शिक्षा व संस्कार
शिक्षा व संस्कार
सुबह सुबह मार्निंग वाक पर गये दोनों दोस्तों की बातों ने कब बहस का रूप ले लिया उन्हें भी पता न चला।
जगह का भी जब लिहाज श्याम लाल को न रहा तो जगजीत जी ने चुप रहना ही उचित समझा व वहां से जाने के लिए मुड़े ही थे कि श्याम लाल जी ने लगभग चीखते हुए कहा_आगे से जगजीत एक शब्द भी मेरी बेटी के बारे में कहा तो मैं भूल जाऊंगा कि तू मेरा बचपन का दोस्त है । अरे तू क्या जाने बड़े लोगों की बातें। मैंने अपनी बेटी को शहर के सबसे बड़े कॉलेज में शिक्षा के साथ साथ स्वतंत्रता भी दी है। तेरी तरह नहीं जो छोटे से कॉलेज में दिन भर पढ़ने के बाद घर के काम के साथ साथ ट्यूशन भी करवाये अपनी बेटी से।
अब और न सुन सके जगजीत जी व बिना कोई जबाब दिये वहां से चल दिये। सारे रास्ते बस यही सोचते रहे कि क्या गलत कहा उन्होंने जो श्याम लाल ने दोस्ती की हर मर्यादा ही लांघ दी आज।
नीलू (श्याम लाल की बेटी) को लगभग रोज़ ही किसी न किसी लड़के के साथ कॉलेज के वक्त घूमते देख उसे गलत के अंदेशे ने भयभीत किया तो उसने श्याम लाल को सचेत करने की कोशिश की पर बात को समझने की बजाय श्याम लाल ने खरी खोटी सुना दी। सोच के भंवर से जूझते कब वो घर पहुंचे पता ही न चला। तन्द्रा बेटी की आवाज़ से टूटी, जो कॉलेज के लिए तैयार होने के साथ साथ काम भी निपटा रही थी व बिमार माँ को समय पर दवा लेने की हिदायत दे रही थी ।
बुझे मन से जगजीत जी भी आँफिस के लिए तैयार हो निकल ही रहे थे कि तभी फोन की घंटी बजी। स्क्रीन पर श्याम लाल का नम्बर देख न चाहते हुए भी उसने फोन उठा लिया । हैलो बोलते उससे पहले ही दूसरी तरफ से श्याम लाल की घबरायी आवाज़ आयी जगजीत नीलू घर से भाग गयी है, सारे गहने जेवर लेकर व समाज के सामने मेरे मुँह पर कालिख पोत कर। तू सही था मेरे दोस्त मैंने उसे बहुत ज्यादा ही स्वतंत्रता दे दी थी। गलत था मैं, हाँ गलत था मैं दोस्त। कह फफक पड़े श्याम लाल तब जगजीत जी बोले, नहीं श्याम लाल तू गलत नहीं था बस तूने बेटी को शिक्षा के साथ साथ संस्कृति व संस्कार नहीं दिये जिसका परिणाम आज तेरे सामने है ।
"काश तूने बेटी को शिक्षा के संग संस्कार भी दिये होते "!
खैर अब जो हुआ सो हुआ तू धीरज धर मैं आता हूँ फिर हम दोनों बिटिया को ढूंढेगे व समझायेगे।
कह जगजीत जी ने फोन रख अपनी बेटी की तरफ गर्व से देखा जिसने अपने पिता के दिये संस्कारों की वजह से खुद को शिक्षित होने के साथ साथ सुसंस्कृत व जिम्मेदार भी बनाया था और एक क्षण के लिए भी न शिक्षा का अभिमान किया था न पिता के दिये स्वतंत्रता का अपमान ।