखने का मन हुआ। आशीर्वाद नाम से एक कविता लिख डाली। पत्नी को बहुत अच्छी लगी। सालगिरह पर सबके सामने पेश भी की। कोई ज्यादा प्रतिक्रिया या टिप्पणी तो नहीं मिली, लेकिन उसने मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ़ा दिया। साहित्य में शुरू से ही मेरी रूचि थी, परन्तु अपने काम और समय के चलते शौक पूरा नहीं कर पाये। रिटायर होने के बाद ये ऐसा वक़्त था, जब हम अपने अधूरे शौक पूरा करने के बारे में सोच रहे थे।

किस्मत ने साथ दिया। हिंदी कविता लिखने में आनंद आने लगा। कोशिश चलती रही और धीरे-धीरे लेखन सुधरता गया। पत्नी, बच्चे और कुछ मित्र हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते रहे। मेरे छोटे दामाद का इसमें बड़ा योगदान है। ६ महीने पहले कुछ मित्रों ने कहा, कि अब समय आ गया है, अपनी रचनाओं को प्रकाशित कराने के बारे में सोचो। हमको भी महसूस होने लगा, अपनी ख़ुशी तो ठीक है, लेकिन ख़ुशी के साथ अगर एक पहचान भी मिले तो अलग बात होगी और उसी दिन से हम अपनी रचनाओं को प्रकाशित कराने का प्रयास करने लगे।

शुरू में स्वयंसेवी संस्थानों की पत्रिकाओं में कुछ रचनाएँ प्रकाशित हुई। फिर बड़े स्तर पर कुछ अख़बारों और पत्रिकाओं को लिखा, लेकिन कहीं भी कोई बात नहीं बनी। इस सबके बावजूद हमारी कोशिश निरंतर चल रही थी। पिछले महीने अपने राज्य के एक प्रतिष्ठित अखबार में पढ़ा, वो लोग मित्रता दिवस पर “दोस्ती” के बारे में कवितायेँ और कहानीयां प्रकाशित करना चाहते थे। इसके लिए वो जनता से मौलिक रचनाएँ माँग रहे थे। मित्रता दिवस ५ अगस्त का था और वो ७ दिन पहले से प्रतिदिन कुछ २ प्रकाशित करना चाह रहे थे।

ये पढ़कर हमको एक अवसर नज़र आया। सबसे पहले हमने दोस्ती पर एक कविता लिखी और अखबार द्वारा लिखे हुए ईमेल पर भेज दी परन्तु ना ही कोई जवाब आया और ना ही शुरू के २-३ दिन में हमारी कविता प्रकाशित हुई। मन थोड़ा सा खराब हो गया। थोड़ी निराशा भी हुई। उसी वक़्त ना जाने कहाँ से, अचानक एक ख्याल आया। क्यों ना अब की बार एक कहानी लिखी जाये। आज भी अच्छी तरह याद है। यह बात ३१ जुलाई की सुबह करीब ८ बजे की है और मैं कहानी लिखने बैठ गया। १० बजे तक कहानी पूरी भी हो गई लेकिन शब्द सीमा से ज्यादा बड़ी हो गई।

प्रकाशकों के मुताबिक अधिकतम ३०० शब्द हो सकते थे। मेरी कहानी में कुल ३९० शब्द थे। खैर, अब उसमें काट छांट शुरू हुई और आखिर में पूरी कहानी कुल २८५ शब्दों में सिमट गई।

कहानी पूरी करने के बाद हमने अपनी पत्नी से राय ली, और उनकी संतुष्टि होने के बाद, करीब ११ बजे अखबार में लिखे हुए ईमेल पर भेज दी। कहीं ना कहीं हमारे मन में ये बैठ चुका था कि कोशिश तक ठीक है लेकिन अपनी भेजी हुई रचना प्रकाशित नहीं होगी।

ईश्वर को तो कुछ और ही मंज़ूर था | २ अगस्त की सुबह, करीब सवा छह बजे थे। हम अपनी आदत के अनुसार घर के बाहर पड़े अखबार को उठाने गये। घर के अन्दर आकर सबसे पहले अखबार का मित्रता दिवस वाला पन्ना निकाला। ओह, माय गोड, उस पन्ने के दाँए भाग में सबसे ऊपर हमारी कहानी छापी गई थी। जल्दी से पूरी कहानी पढ़ी। कहीं कोई बदलाव नहीं हुआ था। सब ठीक था। सच कहूँ, मुझे विश्वास नहीं हो रहा था।

मेरी ख़ुशी सातवें आसमान पर थी। हमारी श्रीमतीजी करीब साढ़े छह पर घूम कर आयी। जैसे ही उनको देखा, हम अन्दर से चिल्लाये, मेडम, अपनी कहानी छ्प गई।

पत्नी भी हमारे लिए बहुत खुश थी। हम तो सच में जैसे ख़ुशी से पागल हो गये थे। WhatsApp पर अपने सभी मित्र और सगे सम्बन्धियों को बताया और कुछ ख़ास मित्रों से फोन पर बात भी की।

जब ये सब चल रहा था, कंप्यूटर के जरिये एक साईट पर, कविता और कहानियों की प्रतियोगिता भी चल रही थी। हमने उसमे भी अपना नाम दे दिया। उस साईट पर ३-४ कविता और एक कहानी प्रतियोगिता में डाल दी। अगले २४ घंटे में कविताएं पढ़ने वाले लोग कुछ २०-२५ थे लेकिन हमारी कहानी को सीधे २०० के ऊपर लोग पढ़ चुके थे और लाइक भी किया था और उसी दिन से, कविताओं के साथ, मैं कहानियाँ लिखने लगा।


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