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ममता की अम्मा

ममता की अम्मा

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आप सभी को शीर्षक पढ़कर लग रहा होगा की मैं यहां पर किसी ममता की देवी का जिक्र करने जा रही हूँ। वैसे उन्हे ममता की देवी कहना भी गलत ना होगा, पूरा क़स्बा उन्हें जिस नाम से जानता था वह उनकी सबसे छोटी बेटी थी "ममता" जिसके नाम पर उनका नाम पड़ा " ममता की अम्मा"।

उनकी उम्र चालीस -पैंतालीस के आसपास रही होगी पर देखने में साठ के ऊपर की लगती थी। कद चार फुट चार इंच के आसपास होगा, बाल मेंहदी से लाल किए हुए चेहरे पर लकीरें आँखें बड़ी बड़ी गोल -गोल ममता- मई देखते ही सबको अपना बना लेने वाली थीं। कभी किसी से कोई झगड़ा नहीं अपने काम के पैसों के लिए भी कभी कोई मोल -भाव नहीं। जिसने जो दिया खुशी से रख लिया। रख भी क्या लिया सारे पैसे मेरी मां के पास ला कर जमा कर देती थी, कहती कि " बहुजी पैसे तो थम ही अपने पास रख लो मुझसे तो खो जाएंगे " । काम चाहे कितना भी क्यों ना हो सर का पल्ला कभी न सरकता था।

मेरा उनके साथ कोई रक्त संबंध न होने के बाद भी उनसे एक अजीब सा लगाव था। कोई उनके साथ बुरा बर्ताव करता या उन्हें डांटता तो मुझे बहुत बुरा लगता, और मैं उन्हें कहती अम्मा जो आपको डांटते हैं आप उन लोगों के यहाँ काम मत करा करो।

एक बार वे बहुत बीमार हो गईं तो मैं अपनी मां के साथ उनके लिए खाना व दवा ले कर उनके घर गई। वे घर पर बिल्कुल अकेली थीं कच्चा मकान गोबर से लीपा हुआ साफ सुथरा लग रहा था। मकान के नाम पर एक नौ बाई दस के कमरे के आगे रसोई के लिए थोड़ी सी जगह छोड़ कर उसमें बांस की कुछ खपच्चियां लगाकर ऊपर से पुआल से ढक कर छत बनाई गई थी। रसोई में चूल्हे के अलावा एक - दो मिट्टी के बर्तन रक्खे थे। रसोई के बहार छोटी सी कच्ची जगह पर तोरी व करेले की बेल लगाई हुई थी जिसने रसोई की छत को ढक रक्खा था। जिस की तोरियां अक्सर अम्मा हमारे लिए लाया करती थीं।

हमें देखते ही हमें बैठाने के लिए परेशान हो गईं । मेरे मना करने के बाद भी उन्होंने चारपाई पर दरी बिछा दी तथा खुद जमीन पर बोरी बिछाकर बैठ गई। मेरी मां से कहने लगी कि "थम क्यो परेशान हुए जी, मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ" । मैंने कहा अम्मा यह दवा खाकर आप आराम करो अभी काम पर मत आना , बोलीं बोब्बो बाकी सब लोग तो पैसे काट लेंगे कोई पूरे महीने के पैसे ना देवेगा । सुन कर मुझे बड़ा बुरा लगा मैंने कहा अम्मां , तुम बाकी सबका काम छोड़ क्यों नहीं देती , इस पर वे बोली" देख वह जो मिश्राईन है ना वो अब आठवें महीने में कहां किसी और को ढूंढने जाएगी बेचारी, और पांडे जी के यहां तो अगले महीने लड़की की शादी है बहुत काम है सारा काम मुझ पर ही तो छोड़ा है उन्होंने" मैं भला उन्हें कैसे काम करने को मना कर दूँ वे लोग परेशान हो जायेंगे। अनायास ही मेरे मुंह से निकला और अम्मा तुम।

और सच में अगले दिन जब वे सुबह आईं तो उनके अंदर वही पहले वाला जोश था।


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