काया पलट
काया पलट
"कितना सुंदर दृश्य है भाई, नाव जरा धीरे धीरे चलाओ।"
मनोहर ने नाविक से कहा।
"अरे साहब, किसी जमाने में ये झील कचरे और गंदगी से भरी पड़ी थी कोई इधर आना और इसको देखना भी पसन्द नहीं करता था, लेकिन जब यहाँ के लोगों ने सोच लिया इसका काया पलट करने का फिर तो देखिए, नतीजा आपके सामने है। गंदगी और कचरे का ढेर बन चुकी, आज ये झील खूबसूरत सरोवर बन चुकी है।"
"तुम ठीक कहते हो भाई मनोहर बोले .... अगर इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता।"
और मनोहर अपनी ज़िंदगी के उन दिनों में खो गए जब उनका जीवन भी इसी तरह बेतरतीब और कचरे के ढेर जैसा बन गया था, इतना दूषित की खुद को भी घिन आने लगी ...
दोस्तों की गलत संगत और रोकटोक के बिना उनको नशे की ऐसी लत लग चुकी थी कि अपना पूरा जीवन दांव पे लगा दिया और न जाने क्या क्या बर्बाद कर दिया। रुपया, पैसा, इज्जत, मान, मर्यादा, नौकरी सब खो दिया। नशे की लत के कारण घर परिवार रिश्ते नाते सब दूर हो गए और वो उपेक्षित और एकाकी रह गए लेकिन धीरे-धीरे जब अपना ही शरीर साथ छोड़ने लगा लीवर, किडनी जवाब देने लगे तो मनोहर ने ठान लिया। जब आँख खुले तब ही सवेरा ....नाव धीरे धीरे किनारे की तरफ बढ़ रही थी .......!