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धोबन

धोबन

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संडे का दिन है, इसलिए वली देर तक सो रहा है। तभी कोई दरवाज़ा खटखटाता है, जिससे वली की नींद टूट जाती है, वो न चाहते हुए भी उठा  और बेमन से दरवाज़ा खोला । 

“कपड़े हैं?” वली के कान में एक मीठी सी आवाज़ खनखनाई , उसने ठीक से देखा, सामने एक औरत खड़ी है। वली को कुछ समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे? उस औरत ने भी और कुछ नहीं कहा ,दोनों बस एक-दूसरे को ऐसे देख रहे हैं जैसे बरसों के बाद मिले हैं जबकि हक़ीक़त ये है कि दोनों ने एक-दूसरे को पहली बार देखा है।  शायद यही वजह हो कि वली को आरती और उसकी आवाज़ इतनी अच्छी लग गई और आरती को वली की ख़ामोशी भा गई। 

वली ने आरती को कपड़े तो दे दिए लेकिन जब आरती जाने लगी तब वली उसे जाते हुए देखने लगा और सोचने लगा कि, “बताओ? क्या क़िस्मत है बेचारी की इतनी ख़ूबसूरत और काम करती है एक धोबन का” उसे ख़ुदा के ऊपर बड़ा गुस्सा आया उस वक़्त। 

उसने आरती को जाते हुए पीछे से देखा, आरती का जिस्म गठा हुआ और सीधा है, मेहनत करती है न, इसलिए वली ने देखा, आरती के ब्लाउज़ के ऊपर और नीचे उसकी पीठ खुली हुई थी, जो वली की आँखों में बस गई, आरती की रीढ़ की हड्डी की गहराई में वो जैसे डूब सा गया. आरती की लम्बी पीठ जैसे एक शहर से दूसरे शहर तक जाती हो, वली ने बहुत लम्बा सफ़र तय किया उसकी कमर से उसके कन्धे तक जाने में। 

जब आरती उसकी आँखों से ओझल हो गई तब वली को बड़ा अफ़सोस हुआ, लेकिन तभी वली को लगा जैसे उसका दिल उससे कुछ कह रहा है, उसको लगा जैसे उसका दिल उससे कह रहा हो कि, “तुम इसकी क़िस्मत क्यों नहीं बदलते? बेचारी इतनी ख़ूबसूरत तो है?”

वली को महसूस हुआ कि उसे उस औरत से प्यार हो गया जिसने “कपड़े हैं?” बस इतना कहा था और थोड़ी देर के लिए उसकी आँखों में देख लिया था। 

अब वली आरती का हर संडे इन्तज़ार करने लगा। आरती आती, “कपड़े हैं?” पूछती, दोनों थोड़ी देर एक-दूसरे को हैरानी में देखते, फिर वली उसे कुछ कपड़े दे देता, फिर आरती चली जाती, और वली उसे जाते हुए पीछे से जी भर के तब तक देखता रहता, जब तक वो उसकी आँखों से दूर नहीं चली जाती। 

ये सिलसिला कई हफ़्तों तक चलता रहा, किसी ने भी इसके आगे किसी से कुछ भी नहीं कहा, लेकिन आरती को बिना पलट के देखे हुए ये महसूस हो गया कि वली उसे पीछे से देखता रहता है, इसका नतीजा ये हुआ कि अगले हफ़्ते आरती आई ही नहीं। 

वली इन्तज़ार करता रह गया, पूरा दिन बीत गया, आरती कपड़े लेने नहीं आई, अब वली को चिन्ता होने लगी कि, “कहीं आरती बीमार तो नहीं हो गई?” लेकिन जवाब कौन दे?

फिर एक हफ़्ता और बीता और आरती आई, इस बार तो आरती को देखते ही वली की धड़कन बढ़ गई, आँखों में चमक आ गई, जैसे बरसों की खोई हुई चीज़ ख़ुद चलके उसके पास आ रही हो, उसकी आँखों में आरती को फिर से देखने की इतनी ख़ुशी थी की ,आरती को लगा कि, “बेचारे का दिल न दुखाए” लेकिन वो कर भी क्या सकती थी?

“तुम पिछले हफ़्ते आई क्यूँ नहीं? मैं इन्तज़ार कर रहा था”

“इसीलिए नहीं आई”

“मतलब?”

“मतलब मैं पहले से शादी-शुदा हूँ, मेरा इन्तज़ार मत किया करो”

वली के लिए ये सुनना ऐसा था, जैसे एक बड़ा सा पहाड़, जिसके नीचे खड़े होके, वली उस पहाड़ को बड़ी देर से निहार रहा था, अचानक उसके ऊपर ही गिर गया हो, और वो उसके नीचे दब गया हो, बड़ी मुश्किल से उसने अपने आप को उस बड़े से पहाड़ के मलबे से बाहर निकाला, उस दिन दोनों में फिर और कोई बात नहीं हुई, वली ने कपड़े दिए, आरती चली गई,वली उसे जाते हुए देखता रहा। 

एक हफ़्ता बीता, आरती को लगा कि, “अब वली समझ गया होगा और मेरा इन्तज़ार नहीं करेगा” एक तरह से आरती के मन का बोझ हल्का हो गया था कि उसने वली को अपनी हक़ीक़त बता दी थी लेकिन दूसरी तरफ़ उसकी हक़ीक़त ही उसे परेशान कर रही थी।  उसे महसूस हुआ कि वली का उसे जाते हुए देखना असल में अच्छा लगता था, लेकिन अब तो उसने उसे मना कर दिया, अब तो वली उसे देखके मुस्कुराएगा भी नहीं , ऐसे बहुत से सवाल अपने मन में बुदबुदाते हुए और उदास चेहरा लिए हुए आरती कपड़े लेने आई, वली ने दरवाज़ा खोला, उसे आज आरती के चेहरे पे उतनी ख़ूबसूरत नहीं दिखाई दी,लेकिन वली ने ये ज़रूर महसूस किया कि वो उदास है। 

“कुछ परेशानी है?” वली ने कपड़े देते हुए धीरे से पूछ लिया , वली ने धीरे से पूछा था लेकिन आरती के सीने में जैसे कोई ज़ोर का धक्का लगा हो और उसे महसूस हुआ हो कि उसके आसपास की चीज़ें हिल रही हैं, उसने वली को देखा, वली उसके जवाब का इन्तज़ार कर रहा था। 

“बेटी बीमार है” आरती ने अपनी परेशानी को एक बहाने से छिपाना चाहा, वली को सुनके झटका तो लगा लेकिन वो ये झटका भी मुस्कुरा के सह गया। 

“कितनी बड़ी है?”

“चार साल की” आरती ने कपड़े समेटते हुए कहा लेकिन उसके मन के अन्दर कुछ बिखर रहा था जो उसके समेटने से सिमट नहीं रहा था। 

“डॉक्टर को दिखाया?”

“तुम मेरी इतनी चिन्ता मत किया करो” आरती ने झुंझलाते हुए कहा और कपड़ों का बंडल लेके चल दी, वली चुपचाप उसे जाते हुए देखता रह गया, फिर उसने सोचा, “मैंने तो बेटी के बारे में पूछा था, इसमें इतना बुरा मानने वाली क्या बात थी?”

उधर आरती झूठ बोलके पछता रही थी, उसे लगा, “शायद अगर मैं ये कहती कि, “मैं बीमार हूँ” तब भी शायद वली यही कहता, “डॉक्टर को दिखाया?” लेकिन तब उसकी चिन्ता मेरे लिए होती” आरती एक अजीब सी उलझन में उलझती जा रही थी जिसका उसे कोई हल नहीं दिख रहा था। 

अगले हफ़्ते आरती और भी उदास दिखी,वली ने फिर पूछा, “क्या बात है?” इस बार आरती ने सोचा कि, “वली की उधार की चिन्ता नहीं लूँगी” उसने कहा, “देखो! मेरा एक पति है जो शराब पीके मस्त रहता है, मेरी एक छोटी सी बेटी है जिसकी ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर है, तुम इस तरह से मुझे मत देखा करो”

वली को आरती की हालत समझ में आ रही थी, उसने एक गहरी साँस भरी और कहा, “मेरे पास आ जाओ, सब ठीक हो जाएगा” आरती का मुँह हैरानी से खुला रह गया, वो वली को अपनी हक़ीक़त इसलिए बता रही थी ताकि वो उसका इन्तज़ार न किया करे मगर वो है कि उल्टा और आगे बढ़ता जा रहा है, उसने इस बात को ख़तम करना चाहा। 

“और मैं अपने पति का क्या करूँ?”

“अगर तुम उसके साथ ख़ुश हो, तो रहो, नहीं हो, तो मत रहो, तुम इतनी ख़ूबसूरत हो, इस तरह कब तक जिओगी?” आरती की आँखों में आँसू आ गए जो उसकी आँखों में एक पल भी नहीं रुके और उसके गालों पे ढुलक गए। 

“और मैं अपनी बेटी का क्या करूँ?”

“उसे भी ले आओ अपने साथ?”

“और हम खाएँगे क्या?” इस सवाल ने वली को चुप कर दिया, आरती को लगा कि उसने ग़लत सवाल पूछ लिया लेकिन उसे पूछना ज़रूरी था। 

“ये मैं अपने लिए नहीं पूछ रही हूँ, मैं अपनी बेटी की ज़िन्दगी ख़तरे में नहीं डाल सकती, तुम अभी पढ़ते हो, नौकरी भी नहीं है तुम्हारे हाथ में, मैं तो किसी तरह रह लूँगी लेकिन बेटी...” आरती को जैसे हाथ आया हुआ ख़जाना छूटता हुआ महसूस हुआ। 

“पैसे की चिन्ता मत करो,अगले महीने मेरे फ़ाइनल ईयर इक्ज़ाम्स हैं, उसके बाद मुझे नौकरी मिल जाएगी,तुम इस तरह दुखी मत रहा करो, मुझे अच्छा नहीं लगता”

अब आरती के पास कोई बहाना नहीं बचा। 

“मैं जा रही हूँ” आरती ने बस इतना कहा और चल दी, उसने वली की किसी भी बात का जवाब नहीं दिया, उसके सामने उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी का फ़ैसला रख दिया था, जिस पर आरती को सिर्फ़ ‘हाँ’ की उँगली रखनी थी, लेकिन आरती अपने पति को नहीं छोड़ सकती थी, भले ही वो शराबी है, भले ही वो उसे मारता-पीटता रहता था। 

“अब मैं वली के पास कभी नहीं जाऊँगी” उसने अपना जी कड़ा किया और फिर वो सच में वली के कपड़े लेने नहीं आई,वली को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो इस पागल औरत का करे क्या?

कुछ दिन बाद जब आरती एक दूसरी सोसाईटी में कपड़े लेने गई थी, वहाँ उसने कुछ लड़कों को आपस में बात करते हुए सुना कि, “अगले महीने फ़ाइनल ईयर इक्ज़ाम हैं, कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, नहीं तो अच्छे नम्बर नहीं आएँगे” अब आरती को वली की याद आई और उसका जी धक से रह गया , “कहीं वली का इक्ज़ाम मेरी वजह से ख़राब न हो जाए, कहीं वली इस बार फ़ेल न हो जाए”

और अगले हफ़्ते आरती वली के दरवाज़े पे खड़ी थी, वली इस तरह बैठा था, जैसे वो पिछले दो हफ़्तों से वहीं बैठा उसका इन्तज़ार कर रहा था, और गुस्से से भरा था, आरती सीधा कमरे में घुसी और उसने वली को अपने पास बुलाया।

“अन्दर आओ” वली दुखी सा आरती के सामने गया। 

“मुझे इसी बात का डर था और मैं यही कहने आई हूँ कि मेरे पीछे अपनी ज़िन्दगी बर्बाद मत करो” वली ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उसने आगे बढ़के उसे अपने गले से लगा लिया, ऐसी दीवानगी देखके आरती के आँसू निकल पड़े, फिर दोनों ने कस के एक-दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ लिया, फिर वली ने उसके गाल पे बनी आँसू की सड़क मिटा दी और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, जिसके लिए आरती मना न कर सकी, फिर वली ने उसे अपने सीने से कुछ इस तरह लगा लिया, जैसे वो उसकी हर परेशानी को अपने गले से लगा रहा हो, आरती को पहली बार अपने जिस्म पे किसी मर्द का इतना मुलायम हाथ महसूस हुआ, उसे अच्छा लगा, अब वली उसको बेतहाशा चूमने लगा, फिर जब वली का हाथ आरती के सीने पे पहुँचा, तब आरती को महसूस हुआ कि उसके अन्दर एक समन्दर जितना बड़ा तूफ़ान उमड़ रहा है, जो अब सारे किनारे तोड़ देगा, तब उसने वली को आगे बढ़ने से रोक दिया। 

“पहले अच्छे नम्बरों से पास हो जाओ.” आरती ने इतना कहा और कमरे से बाहर निकल गई, वली को समझ में आ गया कि, “अब मुझे क्या करना है?” फिर उसने जी-तोड़ मेहनत की और आरती को ख़ुश करने के लिए ख़ूब मन लगा के पढ़ने लगा जिसकी वजह से उसके पेपर्स बहुत अच्छे गए। 

इतना सबकुछ हो गया लेकिन आरती उससे मिलने नहीं आई, जिसके लिए उसने इतनी मेहनत की थी, तब उसे लगा कि, “शायद आरती सिर्फ़ मुझे समझाने आई थी” उसे ये बात एक तरह से अच्छी लगी, लेकिन आरती का अब भी न आना, वली को समझ में नहीं आया। 

फिर उसने सोचा, “कुछ दिन के लिए दिल्ली हो आता हूँ, और घरवालों से मिल भी आता हूँ”

और जिस दिन वली दिल्ली के लिए निकला, उसी दिन आरती उससे मिलने आई, लेकिन उसे वली के दरवाज़े पे ताला लटका हुआ मिला, आरती ने बस थोड़ी सी देर कर दी थी। 

वली दिल्ली पहुँचा और जैसा कि उसकी पढ़ाई अब पूरी हो चुकी थी, इसलिए उसके घरवालों ने उसके लिए एक अच्छी सी लड़की देख रखी थी, जिसे उन लोगों ने इस बार वली से मिलवा दिया, वली इस रिश्ते को मना नहीं कर पाया, क्यूँकि उसे आरती की तरफ़ से अभी तक कोई ‘हाँ’ नहीं मिली थी, और वो अपने घरवालों से कहता भी तो क्या कहता, क्या ये कि, “मैं एक धोबन से प्यार करता हूँ, जिसका एक शराबी पति है और जिसकी एक छोटी सी बेटी है” वली कुछ नहीं कह पाया, और न चाहते हुए भी उसकी शादी हिना के साथ हो गई। 

इधर वली के दरवाज़े पे ताला लटका देख आरती को घबराहट होने लगी, उसे अहसास हुआ कि अब वो ख़ुद वली के लिए तड़पने लगी है, वो वली को बस एक बार देखना चाहती थी, और उससे माफ़ी माँगना चाहती थी, और उसे अपने सीने में छुपा लेना चाहती थी, और वो उसके आगे बिछ जाना चाहती थी, और वो वली को सबकुछ करने देना चाहती थी, जिसे करने से उसने उसे अब तक रोक रखा था। 

दिन बीत रहे थे, लेकिन वली की कोई ख़बर नहीं थी, फिर दो महीने के बाद जब वली अपनी किताबें और सामान लेने के लिए आख़िरी बार बम्बई आया , तब अपने दरवाज़े पे आरती को पाया , आज इन्तज़ार आरती कर रही थी, लेकिन वली की आँखों में उसे अपने लिए कोई तड़प महसूस न हुई, और इस बात ने आरती का कलेजा अन्दर से चीर दिया, उसने अपने आपको समझाया कि, “हो सकता है, वली मुझसे नाराज़ हो, कोई बात नहीं, मैं अभी उसे मना लूँगी” और दरवाज़ा खुलते ही आरती, वली से कुछ इस तरह लिपट गई, जैसे उसकी कोई बहुत क़ीमती चीज़ उसे वापस मिल गई हो, लेकिन ये उसका भ्रम था, वली ने आज कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई उसमें, फिर आरती ने उससे बस इतना पूछा, “नाराज़ हो मुझसे?”

“नहीं.”

“फिर ये बे-रुख़ी किसलिए वली? देखो, मैं तुमसे मिलने आई हूँ, पूरे दो महीने मैंने तुम्हारा इन्तज़ार किया है, क्या बात है?”

वली के सब्र का बाँध अब टूट गया, उसने कहा, “मेरी शादी हो चुकी है आरती, तुमने मेरी बातों को मज़ाक़ समझा और दिल्ली में मैं किसी को रोक नहीं पाया, तुमने एक इशारा किया होता, तो सबकुछ रुक सकता था, तुम और मैं एक हो सकते थे, मेरे कपड़े मशीन में धुलते हैं, मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है, ये तो कुछ किताबें न लेनी होतीं तो शायद मैं बम्बई आता ही नहीं”

वली के मुँह से इतना सबकुछ एक साथ सुनके, आरती मिट्टी की एक पुरानी दीवार की तरह ढ़ह गयी , लेकिन थोड़ी ही देर में उसने अपने आप को सँभाल लिया, वो खड़ी हुई और वली की किताबें पैक करने लगी, वली उसे देखता रहा, वो रोती रही और वली की चीज़ें पैक करती रही, और फिर आख़िर में वली से नहीं रहा गया, और उसने पीछे से आकर आरती को अपनी बांहों kahaniमें ले लिया, आरती बिलखते हुए पलटी है और वली को अपने सीने से लगा लिया , फिर दोनों एक-दूसरे को तसल्ली देने लगे। 

दोनों को पता था कि, “अब हमारा मिलना फिर कभी नहीं होगा” इसलिए उनके बीच कुछ भी ना तो करने जैसा था, और ना तो रोकने जैसा था, इसलिए दोनों अपने जज़्बात के बहाव में बह गए और बहुत दूर निकल गए, एक-दूसरे को जी भर के प्यार कर लेने के बाद, जब आरती पूरी तरह से थक गई, तब वो उठी, उसने अपनी साड़ी ठीक की, वली के माथे को चूमा और चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई। 

अब वली वापस दिल्ली चला गया और आरती उसकी यादों के सहारे के जीने लगी, आरती का पति पिछले दो महीने से उसके साथ सोने की कोशिश कर रहा है लेकिन आरती उसे किसी न किसी बहाने से टाल देती है, लेकिन तीसरे महीने में बात बिगड़ गयी , जब उसे पता चलता है कि आरती गर्भवती है। 

इस बारे में तो आरती ने कुछ सोचा ही नहीं था, अब उसके शराबी पति को एक बढ़िया बहाना मिल गया, और उसने आरती को उसकी छोटी सी बच्ची के साथ घर से बाहर कर दिया। 

अब आरती को वली से प्यार करने की सज़ा मिल रही थी, लेकिन वो वली की आख़िरी निशानी को ज़िन्दा रखना चाहती थी, इसलिए वो सड़क पे गुब्बारे और खिलौने बेचकर किसी तरह अपना और अपनी दो बेटियों का पेट पालने लगी, और इस तरह दस साल बीत गए। 

फिर एक दिन नरीमन पॉइण्ट पे कुछ बिज़नेसमैन, अपने ग्रुप के साथ समुन्दर देख रहे थे, तभी एक छोटी सी, मैली-कुचैली लड़की उनके आगे हाथ फैलाकर भीख माँगने लगी, वो बिज़नेसमैन लोग हिन्दुस्तान में इस तरह बच्चों के भीख माँगने को ग़लत बता रहे थे, मगर उन्हीं लोगों में से एक आदमी ऐसा था, जो उस लड़की को कुछ पैसे देना चाह रहा था, फिर उसने अपना पर्स निकाला और जैसे ही उस लड़की के हाथ में एक नोट रखना चाहा, किसी ने अचानक से उस लड़की का हाथ दूर खींच लिया, उस आदमी ने देखा, वो एक औरत थी, उसने सोचा, “ये औरत शायद इस लड़की की माँ होगी” तभी उस औरत और उस आदमी की नज़रें आपस में टकराईं और दोनों ने एक-दूसरे को पहचान लिया, वो औरत आरती थी और वो आदमी वली था, जो पिछले दस सालों में एक बहुत बड़ा बिज़नेसमैन बन चुका था। 

आरती ने जैसे ही वली को पहचाना, उसने अपनी बेटी को साथ लिया और वहाँ से तुरन्त ग़ाएब हो गई, वली आरती से बात करना चाह रहा था लेकिन अपने बिज़नेस पार्टनर्स के साथ होने की वजह से नहीं कर पाया। 

फिर वली कुछ बहाना करके अपने ग्रुप से अलग हुआ , और आरती को ढूँढ़ता है, जो उससे बचने के लिए सड़क पार करके वहाँ से भाग जाना चाहती थी, नरीमन पॉइण्ट का ट्रैफ़िक, तेज़ दौड़ती हुई गाड़ियाँ, मगर वली अब देर नहीं कर सकता था, वो किसी भी चीज़ की परवाह न करते हुए, चलती हुई गाड़ियों के बीच से सड़क पार करके, आरती के पास जा खड़ा हुआ, और आरती की दूसरी बेटी की ओर इशारा करते हुए उससे पूछा, “ये कब पैदा हुई?”

आरती वली को एक बार फिर अपने सामने देखकर ख़ुश भी हुई और दुखी भी हुई, लेकिन उसने कुछ भी ज़ाहिर नहीं किया, और वली की बात का बिना कोई जवाब दिए, अपनी बेटियों को लेके वहाँ से चली गई। 

वली की बिज़नेस मीटिंग खत्म हुई और अब उसे वापस दिल्ली जाना था, और जाने से पहले वो एक बार आरती से मिलना चाहता था, लेकिन आरती का कहीं कोई पता नहीं था, वली ने कई दिन नरीमन पॉइण्ट पे जाकर देखा, लेकिन उस दिन के बाद आरती नरीमन पॉइण्ट गई ही नहीं,आख़िर में थक-हार कर वली उदास मन लिए हुए, दिल्ली जाने के लिए अपने होटल से टैक्सी में बैठकर एअरपोर्ट के लिए निकला,और एअरपोर्ट के गेट के बाहर सड़क पे उसे आरती अपनी बेटियों के साथ गुब्बारे और खिलौने बेचते हुए दिख गई, उसने तुरन्त अपनी टैक्सी आरती की तरफ़ घुमा ली। 

आरती ने उसे अपनी ओर आते हुए देख लिया और अपना सामान समेट कर अपनी बेटियों को लेकर वहाँ से भागने लगती है।  वली भी टैक्सी छोड़कर उसका पीछा करता है, लेकिन दोनों ये बात भूल जाते हैं कि वो एअरपोर्ट के अन्दर दौड़ रहे हैं, जहाँ उन्हें सिक्यूरिटी देख रही है, जो वली को पकड़कर पुलिस के हवाले कर देती है। 

अब आरती को वली को पुलिस के चंगुल से बचाने के लिए सामने आना ही पड़ता है,पुलिस के सामने वो ये क़ुबूल करती है कि, “मैं वली को जानती हूँ, उसे छोड़ दिया जाए”

अब आरती का इतना ही कहना था कि ये बात पूरे शहर में आग की तरह फैल गई,वली, जो चुपचाप अपना काम करने आया था, अचानक से अपने दुश्मनों की नज़र में आ गया,वली बम्बई में ग़रीबों के लिए किफ़ायती दाम पर एक बिल्डिंग बना रहा था, जिसकी वजह से बम्बई के दूसरे बिल्डर्स की नज़र में वो चढ़ा हुआ था। 

अब जबकि वली पुलिस के पास था, और उसका रिश्ता एक सड़क पे गुब्बारे बेचने वाली औरत के साथ है, ऐसा टीवी पे दिखाया जा रहा था, तब सबको एक अच्छा मौक़ा मिल गया, उसे बदनाम करने का, और उसका धन्धा चौपट करने का.

आरती का शराबी पति, जिसने उसे घर से धक्के देकर बाहर निकाला था, उसने भी आरती को टीवी पे देखा, और जल-भुन गया, वली के प्रोफ़ेशनल दुश्मन आरती के शराबी पति को ढूँढ़ निकालते हैं, और उसे शराब और पैसे का लालच देकर, वली के ऊपर केस करने के लिए उकसाते हैं। 

इसके बाद आरती का शराबी पति अपनी पत्‍नी को वापस लेने आता है, वो वली के ऊपर केस कर देता है,वली फिर मुसीबत में पड़ जाता है, अब आरती को फिर सामने आना पड़ता है,और फिर आरती लाइव टीवी पे कहती है कि, “मैं अपने शराबी पति के पास वापस नहीं जाऊँगी”

अब मामला हिन्दू और मुस्लिम का हो जाता है, हिन्दू पण्डित लोग चिल्लाते हैं कि, “आरती को अपने पति के पास जाना चाहिए.” मुस्लिम मुल्ला लोगों को भी बोलने का मौक़ा मिल जाता है कि, “वली पहले से शादी-शुदा है, उसे अपनी बीवी हिना के पास जाना चाहिए.”

ये सारी ख़बर दिल्ली में वली के घरवालों तक भी पहुँचती है, उसकी बीवी हिना को समझ में नहीं आता है कि वो क्या करे? फिर अपने घरवालों के कहने पर वो वली के ऊपर उसकी बीवी होने के नाते दावा कर देती है कि, “वली की सारी प्रॉपर्टी और पैसे पे मेरा हक़ है.” वो चाहती है कि वली अपनी सारी दौलत मेरे नाम कर दे, लेकिन वली हिना के इस दावे को ख़ारिज कर देता है, फिर हिना गुस्से में आके वली से तलाक़ माँग लेती है,वली तलाक़ पे चुपचाप दस्तख़त कर देता है। 

आरती की मदद के लिए औरतों की मदद करने वाली कुछ ग़ैर-सरकारी संस्थाएँ आगे आती हैं, लेकिन आरती सबको मना कर देती है। 

फिर आरती पूरी दुनिया के सामने ये क़ुबूल करती है कि, “हाँ, मैंने वली से प्यार किया था, और मेरी दूसरी बेटी वली से है। लेकिन मैं वली की दौलत नहीं चाहती, इसीलिए वली से दूर भाग रही थी, मैं एक औरत हूँ, मुझे भी अपनी ज़िन्दगी अपने तरीक़े से जीने का हक़ दिया जाना चाहिए, मेरा शराबी पति जब मुझे मारता-पीटता था, तब किसी को मेरी याद नहीं आई क्यूँकि पति तो पति होता है, वो जब चाहे अपनी औरत को मार-पीट सकता है, जब मेरे पति ने मुझे घर से निकाला, तब कोई नहीं आया था मेरा हाल पूछने, अभी भी मैं अपनी मेहनत से अपनी दोनों बेटियों को पाल सकती हूँ,मुझे किसी की मदद नहीं चाहिए.”

अब ये जानने के बाद कि आरती की दूसरी बेटी उससे  है, वली से नहीं रहा गया ,और वो सबकुछ एक तरफ़ रखके, और किसी की भी परवाह न करते हुए, आरती और उसकी दोनों बेटियों को अपना लेता है। 

ये बात मीडिया में आग की तरह फैल जाती है, और सब लोग वली और आरती का इण्टरव्यू लेने के लिए उमड़ पड़ते हैं, वली और आरती किसी तरह भीड़ से निकलने की कोशिश करते हैं,आरती की बड़ी बेटी को वली अपने कन्धे पे रखता है, और छोटी बेटी को आरती सँभालती है, दोनों भीड़ से बाहर बस निकलने ही वाले थे कि तभी अचानक से गोली चलने की आवाज़ आई और भगदड़ मच गई। 

आरती ने पीछे मुड़के देखा, गोली वली को लगी थी और वो ज़मीन पे गिर रहा था, आरती मदद के लिए चीख़ती है, लेकिन उसकी मदद को कोई आगे नहीं आता , गोली की आवाज़ से उल्टा भगदड़ मच जाती है, मीडिया वाले आरती की मदद करने के बजाए वली को मरते हुए टीवी पे दिखाते हैं। 

आरती इधर-उधर देखती है, तभी उसे हिना भीड़ से बाहर जाते हुए दिखाई देती है, जिसके हाथ में पिस्तौल है, जिसे वो सड़क किनारे एक नाली में फेंक देती है, अब आरती अपना सिर पकड़ के बैठ जाती है और अपनी क़िस्मत पे रोने लगती है, उसकी वजह से वली की जान चली गई, इस बात का उसे सदमा सा लग गया। 

फिर कुछ दिन बाद वली का वकील आरती को ढूँढ़ता हुआ आता है, और बताता है कि, “वली ने अपनी सारी दौलत आरती और उसकी दोनों बेटियों के नाम पहले से ही कर दी थी, क्यूँकि उसे इस बात का पहले से अन्दाज़ा था कि उसका ख़ून हो सकता है.”

आरती काग़ज़ के टुकडों पर वली की आख़िरी ख़्वाहिश देखकर, और उसकी क़ुर्बानी पे आँसू बहाने लगती है। 

वली के घरवाले अपना इकलौता बेटा खोने के बाद अपनी पोती और वली की मुहब्बत आरती को अपनाना चाहते हैं और उससे उनके साथ दिल्ली चलके रहने के लिए कहते हैं। 

आरती सबकुछ सोचते हुए और अपनी दोनों बेटियों का मुँह देखते हुए उनकी बात मान लेती है। 

बम्बई से दिल्ली की फ़्लाईट में बैठी हुई आरती वली को याद करके ख़ूब रोती है। 

 

 
 


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