महत्वकांक्षा की दहलीज़ कहाँ?
महत्वकांक्षा की दहलीज़ कहाँ?
शिखा, किरण, अभिलाषा और अमिता ने साथ साथ कम्पनी जॉइन की थी। यूँ तो चारों देश के अलग अलग दिशाओं से आइ थीं, पर साथ जॉइन करने और हमउम्र होने की वजह से तीनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी। सभी वर्किंग वीमेन हॉस्टल में साथ ही रहती थीं। ऑफ़िस में तो लोग इन्हें बहनें ही कहा करते थे।
अब इनकी नौकरी को सालभर पूरा होने को आया था और बाक़ियों की तरह इनके भी परफ़ोरमेंस के मूल्याँकन का समय आ गया था। चारों के वरिष्ठ अधिकारियों ने इनके काम और व्यवहार को देखते हुए इनका आँकलन किया और इस आधार पर इनके इनक्रेमेंट लगे। ये तो तय था कि चारों को एक सा आँकलन तो नहीं मिलना था, लेकिन ये कोई नहीं जानता था कि इस आँकलन के बाद इनमें से एक में ऐसी प्रतिस्पर्धा का जन्म होगा।
अमिता जिसे तीनों में सबसे कम आँका गया था, उसने मन में ठान लिया था कि साम-दाम-दण्ड-भेद कुछ भी कर के वह सबसे आगे बढ़ेगी। किसी ने भी सोचा नहीं था कि उसके क़दम इस ओर भी बढ़ सकते हैं।
अब अमिता ऑफ़िस में ज़्यादा से ज़्यादा समय अपने उच्च अधिकारी के साथ अपने छोटे से छोटे काम को बताने और उसपर बात करती दिख जाती। शुरुआत में तो लगा कि वह उनसे अपने काम की तारीफ़ करना चाहती है। धीरे धीरे ये सिलसिला ऑफ़िस के समय की परिधि से आगे बढ़ गया। अब ऑफ़िस ख़त्म हो जाने पर भी दोनों के बीच किसी ना किसी काम को लेकर देर तक चर्चा चलती रहती। ऑफ़िस के दौरान भी अमिता यदि साहब के साथ होती तो उनके पीए को आदेश था कि वह किसी को आने ना दे और ना ही कोई फ़ोन दे।
ऐसी हरकतें ऑफ़िस में चिंगारी का काम करने लगी और लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई थी। इन सारी दुनियादारी की बातों को किनारे करते हुए अमिता अपने धुन में आगे बढ़ी जा रही थी। वह उच्च अधिकारी भी अमिता की चाहत को भाँपते हुए अपनी ज़रूरतों को पूरा कर रहा था।
इन सब बातों में लगभग छह महीने और बीत गए और फिर से अर्धवार्षिक परफ़ोरमेंस मूल्याँकन का समय आ गया था। सभी के साथ इन चारों लड़कियों का भी मूल्याँकन हुआ। जैसे की क़यास लगाए जा रहे थे अमिता इस बार सबसे अच्छे रेटिंग के साथ थी और दूर दूर तक कोई नहीं था जिसकी रेटिंग उसके आसपास हो। आज अमिता के ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, साथ ही ऑफ़िस के लोगों में फुसफुसाहट चरम पर थी।
हॉस्टल पहुँचते ही अमिता को तीनों दोस्तों ने पकड़ लिया कि अब तो दावत बनती है। अमिता भी ख़ुश हो कर तैयार हो गई। रेस्टोरेंट में जब चारों दोस्त खाना खा रहे थे तो शिखा ने छेड़ते हुए पूछा कि, ‘अधिकारी कैसा आदमी है? ऑफ़िस में लोग तुम्हारे और उसके बारे मैं बहुत बात करते हैं।’ इस पर अमिता भड़क गई और इसके बाद इनकी टोली तीन की ही रह गई थी, अमिता अब इनके साथ नहीं थी।
दूसरे दिन ऑफ़िस पहुँचते ही पता चला साहब ऑफ़िस नहीं आए हैं और अमिता को कुछ काग़ज़ातों के साथ घर पर बुलाया है। अमिता अब घोर असमंजस में थी कि क्या करे, क्योंकि साहब जब भी छुट्टी पर होते तो और कुछ काम होता तो पीए उन काग़ज़ातों को ड्राइवर के हाँथों उन तक पहुँचा देता। कभी किसी को उनके घर जाते या किसी को काम के लिए घर पर बुलाते नहीं देखा। अमिता को समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे में वह क्या करे! उसने सोचा काम के लिए ही तो बुला रहे हैं, जाने में क्या हर्ज है। अपने इस आधुनिक सोच के कारण अमिता किस दलदल में फँसने जा रही है इसका उसे कोई अंदाज़ा नहीं था।
अमिता जब साहब के घर से लौटकर आइ तो तमाम जोड़ी आँखों की संशयवाचक दृष्टि उस पर टिकी थी। अमिता को समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्यों! ये सिलसिला अब आम था, जिस दिन साहब ऑफ़िस नहीं आते अमिता उनके घर जाने लगी। फिर आया वार्षिक मूल्याँकन का समय और फिर अमिता के आसपास कोई नहीं टिक पाया।
आगे बढ़ना तो संसार का नियम है, सो अमिता के मूल्याँकन के साथ साथ अमिता और साहब की कहानी को भी आगे बढ़ना ही था। इन दिनों तो अमिता ऑफ़िस के बाद शाम को साहब के साथ ही जाने लगी थी। हाँ साथ में कुछ फ़ाइल भी हुआ करती थीं और कई बार सुबह आती भी साहब के साथ थी। अब ऑफ़िस में इन दोनों की बातें होना कम हो गई थी। लेकिन अमिता से भी कोई बात नहीं करता था, यहाँ तक कि उसकी तीनों दोस्त भी नहीं। वह भी अब अमिता से दूर रहने लगी थीं। अब ना ही कोई संशयवाचक दृष्टि, ना ही कोई प्रश्नवाचक नज़र, लेकिन अब उन आँखों में, उन नज़रों में अमिता के लिए कोई सम्मान नहीं था। इधर कुछ बड़े अधिकारी इस इंतज़ार में थे कि कब शिखा, किरण और अभिलाषा में से कोई उनको भी काम में मदद करे। अमिता की तरह शिखा, किरण और अभिलाषा जब उनके प्रस्तावों, आदेशों को नकार कर अपने सम्मान को कम नहीं होने देती, तो इसका सीधा असर उनके मूल्याँकन पर होने लगा था। अब ऑफ़िस का माहौल इन युवतियों के लिए मुश्किल हुआ जा रहा था। इनके कार्य कुशलता और इनके मूल्याँकन के बीच का रिश्ता ढीला होता जा रहा था। अब मूल्याँकन पर दूसरी चीज़ें हावी होती जा रही थीं।
अमिता द्वारा अपनी महत्वकांक्षा की छोटी सी उड़ान को पूर्ण करने के लिए उठाए गए एक ग़लत क़दम का ख़ामियाज़ा सिर्फ़ उसे ही नहीं बल्कि वहाँ काम कर रही बहुत सी महिलाओं को उठाना पड़ता है। उस छोटी उड़ान के ख़ातिर स्वाभिमान और सम्मान जैसे बड़े मूल्यों पर आँच आ गई। जब हम महिलाओं के बीच से ही कोई महिला, स्वेच्छा से स्वयं को वस्तु के रूप में प्रस्तुत करती है तो अन्य महिलाओं के लिए भी जो नज़रें उठती हैं, उनमें वही असहनीय हिमाक़त भरी होती है जो उन महिलाओं के लिए होती है। वो तीखे कटाक्ष जो उन महत्वकांक्षि महिलाओं पर किए जाते हैं वहीं अन्य महिलाओं पर भी छोड़े जाते हैं।
अभिलाषा और बाक़ी की महिलाएँ अब भी बातें करती है कि काश हम महिलाएँ प्रतिद्वंद्वी ना होते हुए प्रतिपूरक बन एक दूसरे के सम्मान की रक्षा के लिए खड़े हों तो कोई हमारी शक्ति के आगे खड़े होने की हिम्मत नहीं करेगा और आए दिन नारी सम्मान के हनन की ख़बरें भी आम ना होंगी।