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कुछ इंसानी जज़्बात

कुछ इंसानी जज़्बात

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कॉलेज में एक नयी लड़की आयी थी, शाहीन बहुत सुन्दर हैं वो। बाल लम्बे-लम्बे काली घटा से लगते है। नीली आँखे इतनी दिलकश और चेहरा मासूम सा कि देखने वाले बस देखते रह जाए। मैंने पहली बार इतनी ख़ूबसूरत लड़की को देखा है ! बिल्कुल ख़्वाब जैसी है वो क्योंकि इतनी सुंदर लड़की असल ज़िंदगी में कहाँ देखने को मिली है मुझे अब तक। अगर उसकी ख़ूबसूरती का बखान करना हो तो उसे “हूर” भी कहना कम पड़ जाएगा। हर कॉलेज की तरह हमारे कॉलेज में भी नए बच्चों की रैगिंग का प्रचलन था। लेकिन उसका एडमिशन देर से हुआ था इसलिए वो बच गयी थी। और ना किसी सीनियर ने उसको देखा है सब बहुत व्यस्त हैं। कॉलेज में होने वाले प्रोग्राम के लिए, नए एडमिशन वाले बच्चों के बारे में बताने की ज़िम्मेदारी मेरी थी। क्योंकि मैं पढ़ने लिखने वाला बच्चा था तो सीनियर ने मुझे मुख़बिरी का काम दे दिया था। उसको बचाने के लिए मैंने किसी को उसके बारे में नहीं बताया। बाक़ी लड़कियों से कुछ अलग थी वो; शांत सी, अल्हड़, अपने में ही मस्त रहती थी। किसी से ज़्यादा बात करते, हँसते बोलते नहीं देखा था, मैंने उसको कभी। ऐसे तो मैं हर वक़्त उसको नहीं देखता था। लेकिन जब वो सामने आती थी तो उसको देखने से ख़ुद को रोक भी नहीं पाता था।

अरे ! मैं क़ासिद हूँ। ऐसे तो कोई नहीं, ये मेरी स्टोरी भी नहीं है, मैं क्लासमेट हूँ शाहीन का। असद मेरा दोस्त है। असद कौन है ? ये आगे पता चलेगा। आप मुझे इस कहानी का सूत्रधार भी कह सकते हैं।

“कॉलेज में इंटर कॉलेज फेस्ट शुरू होने वाला था। सभी बहुत उत्सुक थे। हर बार की तरह 3rd year के बच्चों ने एक नाटक तैयार किया था। सब कुछ लगभग पूरा ही था। बस नाटक का हीरो अभी तक छुट्टियों पर ही था। नाटक का हीरो असद था। वो कॉलेज में होने वाली हर प्रतियोगिता में अव्वल आता था। दूसरे कॉलेज से होने वाले मुक़ाबले में भी उसको ही हीरो बनना था। प्रतियोगिता में बस तीन महीने ही बचे हैं, सब बहुत परेशान थे क्योंकि असद अभी भी छुट्टियाँ ही मना रहा था। किसी ने भी उससे पूछकर उसका नाम नहीं दिया था। सबने परेशान हो कर मुझसे असद को कॉलेज लाने के लिए कहा, असद और मैं बचपन के दोस्त हैं। उसके अब्बा और मेरे अब्बा एक ही ऑफ़िस में काम करते हैं।

“ठीक है, मैं आज उसके घर जाऊँगा।” शाम को कॉलेज से वापस आते वक्त मैं असद के घर जाने का फ़ैसला लिया। 2 महीने पहले असद का ऐक्सिडेंट हो गया था अचानक एक लड़की उसके कार के आगे आ गयी थी और असद की गाड़ी पेड़ से टकरा गयी थी। ऐक्सिडेंट के बाद उसका दायाँ पैर टूट गया था। वो ठीक से चल नहीं पाता था। इसलिए कॉलेज भी नहीं आ रहा था। मैं भी बहुत दिनों बाद उससे मिलूँगा। अब कैसे मनाऊँगा उसको कॉलेज आने के लिए यही सोचते सोचते मैं असद के घर आ गया।

“सब ख़ैरियत ?” मैंने उसके कमरे में घुसते ही पूछा। “बड़े दिन बाद मेरी याद आयी” “अरे, इग्ज़ाम थे यार, तुम्हें तो पता ही अब्बा अच्छे नम्बरों के लिए कितना बोलते हैं।” ये छोड़ो अब कॉलेज आओ तुम नाटक के हीरो हो तुम।

“मुझसे बिना पूछे मेरा नाम किसने दिया? किसको एक लंगड़ा हीरो चाहिए।” “क्या बकवास है, तुमने बस एक बहाना बना लिया है ख़ुद को इन चार दीवारों में बंद करके रखने के लिए। किसी को पता भी ना चले अगर तुम बोलो ना। बहुत हो गया असद अब चुपचाप कॉलेज आ जाओ कल से। “ मैं ग़ुस्से में उसके कमरे से निकल आया।"

दूसरे दिन मैं डरते डरते कॉलेज गया। अगर आज असद कॉलेज नहीं आया तो मेरी पिटाई पक्की है। जैसे ही मैं कॉलेज के पास आया मुझे शाहीन दिखी वो पैदल ही कॉलेज आ रही थी। “चलिए मैं आपको कॉलेज तक ले चलूँ ”

“ कॉलेज ज़्यादा दूर तो नहीं, मैं पैदल ही चली जाऊँगी ” “ अरे, मैं भी तो वही जा रहा हूँ। ” हमारी मंज़िल एक ही है मैंने हँसते हुए कहा। थोड़ा हिचकते हुए उसने कहाँ, ठीक है चलिए, “इतना कह पर वो मेरे पीछे बैठ गयीं। उफ़्फ़ ! कितना अच्छा परफ़्यूम था उसका, इतना सोच ही रहा था कि हाय ! उसने काँधे पर हाथ रख दिया, मैं उस पल में सदियाँ जी लिया। एक पल के लिए मैं असद, कॉलेज सब भूलकर बस उस पल में जी रहा था। ख़ैर कॉलेज आया तो देखा की असद कैंटीन में बैठा है, उस समय मुझे दुनिया की सारी ख़ुशियाँ मिल गयी थी। मैंने बाइक खड़ी की और शाहीन से क्लास के बाद मिलने का वादा ले कर, असद से आकर मिला। “ बड़ा ख़ुश हो ” असद और कुछ बोलता उससे मैंने बोला कि सिर्फ़ दोस्त है और कुछ नहीं। फिर हम नाटक के दूसरे कलाकारो से मिलने आ गये। हीरो तो तैयार है अब हिरोईन को खोजा जाए। क्या अभी तक हिरोईन नहीं मिली ? बहुत कम टाइम रह गया है। असद बोल ही रहा था कि मेरे दिमाग में शाहीन का नाम आया, मैंने सोचा था की इसी बहाने बात शुरू करुँगा। मैंने असद को बोला एक लड़की है, मेरे नज़र में। मैं उससे पूछ के बताऊँगा; ठीक है ! चलो कैंटीन जा के बात करते है। ये सोचते हुए कि मैं शाहीन से कैसे बात करूँगा हम कैंटीन आ गये। शाहीन भी कैंटीन में थी, उसको देखते ही मुझे सुबह की हर बात याद आ रही थी। “अरे ! ये तो वही लड़की जो तुम्हारे साथ आज आयी थी।” हाँ , वही है। तो चलो साथ बैठते है। हाँ, चलो। हम शाहीन की साथ वाली कुर्सियों पर आ कर बैठ गए।

“ शाहीन ये असद है, मेरा बहुत अच्छा दोस्त है। ” “ सलामअलैकुम ” “ वालेकुमसलाम ” शाहीन कॉलेज में एक नाटक हो रहा है, उसमें मेरी हिरोईन बनोगी,असद ने मेरे मुँह की बात छीन ली। अच्छा,अगर मैं नाटक में हिस्सा लूँगी तो पढ़ाई छूट जाएगी। पढ़ाई, अरे उसकी चिंता तुम मत करो, अपना क़ासिद किस दिन काम आएगा। हाँ ! हाँ हाँ क्यों नहीं मैं तुम लोग का काम कर दिया करूँगा। शाहीन बोली - “ तब ठीक है, बहुत मज़ा आएगा ” मैंने भी सहमति जतायी। तभी असद ने कहा, मैंने आपको पहले भी कही देखा है बस याद नहीं कि कहाँ देखा है। मैंने असद की बात बीच में काटते हुए कहा, चलो कुछ खाने का माँगाते है। बातो बातो में असद ने ऐक्सिडेंट और पैर के बारे में भी बताया । लँगड़ा ! मुझे तो आप ठीक-ठाक लगे। कुछ तो नहीं पता चल रहा। मैंने कहा, “ हाँ डॉक्टर ने भी कहा है की समय के साथ ठीक हो जाएगा इसका पैर ” समय के साथ क्या जल्दी ही ठीक हो जाएगा, शाहीन ने असद के हाथ को पकड़कर बोला उस दिन के सारे लेक्चर हमने कैंटीन में बाते करते ही बीता दिए।

देखते ही देखते हम तीनो में अच्छी दोस्ती हो गयी, और शाहीन नाटक की हीरोइन भी बन गयी। नाटक के कुछ दिन पहले ही असद का पैर ठीक हो गया था, अब वो बिना किसी सहारे के आराम से चल पाता था। कॉलेज ने नाटक में पहला स्थान जीता था। सबने असद और शाहीन की जोड़ी को ख़ूब सराहा। असद शाहीन को चाहता है ये बात मुझे पता थी लेकिन मैं जान के भी अनजान बनने की कोशिश कर रहा था। फिर एक दिन असद ने बोल ही दिया शाहीन को और उसने कुछ कहा नहीं बस थोड़ा वक़्त माँगा। उस दिन से मैंने असद और शाहीन से बातें कम कर दी, मुझसे बहुत बार शाहीन ने बात करने की कोशिश की, लेकिन मैंने तो ख़ुद सपने सजाकर अपना दिल तोड़ा था। मैंने दोनों से बात नहीं की। मेरी शाहीन असलियत में मेरी नहीं तो क्या मैं अपने ख़्यालों में उसको अपना कह सकता हूँ। मेरे ख़्यालों पर किसी असद का पहरा नहीं।

ख़ैर इग्ज़ैम शुरू हुए और मैं पढ़ाई में लग गया, आख़िरी इग्ज़ैम के दिन मुझे शाहीन का ख़त मिला आज शाम को कॉलेज में पार्टी है। मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ 7 बजे तक आ जाना। अब मुझे क्यों बुला रही है, क्या बात हो सकती है ? उसने अभी तक असद को जवाब नहीं दिया, हो सकता है वो मुझसे प्यार करती हो वो मुझसे यही कहना चाह रही हो। यही सब बाते थी मेरे दिमाग़ में सोचते-सोचते मैंने सारा दिन गुज़ार दिया, शाम को अच्छे से तैयार हो कर पहुँचा तो देखा की असद भी वहाँ था, शाहीन पार्टी हॉल के बहुत दूर खड़ी थी। हम शाहीन के पास गये, उसने वही मनमोहक परफ़्यूम लगाया था। कोई इतना सुंदर कैसे हो सकता है मैं नहीं जानता। शाहीन ने मेरा और असद का हाथ पकड़ा और कहा, तुम दोनों की दोस्ती मेरे आने से पहले भी थी और मेरे जाने के बाद भी रहेगी। मैं चाह कर भी तुम दोनो में से किसी की नहीं हो सकती। आख़िर क्या हो गया ऐसा ? असद ने सवाल करते हुए मेरी तरफ़ देखा। शाहीन ने कहाँ, कुछ नहीं तुम दोनों ही मुझसे मोहब्बत करते हो और मेरी कुछ मजबूरियाँ है, कुछ बंदिशे है मैं तुम दोनो में से किसी को नहीं चाहती हूँ। अरे ! दोनों को कौन बोल रहा है किसी एक को चुनो बस, मैंने खीझकर कहा। मैं जिस दुनिया से आती हूँ वहाँ ये इंसानी जज़्बात नहीं होते। इंसानी जज़्बात ? इतना कह कर मैंने असद की तरफ़ देखा। तब ही मैंने शाहीन की झील सी नीली आँखों में देखा वो कुछ कह रही थी। मुझे उन आँखो में ही अपनी दुनिया दिखती थी। मैं शायद जितना बोलूँ उतना ही तुम दोनो को मेरी बाते समझ में नहीं आएगी।

बस तुम दोनों इतना समझो की तुम दोनों मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। और मैं अक्सर तुम लोगों से मिला करूँगी, हर दम तुम्हारे आस-पास रहूँगी बस साथ नहीं। इतना कह कर शाहीन ने हम दोनों का हाथ पकड़ा और वादा लिया ,की हम एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे। हमने वादा किया, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा था। तब तक शाहीन ने कहा चलो मेरे चलने का वक़्त हो गया, इतना कह कर उसने हमारा हाथ छोड़ा, मानो एक पल में पूरी दुनिया ही छूट गयी मेरे हाथो से। शाहीन चलती गयी और धुँध में कही खो गयी।

मैं घर आया और सो गया, सुबह उठा तो शाहीन को खोजा असद के घर गया उसे भी नहीं पता था कि शाहीन कहाँ है। वो भी परेशान था। एक दो महीने बाद शाहीन फिर मिली, जब मेरी नौकरी लगी थी। फिर बहुत सालों बाद असद के निकाह में भी दिखी थी मुझे, बहुत ख़ुश थी। मैं अपने निकाह में उसको खोज रहा था लेकिन मुझे दिखायी नहीं दी। अक्सर उसकी परफ़्यूम की ख़ुशबू मुझे अपने आस पास महसूस होती थी, और मैं बस मुस्कुरा देता था।

आज 7 साल बाद पहली बार जब अपनी बेटी को गोद लिया मैंने वही नीली आँखे देखकर मुझे लगा मेरी शाहीन मुझे मेरी बेटी के रूप में मिल गयी। मैं उसकी नीली आँखे देख कर मैं बहुत ख़ुश हो गया था। थोड़े समय बाद शाहीन आयी थी शायद, मैं अपनी बेटी को गोद में लेकर अपनी बीवी के पास बैठा था। मेरी आँख लग गयी थी और अचानक से शाहीन की ख़ुशबू से मेरी आँख खुल गयी। मैंने उठकर इधर उधर देखा मुझे शाहीन कहीं दिखीं नहीं, मैं मायूस हो कर वापस कमरे में आ गया।

मैं अपनी ज़िन्दगी की हर ख़ुशी और दुःख के पलों में शाहीन को अपने क़रीब महसूस करता था। अकसर वो और उसकी ख़ुशबू मुझे अपने क़रीब ही लगते थे। मुझे आज भी याद है, जब मेरी बीवी अंतिम साँसें ले रही थी। मेरे साथ शाहीन भी रो रही थी। वो मेर बच्चों के पास खड़ी थी। उसको देख कर मुझे थोड़ा चैन मिला लेकिन मेरी बीवी के जाने का दुःख शायद कभी ख़त्म नहीं हो सकता था। मैंने असद को शाहीन को दिखाया, वो शाहीन को नहीं देख पा रहा था। यहाँ तक कि शाहीन उसको कॉलेज के आख़िरी दिन के बाद कभी नहीं दिखी। अच्छा ! ये कैसे हो सकता है ? कुछ समय बाद शाहीन से मैंने बात की, मैंने उससे पूछा कि तुमने कभी असद से मिलने की कोशिश क्यों नहीं की? उसका जवाब था की, असद ने कभी मुझे देखने की कोशिश नहीं की। जीवन के हर मोड़ पर मैंने शाहीन को अपने साथ पाया, हम अलग हो कर भी साथ थे। शायद उसकी दुनिया और मेरी दुनिया में बस इतना ही मेल हो सकता था।


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