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मौनी पायल

मौनी पायल

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देखो सुधा, मैंने तुम्हें पहले भी समझाया था और आज फिर कह रही हूं कि हमारे यहां यह नहीं चलेगा अगर प्रिया ने अपना पति खोया है तो मैंने भी अपना जवान बेटा खोया है।

अरे ! समाज क्या कहेगा ? कैसी औरत है जिसे पति के मरने के बाद विधवा होकर भी चैन नहीं है। अरे ! उसके रंगहीन जीवन में अब दुबारा से रंगों की बरसात नहीं हो सकती, अब यह आभूषण, साज श्रृंगार उसके लिए नहीं है ! मानती हूं कि वह तुम्हारी देवरानी बाद में लेकिन बहन पहले है, लेकिन मैं यह अनुमति कभी नहीं दूँगी। शांति जी गुस्से में भड़कती हुई बोलने लगी।

लेकिन माँ, “एक पायल का ही तो सवाल है बस ! क्या प्रिया के नसीब में इतना भी सुख नहीं कि वो अपने ही पति द्वारा उसकी शादी की पहली सालगिरह पर लायी हुई पायल को पहन सके ? क्या गलत हैं इसमें ? आप तो उसे अपनी बेटी बना कर लायी थी ना फिर अब क्या हो गया ? और ये किस समाज की बात कर रही है आप। शायद भूल गयी है आप कि इस समाज में या फिर यह कहूँ तो इस देश में रहने वाले लोगों की सुरक्षा करते हुए ही आपका बेटा शहीद हुआ था ! चार महीने बीतने को आये रोहित को गए हुए, प्रिया तो मानो गुमसुम सी हो गयी..उसने खुद कुछ नहीं कहा, लेकिन एक औरत होने के नाते मुझे लगा कि शायद रोहित द्वारा प्रिया को इतने प्यार से दिया तोहफा उसे पहनने का हक मिलना चाहिए।”

बाकी जो आप सही समझे कहते हुए सुधा उठी और अपने की तरफ चल दी इस बात से अंजान की प्रिया दरवाजे के पास खड़ी होकर सब सुन चुकी थी।

गुमसुम सी प्रिया सारी बातें सुनकर बिना कोई सवाल या जवाब किये अपने कमरे में जा, दरवाजा बंद करके आईने के सामने बैठकर किस्मत के द्वारा खेले हुए खेल से खुद के जीवन का तमाशा बनता देख रही थी ! कही ना कही वो इस बात से अंजान ना थी कि ये समाज हो या फिर उसके खुद के करीबी रिश्ते ही क्यों न हो उसके भाग्य पर ग्रहण लगाने वाले इस कड़वे सच मे सहानुभूति तो देंगे, दर्द पर मरहम तो लगाएंगे लेकिन साथ ही साथ ऐसी कटाक्ष रूपी बातें मरहम से जख्म को भरने की बजाय और गहरा करती जाएगी। कल तक जो श्रृंगार उसकी सुहागन होने की निशानी थी आज वो अभिशाप का रूप ले लेगा।

उसकी बदकिस्मती की बातें तो हर कोई करेगा लेकिन कोई यह कह कर गर्व महसूस नहीं करवाएगा की उसके पति ने देश के लिए जान दी थी।

तभी बाहर के दरवाजे की बजी ड़ोर बेल से प्रिया सचेत हो गई और जल्दी से अपने आँसू पोंछ कर रोहित के द्वारा दी गयी पायल को बक्से से निकाल अपने साड़ी के पल्लू में कसकर बाँधकर रोहित के प्यार व एहसास को महसूस करती हुई अपने कमरे से निकल चल पड़ी दरवाजे को खोलने, यह सोच कर कि रोहित की यह आखिरी निशानी अब मौनी पायल बनकर सदैव उसे रोहित के आसपास होने का एहसास दिलाती रहेगी व सदैव रोहित को उसमें ज़िंदा रखेगी।


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