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पूजा

पूजा

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राकेश अपने दोस्तों के साथ खेल के मैदान में फुटबॉल खेल रहा था। शाम का समय था और हवा धीरे धीरे बह रही थी। फुटबॉल के खेल में सारे बच्चे मशगूल थे। वह कोशिश कर रहे थे कि जितनी जल्दी हो सके दूसरी पार्टी के खेमे में गोल कर दिया जाए। शाम का समय होने के कारण सूरज की गर्मी भी काफी कम हो गई थी। राकेश के घर के सामने एक बगीचा था, उस बगीचे में चिड़िया चहचहा रही थी। फूलों के सुगंध से सारा वातावरण सुगंधमय हो चुका था। राकेश के पिताजी रामेश्वर सिंह घर के सामने के नाले के पास नहा रहे थे।

अचानक एक बहुत ही तेज़ आवाज़ से बच्चों का खेल भंग हो गया। एक साधु एक बहुत बड़े बैल के साथ बड़ी ऊंची आवाज़ में अलख निरंजन ,अलख निरंजन पुकारते हुए बगीचे की तरफ बढ़ा चला आ रहा था। उस साधु और उस बड़े बैल के पीछे गांव के अन्य लोग भी बड़ी कौतूहल की दृष्टि से आ रहे थे। दरअसल वह साधु काफी चमत्कारिक दिखाई पड़ रहा था। एक पल में उसने हवा से रसगुल्ला उत्पन्न कर दिया। तो दूसरे पल में उसने हवा से पैसे को भी उत्पन्न कर दिया। गांव के सारे के सारे लोग उस साधु के आश्चर्यचकित कारनामों से प्रभावित हो चुके थे। गांव के लोगों ने कहा आप वहां पर जाइए वह जो पुरुष नहा रहे हैं वह साधु संतों के बहुत बड़े भक्त हैं। आप उनके पास जाएंगे तो आपकी बहुत ही अच्छी खातिरदारी होगी। वह साधु अच्छी दान दक्षिणा की आशा में रामेश्वर सिंह जी की तरफ बढ़ रहा था।

रामेश्वर जी शिक्षक थे और उनकी ड्यूटी सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम को 4:00 बजे तक स्कूल में होती थी। छात्रों के बीच रामेश्वर जी बहुत ही लोकप्रिय थे। लेकिन रामेश्वर जी अपने सामाजिक कार्यों के कारण ज्यादा जाने जाते थे। इस बात की भी बड़ी चर्चा होती थी की रामेश्वर जी नास्तिकता वादी विचारधारा से प्रभावित व्यक्ति हैं। रामेश्वर जी हमेशा ही मूर्ति पूजा और मंदिर में पूजा पाठ के विरोधी रहे थे। उनके घर में कोई भी पूजा पाठ नहीं होता था। मंदिर में जाना तो दूर की बात थी। गांव के सारे लोग जान रहे थे कि रामेश्वर जी नास्तिक है। रामेश्वर जी कभी भी मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते थे। उनके विचार में मानव पूजा ही सर्वोत्तम सेवा है। गांव के लोगों ने साधु से झूठ बोलकर वहां भेज दिया क्योंकि वह देखना चाह रहे थे कि ऐसे चमत्कारिक साधु और रामेश्वर जी के बीच वार्तालाप का फल क्या होता है?

वह साधु अपने विशालकाय बैल के साथ अलख निरंजन, अलख निरंजन कहते हुए रामेश्वर जी की तरह बढ़ा चला जा रहा था। यह देखकर रामेश्वर जी बहुत क्रुद्ध हुए। उन्होंने दूर से ही साधु को फटकारा और कहा कि जितनी जल्दी हो सके यहां से भाग जाओ। साधु को यह बात समझने में ज्यादा देर नहीं लगी कि गांव वालों ने उसके साथ मज़ाक किया है। खैर 1 सेकंड के भीतर उस साधु ने हड्डी से बनी हुई छड़ी को हवा मे लहराया और सौ सौ के 5 नोट पैदा कर दिए। यह देख कर सारे लोगों में सनसनी फैल गई। पर इस चमत्कार का रामेश्वर जी पर उल्टा असर पड़ा। उन्होंने साधु को और ज़ोर से फटकारते हुए कहा कि जितनी जल्दी हो सके उतने जल्दी यहां से चलते बनो।

इधर घर की महिलाएं साधु से डर गई और उससे विनती करने लगी कि रामेश्वर जी जो भी ग़लती कर रहे हैं उसके लिए उन्हें माफ़ कर दिया जाए। साधु को लगने लगा कि शायद अब रामेश्वर जी माफ़ी माँगेगे। गाँव के लोग भी यह माजरा देखने के लिए बेचैन थे कि देखते हैं कि कैसे रामेश्वर जी, जो अपने आप को बहुत बड़ा नास्तिक समझते हैं ,इस साधु के सामने झुक कर माफ़ी मांग रहे हैं। इन लोगों की आशाओं के विपरीत रामेश्वर जी ने साधु को ढकेलते हुए कहा, अरे पाखंडी जल्दी यहां से भाग नहीं तो तेरे को मारते हुए यहां से भेजूंगा। इसपर साधु ने क्रुद्ध होकर कहा कि मैं तुमको अभी चूहा बना दूँगा। साधु ने हड्डी की छड़ी आकाश में लेकर बुदबुदाते हुए कोई मंत्र पढ़ना शुरू किया। सारे के सारे लोग डर गए। अनहोनी की आशंका से महिलाएं घबरा गई।

लेकिन रामेश्वर जी ने साधु के हाथ से हड्डी की छड़ी को छीन लिया और उसको अपने पैर से लगाकर तोड़ दिया। फिर उस टूटी हुई हड्डी की छड़ी को बैल के पिछले भाग में घुसा दिया। इस अप्रत्याशित हमले से बैल घबराते हुए वहां से भाग चला। रामेश्वर जी ने साधु से कहा कि तू भी यहां से जल्दी भाग वरना ये तेरी जो टूटी हुई हड्डी है, उसे तेरे भीतर भी घुसा दूंगा। साधु के पास वहां से भागने का अलावा और कोई भी चारा न था।

गांव के सारे लोग हंस पड़े। रामेश्वर जी बोल रहे थे कि यदि साधु में इतनी क्षमता है कि वह हवा से पैसे को पैदा कर सकता है तो वह घर घर जाकर पैसे की याचना क्यों कर रहा है? कभी भी इस तरह के चमत्कार से किसी से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है। मानव सेवा ही सर्वोत्तम सेवा है। राकेश और गांव के लोगों को पूजा का असली मतलब पता चल चुका था। उधर साधु भी दूसरे तरीके से अपनी पूजा करवा कर अपने बल के साथ उस गांव से रफ्फूचक्कर हो चुका था।


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