Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

गुड मोर्निंग

गुड मोर्निंग

18 mins
8.1K


गुड मोर्निंग सर, गुड मोर्निंग मैडम, गुड मोर्निंग फ्रेंड्स..

“गुड मोर्निंग” आजकल के दौर में यह एक ऐसा अभिवादन हैं जिसे हर घर, हर ऑफिस, हर रिश्ते-नाते प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आदमी एक दुसरे को बोलता हैं या फिर बोलना या सुनना चाहता हैं | दुसरे शब्दों में कहें तो यह हमारे भारतीय परंपरा “नमस्कार” का एक दूसरा रूप हैं | मैं आपको इस विषय पर अपना ज्यादा विशलेषण तो नहीं दूंगा पर हाँ इससे जूरी एक घटना मैं आपको जरूर बताना चाहूँगा पर उससे भी पहले मैं अपने बाड़े में बता दूँ |

राजू यानि मैं पेशे से एक मेडिकल लैब तकनीशियन हूँ, ये बात उस समय की हैं जब मुझे मेरे काम को मेहनत और लगन से करने के उपलक्ष में हमारे हॉस्पिटल ने मुझे बेस्ट एम्प्लोयी के लिए चुना था | मैं बेहद खुश था क्योंकि मुझे ईनाम के रूप में पुरे पांच हजार का एक चेक और बेस्ट एम्प्लोयी का सर्टिफिकेट भी मिला था | खैर ये बात उस अस्पताल की नहीं हैं मेरा विषय तो उसी दिन की उस शाम से हैं जब मैं हॉस्पिटल से अपनी ड्यूटी कर अपने रूममेट दीपक के साथ पढाई करने अपने इंस्टिट्यूट गया था |

जी हाँ, उस दिन चुकी मुझे हॉस्पिटल में ईनाम और सर्टिफिकेट देने के लिए छोटा सा समारोह का आयोजन किया गया था इसलिए मुझे इंस्टिट्यूट आने में भी देरी हो गयी थी, एक मैडम का एक क्लास तो पहले हीओ ख़त्म हो चूका था उसके बाद दूसरी क्लास के लिए मैं वहां पंहुचा था |

“और कैसे हो, बहुत फ़ोन किये न.? मैं क्या बताऊँ..?” मैडम के जाने के बाद खाली क्लास में बैठ मैंने मुस्कुराते हुए नाराज़ दीपक से उसका हाल खबर लिया |

“पहले तू बता कैसा रहा तेरा अवार्ड फंक्शन, बोला था पांच मिनट में आ जाऊंगा और इतनी लेट कर दिए | आज ऐसे काम नहीं चलेगा, पार्टी तो देनी ही होगी” दीपक ने सभी को सुनाते हुए तेज़ आवाज़ में मुझसे बोला |

“ये देखो न..” इतना बोल मैंने अपना बैग खोल बेस्ट एम्प्लोयी का सर्टिफिकेट एवं 5000 का चेक़ निकाल दीपक को दिखाया | वह बहुत खुश हुआ, पर उतना खुश नहीं था जितना मैंने सोचा था | कारण ये था की जो अगला क्लास टीचर आने वाला था वो बिलकुल ही खडूस था, आप उसे फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ के प्रोफेसर से तुलना कर सकते हैं या यूँ कहे बिल्कुल वही ही था | उस प्रोफेसर के आने का समय हो गया था | सभी अपना-अपना दिमाग लगा रहे थे वो खरूस टीचर पता नहीं किस मूड में आएगा, आज क्या पढ़ायेगा ??

“क्या हैं भाई, कैसा हैं.. कहीं कुछ जीता हैं क्या ?” दीपक को देख, रोहन और मेरे पास बैठे और भी लड़के मुझसे पूछने लगे |

इससे पहले की मैं अपना उपलब्धि के बाड़े में सबको बताता, तभी नाम लेते शैतान हाज़िर वाली कहावत हो गयी | अपने हाथ में एक फाइल लिए लम्बे-चौरे, मोटे, गोल चश्मा जिसकी रस्सी पीछे की तरफ गले में टंगा हुआ था, ऐसे खडूस टीचर का नाम था प्रोफेसर “जे. के. जैन” जो अब हमलोगों के सामने क्लास में आ चुके थे |

सभी स्टूडेंट्स उन्हें देख गुड इवनिंग सर, गुड इवनिंग सर बोलने लगे | मैं ही एक अकेला ऐसा बंदा था जो शाम के समय में भी उन्हें गुड इवनिंग के जगह “गुड-मोर्निंग” सर बोला | चुकी सबसे तेज़ और अंत में मेरी आवाज ही उन्हें सुनाई दी इसलिए जवाब में वे भी “गुड मोर्निंग” बोल दिए |

अपने मुह से ही वो ‘गुड-मोर्निंग’ बोल खुद के हाथ में पहने हुए घड़ी को देखे और अपनी दोनों भौं और ललाट सिकुराते हुए बड़ी बड़ी आँखों से हमें देख, “हुंह... गुड मोर्निंग !! गुड इवनिंग हैं की गुड मोर्निंग, अभी गुड मोर्निंग कौन बोला..?”

प्रोफ़ेसर के इस तरह के भयावह चेहरे को देख डरे हुए सभी स्टूडेंट्स एक दुसरे को देख रहे थे, मैं भी एक सामान्य स्टूडेंट्स के जैसे ही दीपक को देख रहा था, दीपक भी सोच रहा था क्या “बिना मतलब का तूने प्रोफेसर मखंचू से पंगा ले लिया और मुझे देख धीरे से मुस्कुराया”

“मुझे देख हस रहे हो..” दीपक को मुस्कुराते देख प्रोफेसर जैन साहब और गुस्से हो गए |

ऐसे तो वो गणित और भौतिकी के HOD थे, अपने विषय की भांति ही उनकी प्रविर्ति भी प्लस-माइनस होते रहता था | पता नहीं कब कैथोड एनोड के संपर्क में आ जाये और चिंगारी निकल पड़े, हम दोनों को काना फूसी करते देख प्रोफेसर जैन साहब ने दीपक को अपने पास बुलाने लगे | दीपक मेरे पास से उठ उनकी बात मान वहां जाने लगा |

“हाँ, तो सभी लोग कान खोलकर सुन लो मैं आज कोई मैथ या फिजिक्स का क्लास नहीं लूँगा” प्रोफेसर दीपक के कंधे पर अपना हाथ रख तेज़ आवाज में दीपक को मुहरा बना हम सब से बोलने लगे |

प्रोफेसर जैन साहब की बातें सुन सब मौन थे पर मैं तो मन ही मन ये सोचकर खुश था की “लग रहा हैं की प्रोफ़ेसर साहब गणित न पढ़ाकर आज दीपक को जमूरा बनायेगा और गाँव के जैसा मदारी वाला खेल दिखने वाले हैं | ऐसे भी मुझे सब्जेक्ट से अलग हट कर बातें करना अच्छा लगता था |

“ये अब दीपक के साथ क्या करने वाले हैं..?” मेरे पास बगल की कुर्सी पर बैठा रोहन भी सोच रहा था |

“मैंने डिसाइड किया हैं की आज तुम सब का पर्सनालिटी डेवलपमेंट को चेक करने के लिए इंटरव्यू लूँगा, सबको एक-एक करके बुलाता हु, देखते हैं आज तक तुमने क्या सिखा हैं, तैयार हो..?” प्रोफ़ेसर ने हम सब से इतना पूछ दीपक को वही एक कुर्सी पर अपने सामने बैठने को बोले |

“राजू, यार ये प्रोफेसर मखंचू दीपक से क्या पूछेगा..?” रोहन ने मुझे पूरा कॉन्फिडेंट के साथ बैठा देख धिमी आवाज़ में फुसफुसाते हुए पूछा |

“चुप कर नहीं तो वो अब तुझे भी बुला लेगा” मैंने कहा |

प्रोफेसर ने अब हमारी आवाज भी सुन लिया और मेरी तरफ उंगली का इशारा करते हुए बोले “इसके बाद अगला नंबर तुम्हारा” मैं तो फसा,

“टेल मी, हु आर यु..?” एक इंटरव्यूअर के जगह खरुष प्रोफेसर दीपक को डराते हुए उससे पहला प्रश्न किये |

“सर, माय नेम इज दीपक पटेल, आई ऍम स्टूडेंट ऑफ़ BA थर्ड इयर जियोग्राफी ऑनर्स, फ्रॉम बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, अल्सो प्रेप्यरिंग फॉर सिविल सर्विसेज एग्जामिनेशन इन दीस इंस्टिट्यूट, माय फदर नेम इज ब्रिज बिहारी पटेल, आई एम् फ्रॉम गोपालगंज बिहार” ये बोलकर दीपक रूक गया और प्रोफ़ेसर को देखने लगा |

हम सब ये सोच रहे थे की प्रोफ़ेसर मखंचू ये कहेगा “गुड, वैरी नाईस” और पहले सही जवाब के लिए ताली बजाने को कहेगा, पर ये क्या..?

“तुम ये जवाब दोगे ? ऐसे UPSC का एग्जाम पास करोगे ? तुम्हे तो अभी तक ये नहीं पता की अपने बाड़े में सही से एक्सप्लेन कैसे करना हैं.. कहते हो सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा हु | तुम्हारे जैसे लड़के ही अपने माँ-बाप के मेहनत के पैसे को बर्बाद करते हैं” वो तीर का तार बनाते हुए दीपक से चिल्लाते हुए बोलने लगे |

“ये इधर देखो अपनी सकल, कितना डरे हुए लग रहे हो | मैं शेर हूँ, जो तुझे निगल जाऊँगा, सही से बैठने तक नहीं आता” जैन साहब ने दीपक को पीछे की शीशे की दीवाल में खुद को देखने को कहे |

प्रोफ़ेसर जैन की डांट को सुन, दीपक बिलकुल हतास हो रहा था, दीपक को वास्तव में उसके सामने थोडा और कांफिडेंट होना चाहिए था, पर क्या करता उसे थोड़ा भी सोचने का वक़्त नहीं मिला था |

खैर, उसे और कॉंफिडेंट होने की सिख तो जरूर मिल रही थी | हम सब दीपक को देख रहे थे, पर मेरे दिमाग में तो अब प्रोफ़ेसर जैन की वो आवाज सुनाई दे रहा था “इसके बाद अगला नंबर तुम्हारा”, फिर भी मैं तो आज पहले से ही लेक्चर सुनकर और देकर भी आया हुआ था इसलिए अपनेआप पर भरोसा कर थोड़ा उत्साहित हुआ |

“इंटरव्यू में जाओगे और ऐसे ही चुप होकर बैठ जाओगे, तब तो बन चुके आई.ए.एस | एक बात गाँठ बांध लो, जब भी कोई इंटरव्यूअर तुम्हारे बाड़े में पूछे तो बस चालू हो जाओ, ये मत सोचो की मैं कितना पढ़ा हु या मेरा इंटरव्यू लेने वाला कितना पढ़ा हैं | बस, बताते जाओ, जितना गहराई में जा सको उतना अपने बाड़े में बताओ | नाम, पता, एजुकेशन, फॅमिली डिटेल तो बताना ही हैं, इसके अलावे अपनी खूबी, अच्छी आदतें, बुरी आदतें और, बचपन से लेकर अभी तक के सभी बातें बोल डालो और तबतक बोलते रहो जबतक की वो तुम्हे बोलने से न रोके | ये मत सोचो की हिंदी में बोलना ठीक नहीं हैं, लोग क्या सोचेंगे, या इंग्लिश में बोलने से लोग प्रभावित होते हैं, ये सब बेकार की बातें हैं, तुम्हे जो सुविधा लगे उसी भाषा में बोलो और खूब बोलो, कांफिडेंट के साथ बोलो” जैन साहब जो कभी आई.ए.एस. के प्री तक नहीं निकाले थे वो आज दीपक को इंटरव्यू की ये टिप्स दे रहे थे |

“जी सर, हाँ सर” दीपक उनकी बातों में हां में हां मिला रहा था, करता भी क्या मजबूरी थी |

यही तो बात होती हैं जब किसी मैथ के टीचर से इतिहास पढ़वाने लगो, बिना दीपक की एक सुने वो अपनी बातें बोले जा रहे थे, मेरे पास बैठा रोहन अब चिंचित हो रहा था क्योंकि मेरे बाद उसे ही बुलाया जाना था, उतनी लड़कियों के बिच उसके इज्ज़त का सवाल था | उधर प्रोफ़ेसर दीपक से इंटरव्यू लेना जारी रखा था तभी मेरे मोबाइल पर अब माँ का फोन आ गया | मैंने उनसे इज़ाज़त लेकर क्लास रूम के बाहर माँ से बात करने चला आया |

“माँ प्रणाम,” मैंने बोला,

“खुश रहो, और कैसा रहा, खाना खाए..? आज, मैंने सपने में देखी की मेरे बेटे को दस हजार रुपये का इनाम मिल रहा हैं और तुम बहुत खुश हो” माँ बोली,

“हाँ माँ, आज तो मैं सच में बहुत ख़ुश हूँ, जानती हो पुरे हॉस्पिटल में तेरे बेटे की चर्चा हो रही हैं” मैंने गर्व के साथ माँ से बोला,

“तब..? कितना पैसा मिला हैं” माँ बहुत खुश थी |

मैं माँ की ख़ुशी देख खुश तो था पर उसकी पैसे वाली बात सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा |

दरअसल मैंने बचपन से ही दोनों परिस्थियों को देखा था | पहला पापा की बात, वो अक्सर कहते हैं बेटा तुम पैसे की फ़िक्र मत करना जबतक मैं जिन्दा हु, तुम्हे कोई दिक्कत नहीं होगा, तुमको जो अच्छा लगे करना, मैं तुम्हारे हर ख्वाईस को पूरा करूँगा | दूसरी तरफ वो माँ को हर महीने जो पैसे भेजते थे उसमे ही घर चलाना था इसलिए माँ का कष्ट भी देखा था | माँ कैसे-कैसे घर चलाती थी और मेरे हर फरमान को पूरा करते रहती | आज जब मैं कमाने लगा तो मैं ये नहीं देखना चाहता था की माँ को कोई पैसे को लेकर तकलीफ़ हो, मैं इसीलिए तो पढ़ाई की उम्र में ही नौकरी करना शुरू कर दिया था |

“माँ पुरे 5000 का चेक मिला हैं, मैं दो-तीन दिन में ही तुम्हे भेज दूंगा, और हां अपना ख्याल रखना, कोई दिक्कत मत सहना, अब मैं कमा रहा हु” मैंने हिम्मत के साथ माँ से कहा |

“बेटा तुम छोड़ दो काम, और चले आओ मेरे पास, तुझे देखने का मन कर रहा हैं, बस तुम मेरे पास रहोगे तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होगा, नहीं चाहिए पैसा” अब उधर माँ इतना बोल फोन पर रोने लगी |

अब तो कुछ ज्यादा ही इमोशनल अत्याचार होने लगा, “चुप हो जाओ, मैं जल्द ही घर आता हु, अभी मैं पढाई के लिए इंस्टिट्यूट आया हु, अब फोन रखता हु मैं, कमरे पर पहुचकर फोन करूँगा | अच्छा ‘प्रणाम’ मैंने जल्द ही इतना शब्द बोला |

माँ ने फोन पर आशीर्वाद दी और मैं कॉल समाप्त कर दोबारा क्लास रूम के दरवाजे खोल अंदर आ आया | आया तो देखा की दीपक से आखिरी प्रश्न पूछा जा रहा था “दीपक एक आख़िरी प्रश्न तुम ये बताओ, अभी जो तुमने बोला भारत ग़ुलाम बन गया | मेरा प्रश्न ये हैं की, भारत 200 साल तक अंग्रेजों का ग़ुलाम रहा, पर कैसे..? व्हाट इज द रीज़न..?”

“सर अक्चुली दैट टाइम” दीपक ने इतना ही बोला था की प्रोफ़ेसर ने उसे रोकते हुए कहा, ‘उन्हूँ.. हिंदी में बताओ”

“सर उस समय हमारे देश में राज्य तंत्र के जैसा था, हर राज्य जो आज के एक राज्य से बहुत छोटा हुआ करता था, या यूँ कहें वे राजा न होकर एक जमींदार थे | चुकी हमारा देश तो बड़ा था पर टुकड़ो में बटा हुआ था, अंग्रेज इसी का फायदा उठाये | सोलह सौ इसवी में अंग्रेज व्यापार करने हमारे देश भारत आये और धीरे धीरे उन जमींदारों को अपनी कूटनीति से बहला फुसला कर हमारे पुरे देश को एक कर, उसका नाम ‘इंडिया’ रख दिए और उसपे हुकूमत करने लगे” दीपक ने गंभीरता से जवाब दिया

“हाँ कही हद तक सही जवाब हैं पर, अभी जाकर पढो, ऐसे काम नहीं चलेगा” पहली बार दीपक के जवाब में प्रोफ़ेसर का समर्थन था, अपनी हाथ के इशारों से दीपक को जाने को कहा और अपनी तेज़ निगाहों से हमें ढूंढते हुए मैं जो अब पहले की शिट से उठकर पीछे की तरफ जा बैठा था, मुझे उंगली दिखा अपने पास आने को कहे, मैंने मुस्कुराते हुए कुर्सी से उठ सीधे प्रोफ़ेसर की तरफ जाने लगा |

“पहले ये बताओ क्या नाम हैं तुम्हारा” प्रोफ़ेसर ने मुझसे पूछा,

सच बताऊँ तो मुझे ऐसे लग रहा था जैसे कोई शाहरुख़ खान से उसका नाम पूछ रहा हो, अरे भाई मैं भी आज कोई सेलिब्रटी से कम थोड़ी न था, हाँ ये बात अलग था की मैं हॉस्पिटल में काम करते हुए बेस्ट एम्प्लोयी बना था |

“जी सर, राजू” मैंने अपना नाम बताया |

“चलो, बैठ जाओ, और आजकाल कितने घंटे पढाई करते हो” प्रोफ़ेसर मुझे बैठने के लिए कुर्सी की ओर इशारा किये और खुद कुर्सी पर बैठ गए,

“सर मैं तो दीपक के वजह से, आज-कल थोडा बहुत पढ़ लेता हु | ऐसे तो मैं दिनभर हॉस्पिटल में ही काम करने में बहुत ब्यस्त हो जाता हूँ, पढने की फुर्सत कहा मिलती हैं” मेरे दिमाग में पता नहीं कैसे वो बात करने का आत्मविश्वास आ गया, मैंने कुर्सी पर बैठते हुए उनसे एक अलग व्यवहार में बोला |

“दीपक ! अच्छा तो तुम दीपक के साथ रहते हो, बच के रहना वो केवल अपना समय और पैसा बर्बाद कर रहा हैं” उसने दीपक की ओर देखते हुए मुझसे बोले |

उनकी जवाब सुनकर मेरा तो खून जैसे किरोशिन की स्टोव पे 100 डिग्री सैल्सिअस पर खौलने लगा | दीपक कितना अच्छा लड़का हैं, दिन-रात पढाई करते रहता हैं, न कोई नशा, न कोई गलत संघत, न किसी लड़की का चक्कर, आज के जमाने वैसा लड़का ढूंढने ने नहीं मिलता और वो उसके बाड़े में ये सब क्या बक रहा हैं |

“सर एक बात बोलूं” मैंने बोला ,

“हाँ बोलो, क्या मैं गलत बोल रहा हूँ..?” प्रोफ़ेसर ने इतना बोल मुझे बात रखने की इज़ाज़त दिए |

“नहीं सर आप सही बोल रहे हैं, पर मैं कह रहा था की क्या ऐसा हो सकता हैं की आज आप मेरा इंटरव्यू न लेकर मैं आपका इंटरव्यू लूँ, सही रहेगा..?” मैंने पुरे आत्मविश्वास के साथ प्रोफ़ेसर से यह प्रश्न पूछ बैठा |

“कोई बात नहीं, तुम ही लो मेरा इंटरव्यू, पर एक बात ध्यान रखना... , प्रश्न मेरे लेवल का होना चाहिए, कोई ऐसा-वैसा फालतू क्वेश्चन मुझसे मत पूछना” मेरे प्रश्न सुन वो घबराते हुए जवाब दिए |

“बिलकुल सर, आप निश्चिन्त रहें, इसका पूरा ध्यान रखूँगा” मैंने कहा |

“पहला प्रश्न, टेल मी योरसेल्फ” किसी फिल्म के हीरो जैसा मैं उनका जवाब उन्ही के भाषा में दे रहा था, मेरा पहला प्रश्न भी उनके प्रश्न से जैसा ही था,

बेचारे प्रोफ़ेसर साहब अपना गला साफ़ करते हुए उहू..हु... “हाँ, ऐज यु नो माई सेल्फ प्रोफ़ेसर जे. के. जैन, हेयर आई ऍम द एच.ओ.डी. ऑफ़ मैथ एंड फिजिक्स, यु नो देयर इज मेनली 5 प्रोफ़ेसर इन दीस इंस्टिट्यूट, बट इन रैंकिंग आई एम् द फर्स्ट एंड फेवेरेट प्रोफ़ेसर ऑफ़ इच एंड एवरी स्टूडेंट्स” उनके मुह से उनकी खुद की इतनी प्रशंसा सुन मुझे क्या, क्लास के किसी भी स्टूडेंट्स से हजम नहीं हो रहा था, मैंने रोहन और दीपक की तरफ देख ये महसूस कर रहा था की वे दोनों भी मन ही मन मुझे प्रोफ़ेसर से और जटिल से जटिल प्रश्न पूछने को कह रहे हो |

खैर, प्रोफेसर जैन की बात सुन मैंने एक इंटरव्यूअर की भांति उन्हें बिच में ही टोकते हुए उनकी अपनी सही और तर्कपूर्ण जानकारी देने को अंग्रेजी में कहा |

“ओके.. ओके” उन्होंने अपना हाथ आगे की तरफ करते हुए मुझसे बोले |

मैंने भी अपना हाथ हवे में उठाते हुए उनसे सीधे शब्दों में “कैर्री ऑन” बोला,

मेरे ऐसे सुझाव और पूछने के भाव को देख प्रोफ़ेसर मन ही मन बहुत गुस्स्से थे, ये कैसे बद्तमीजी से बोल रहा हैं पर मैं भी आज मन में ठान लिया था, आर या पार | सभी लड़के/लड़कियां मेरे तरफ देख रहे थे और मन ही मन खुश भी थे |

प्रोफ़ेसर साहब ने लागातार 3-4 मिनट तक अपने बाड़े में, अपने माँ-बाप के बाड़े में, पढाई और पढ़ाने तक के पुरी बात साथ में अपने गाँव शहर और समाज की बातें भी बोले जा रहे थे, मैं चुप मार के उन्हें सुन रहा हु, मुझे तो दीपक का इंटरव्यू दिमाग में चल रहा था, तभी वो एक गिलास पानी पीने की मांग किये |

मैंने हाउस कीपिंग के जगह रोहन से कह उनके लिए ठंडा पानी मंगवाया |

“राजू दूसरा प्रश्न तुम्हारे दिमाग में आया की नहीं, या मेरे बाड़े में और कुछ जानना चाहते हो..?” पानी पीकर ग्लास टेबल पर रखते हुए उन्होंने मुझसे बोला |

“हैं न सर दूसरा प्रश्न, टेस्ट क्या होता हैं..? और यह कितने प्रकार का होता हैं ?” मुझे मालूम हुआ की प्रोफेसर अब थक गया, इसलिए मैंने तुरंत उनसे दूसरा प्रश्न पूछ बैठा |

“टेस्ट.. ओ !!, तो तुम हॉस्पिटल में काम करते हो न, मुझे भी पता हैं | टेस्ट इज द प्रोसेस जिससे हम पता करते हैं की किसी मरीज़ को कौन सी बिमारी हैं या नहीं हैं | इसके बहुत सारे प्रकार हैं, जैसे ब्लड सुगर टेस्ट, ब्लड प्रेशर टेस्ट, कोलेस्ट्रॉल टेस्ट, वगैरह वगैरह” मेरे प्रश्न से खुश होकर उन्होंने आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया |

“बिलकुल गलत..” उनकी बात को मैंने काटते हुए बोला |

“टेस्ट तो टेस्ट हैं सर, यह कोई मरीज़ के लिए ही क्यों..? इसे तो एक स्वस्थ व्यक्ति भी करा सकता हैं | रही बात मेरे प्रश्न की तो आपने यह गलती किया की हमारे प्रश्न को पहले सही से समझे नहीं | मैंने यह पूछा था की टेस्ट क्या हैं, इसका बहुत ही साधारण जवाब हैं, जिसे हम अपनी आँखें बंद करके सिर्फ और सिर्फ जीभ के द्वारा पहचान सके उसे टेस्ट कहते हैं | टेस्ट के चार प्रकार होता हैं ; मीठा, नमकीन, कड़वा और खट्टा, ध्यान रहे तीखा कोई टेस्ट नहीं होता” मेरी बात सुन प्रोफ़ेसर के साथ-साथ सबका दिमाग घूम गया था, दीपक मेरे प्रश्नों और उत्तर को सुन मुस्कुरा रहा था |

“मेरा तीसरा प्रश्न, शुरू-शुरू में जब अंग्रेज भारत में व्यापार करने आये थे तो उन्होंने ऐसी कौन सा तीर चलायी की उलटे हमें ही ग़ुलाम बना लिए और हम 200 साल तक ग़ुलाम बने रहे, मेरा भारत आज़ाद कैसे हुआ, इसका एक संक्षेप विवरण दे” मैंने एक ठन्डे दिमाग से उनसे यह सरल प्रश्न किया |

हमारे इस दो लाइन के छोटे से प्रश्न में एक बड़ा इतिहास का संक्षेप विवरण देना उनके बस का था नहीं उन्होंने साफ़ साफ़ मना कर दिया |

“ये कौन सा प्रश्न हैं, तुम्हे पता भी हैं केवल इतना ही पढने के लिए बच्चे कई साल तक अनगिनत पैसे और समय दोनों लगा देते हैं और तुम मुझसे इसका संक्षेप विवरण मांग रहे हो | फिर भी, अगर मैं अभी बताना शुरू करूँ तो न जाने कई क्लास बीत जायेगा बताते बताते.. ऐसे नहीं होगा | मैंने पहले ही कहा था, प्रश्न मेरे लेवल का होना चाहिए | ऐसी बकवास क्वेश्चन करना बंद करो, बड़ा पूछने बैठे हो भारत ग़ुलाम कैसे बना..? आजाद कब हुआ...? तुम एक आजाद देश में पैदा हुए हो न... बस !!” उन्होंने झल्लाते हुए मुझसे इतना बोले |

“सर जब आप प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे” मैंने इतना ही बोला,

“हाँ, तो..?”

“उन दिनों स्कूल में होने वाले प्रार्थना के चार लाइन गा के सुना दीजिये” मैंने जल्दबाजी में ही उनसे यह चौथा प्रश्न भी पूछ बैठा |

“अब ख़त्म करो.. केवल बकवास प्रश्न किये जा रहे हो.. अभी यहाँ किसे याद होगा की स्कूल में प्रार्थना कौन सी होती थी.. तुम्हे याद हैं..?” अपने सर पे बचे गिने-चुने बाल को खुजलाते हुए प्रो. जैन साहब ने बोला |

“ओके सर, अब तो रात होने को हैं, लेट भी हो रहा हैं | एक आखिरी प्रश्न प्लीज सुन लीजिये ‘ये गुड मोर्निंग कब बोलते हैं..?” अब हमने उनका सम्मान करते हुए आख़िरी प्रश्न पूछा |

“सिंपल सा उत्तर हैं गुड मोर्निंग जब भी हम किसी से सुबह-सुबह मतलब दोपहर 12 बजे से पहले मिलते हैं तब बोलते हैं” बहुत ही जल्दी में जवाब देकर वो कुर्सी से उठाना चाह रहे थे |

“नहीं सर, ऐसे उत्तर की मुझे आपसे उम्मीद नहीं थी” मैंने उन्हें उठने से रोका और बोलना जरी रखा “जहाँ तक मैं जानता हु सर आप टीचर तो साइंस और मैथ के हैं पर व्याकरण पर आपकी पकड़ मजबूत हैं”

मेरे ऐसे बोलते ही उन्होंने मेरे चेहरे को देखा और कहा, “हां यार तूने सही याद दिलाया, गुड मोर्निंग तो हम कभी भी बोल सकते हैं, हम जब भी किसी से पहली बार मिलते हैं वो चाहे दिन हो या रात हम कभी भी बोल सकते हैं | अब समझ में आया यानि ‘गुड मोर्निंग’ तूने ही बोला था” उन्होंने मेरे पीठ पर प्यार से एक थप्पर मारते हुए बोले, और कहने लगे “बहुत अच्छा लगा तुम्हे इंटरव्यू देकर, तुममे कुछ तो बात हैं.. मज़ा आ गया” इतना कह वो कुर्सी से उठ क्लास से बहार जाने लगे |

“सर आज इसे हॉस्पिटल में बेस्ट एम्प्लोयी और 5000 का चेक जो मिला हैं” दीपक अपने शीट से उठ प्रोफ़ेसर को मेरे बाड़े में बताया |

दीपक की बातें सुन उन्होंने वापस मुरकर मुझसे हाथ मिलाये और मेरे पीठ पर हाथ थपथपाते हुए बहुत बधाई भी दिये | एक बात जो उन्होंने जाते वक़्त कही, वो शायद कोई कभी इमोशन में आकर ही कहता हैं, उन्होंने बोला था “राजू तुम एक असाधारण लड़का हो, चाहे हम तुम्हारे लिए कुछ कर पाए या नहीं पर तुम्हे कोई न कोई जरूर पहचानेगा, तुम बेमिशाल हो | मैंने आज तुम्हे देखा हैं, एक अच्छी जॉब के अलावे तुम्हारे अन्दर कुछ और करने की जो भूख हैं, तुम्हे बहुत आगे ले जाएगा, तुम्हारे अन्दर बहुत काबिलियत हैं, जिनिअस राजू, यू आर द किंग, बेस्ट ऑफ़ लक”

मेरे जिंदगी का ऐसा प्रोत्साहन देने वाला वो दूसरे व्यक्ति थे, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था बस मन ही मन चेहरे पर एक मुस्कराहट के साथ उनकी भावनाओं को महसूस कर रहा था और मैं प्रोफ़ेसर जैन के साथ साथ भगवान् को भी धन्यवाद बोल रहा था |

जैसा की प्रोफ़ेसर साहब का समय हो गया था, वो किसी अन्य क्लास में चले गए | इधर मैं दीपक के पास आकर बैठ गया साथ ही साथ हम दोनों के वजह से क्लास के अन्य स्टूडेंट्स उस खरूस प्रोफ़ेसर के इंटरव्यू लेने से बच गए, सभी स्टूडेंट्स खुल के मुझे प्रोत्साहित कर धन्यवाद दे रहे थे |

आज भी मैं हमेशा गुड-मोर्निंग ही बोलता हैं, आप भी बोलिए | गुड मोर्निंग बोलने से एक अलग ही उर्जा मिलती हैं.. उत्साह आता हैं क्योंकि अक्सर गुड मोर्निंग हम केवल सुबह में ही बोलते हैं जब हमारे पास भरपूर उर्जा होती हैं | तो क्यों न एक गुड मोर्निंग बोलकर उस उर्जा को देर रात तक कायम रखा जाये |


Rate this content
Log in

More hindi story from vikash shandilya

Similar hindi story from Drama