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बंद खिड़की भाग 3

बंद खिड़की भाग 3

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बंद खिड़की भाग 3

पुलिस फोटोग्राफर विनायक राव आते ही अपने काम में जुट गया। साथ ही फोरेंसिक विभाग के लोगों ने भी अपना काम मुस्तैदी से आरम्भ कर दिया। फिर लाश उतारी गई और तुकाराम ने उसकी पड़ताल शुरू की।
इतने में मंगेश बाहर से आया और बोला, साफ़-साफ़ ख़ुदकुशी है सर! मैंने पूछताछ कर ली है।
तुकाराम मुस्कुराने लगा, यह तुम कैसे कह सकते हो?
"दरवाजे खिड़की भीतर से बंद थे सर, तो साफ़ ज़ाहिर है कि इसने ख़ुदकुशी की है। जब इस औरत के बच्चे स्कूल से लौटे तब दरवाजा नहीं खुला, तब पड़ोसन ने दरवाजे की झिरी से झांककर देखा कि औरत लटकी हुई है और तब दरवाजा तोड़ा गया।
इतनी जल्दबाजी मत करो, मुझे तो केस में उलझाव नज़र आ रहा है, तुकाराम बोला
क्या सर?
ध्यान से देखो माने, इस औरत के गले में न मंगलसूत्र है और न ही हाथों में चूड़ियाँ! अगर इसने आत्महत्या की है तो इसके गहने कहाँ गए?
हाँ सर! मंगेश मुंह से निकला, मेरा इस तरफ ध्यान ही नहीं गया था, लेकिन ऐसा भी तो हो सकता है कि यह औरत वह सब पहनती ही न हो
यह बात तो मामूली पूछताछ से पता चल जाएगी लेकिन मैं अभी बता सकता हूँ कि ये वह सब पहनती थी, ध्यान से देखोगे तो तुम्हे इसके गले पर हलकी खरोंच के निशान दिख जाएंगे जो शायद मंगलसूत्र खींच कर निकालते समय बने होंगे और इसकी कलाई की उस त्वचा का रंग साफ़ साफ़ हल्का नज़र आ रहा है जहां पहले धातु की चूड़ियां रही होंगी तुकाराम ने निश्चय पूर्वक कहा तो मंगेश माने उसे विस्मय और प्रशंसा मिश्रित भाव से देखता रह गया ।
आगे का सारा रहस्य पोस्टमार्टम से पता चल जाएगा । तुकाराम ने कहा और लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी।
अब तुकाराम ने मृतका के बच्चों की सुध ली! आठ साल की डॉली और बारह साल का सचिन! बगल के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। वे दोनों फूट-फूट कर रो रहे थे। एक पड़ोसन दोनों को संभाले हुए थी। उनसे रूटीन पूछताछ में कुछ पता नहीं चला। वे दोनों दोपहर को खाना खाकर स्कूल गए थे वापस लौटे तो माँ इस अवस्था में मिली। पूछताछ से यह पता चला कि सुबह माँ सामान्य थी लेकिन औरत के पति का कोई पता नहीं था। वह रोज दोपहर को खाना खाने आता और खाकर लौट जाता उस दिन भी दोपहर का खाना खाकर वह अपने काम पर चला गया था। जिसे जाते हुए कई पड़ोसियों ने देखा था।

आखिर पति कब लौटा?
कहानी अभी जारी है...
पढ़िए भाग 4


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