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जुगनी

जुगनी

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राम..राम,अम्मा..कैसी हो?? पचास साल की जुगनी अपने कपड़े का झोला अपने कंधे से उतारते हुए चारपाई पर बैठी अम्मा के पास रख कर बैठती हुई बोली..। मैं तो ठीक हूं जुगनी तू बड़े दिनों बाद दिखाई पड़ी सब ठीक तो है ना??बस अम्मा,कुछ दिनों से तबीयत खराब सी रह रही थी अब शरीर भी तो ढलने लगा है तो रोज़ कोई ना कोई नही बीमारी हो जावे...अब कर भी क्या सकती हूं! ये तो सही कह रही तू जुगनी एक तो अकेली ऊपर से औरत जात क्या क्या करेगी,समझ सकूँ मैं!

जुगनी झूठी मुस्कुराहट लिए झट से बोल पड़ी “अम्मा चाय ना पिलाओगी,इतने दिनों बाद आई हूं तुमसे मिलने”।अरी,कैसे ना पिलाऊंगी, रुक तो ज़रा कहते हुए अम्मा “गुंजा अरी ओ गुंजा कहां है तू ??ज़रा चाय नाश्ता लेकर तो आ”।।गुंजा...ये कौन है अम्मा, कोई रिश्तेदार आया है क्या?? जुगनी कुछ आगे पूछती उससे पहले ही एक सफ़ेद रंग की साड़ी में लिपटी एक ऐसी मासूम सी लड़की को पाया जो एक हाथ में चाय का बड़ा सा गिलास संभालने के साथ साथ दूसरे हाथ से अपने सिर के पल्लू को बार बार उतरने से बचाने की पूरी संभव कोशिश में लगी हुई थी क्योंकि शायद दोनों ही उसके लिए महत्वपूर्ण थे।। अम्मा जी चाय!कहते हुए गुंजा चाय का गिलास चारपाई के पास पड़े लकड़ी के तख्त पर रख तुरंत जुगनी के पैर छू कर प्रणाम करने लगी!जुगनी के कंपकपाते हाथ मन में अजीब सी घबराहट के चलते आशीर्वाद देने को उठे भी लेकिन गुंजा के सिर तक पुहंच ना सके।।

अम्मा, ये कौन हैं तुरंत जुगनी ने पूछा?? अरे ये, ये तो मेरे जगन की ब्याहता है!क्या बात कर दी तुमने अम्मा...जगन तो दौ साल पहले ही हमे छोड़ चल बसा था फिर ये गुंजा?? जुगनी कुछ आगे पूछती अम्मा बोल पड़ी,अरी जुगनी! जगन और गुंजा का ब्याह बचपन में ही हो गया था अब जगन तो रहा नही लेकिन गुंजा ब्याहता तो थी ना उसकी अब हमारी बहू व जिम्मेदारी है इसीलिए पिछले हफ्ते गौना कर लाये उसका..अगर जगन होता तो वो अपने अकेले बूढ़े अम्मा, बाऊजी को संभालता ना अब वो तो रहा नही तो उसकी जिम्मेदारी उसकी ब्याहता ही तो उठाएगी ना??वैसे भी हम औरतों की किस्मत तो ऐसी ही होवें।

खैर छोड़ इन सब बातों को तू चाय पी..सुन्न सी पड़ी जुगनी को हाथ से हिलाते हुए अम्मा बोली! ना अम्मा अब मन ना कर रहा चाय पीने का दिल कच्चा सा लागे फिर कभी पी लूंगी अब चलती हूं कहते हुए जुगनी अपना झोला लेकर निकल पड़ी अपने घर की ओर !निःशब्द सी जुगनी को आज गुंजा में अपना अतीत दिखाई दे गया था कि कैसे चालीस साल पहले जुगनी बाल विवाह के जाल में फंसकर अपने ब्याहता की आकस्मिक निधन के बाद उसकी विधवा बन कर ससुराल आकर,ज़िम्मेदारियों के बोझ तले ऐसी दबी कि बचपन से ही जीवन का हर रंग सफेद रंग में बदल गया! नफरत हो गयी थी उसे समाज की उन कुरीतियों से जो आज गुंजा को एक नई जुगनी बना रही थी।


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