फर्स्ट नाईट ( First Night )
फर्स्ट नाईट ( First Night )
आज भी वही चांदनी थी जिसमें भीग कर कोई मदहोश हो जाए और वही तारे जो आसमान की साड़ी में झिलमिल होकर उसे और भी सुन्दर बना दे । लेकिन आज रात अलग थी और मेरा मन अस्थिर था ।
मैंने कमरे में घुसते ही उस कल्पना को देखा जो अब तक मेरी तन्हाई की संगिनी बन कर मुझमें प्रेम भर दिया करती थी । पैर समेटे, सकुचाई सी, हाथों को घुटनो से चिपकाए जैसे उसने मेरी आँखों पर वशीकरण कर दिया जो, में अपलक उसे देख रहा था । इतनी सुन्दर कल्पना आज हकीकत बन कर मेरे सामने थी । मैं उसके पास जा कर बैठ गया और मेरे हाथ उसे आलिंगन में भर लेना चाहते थे की उसके दो गर्म आंसू मेरे हाथ पर गिरे ।
मेरे मन की तरंगे जैसे बैठ सी गयी और उस अचेतन से बाहर आते हुए मैंने कहा:- क्या हुआ आपको ?
जब दो बार पूछने पर भी कोई जबाब नहीं आया तो मैंने कहा:- विदाई के सूखे हुए आंसू फिर उभर आए हैं क्या, मुझे अपना दोस्त समझो
और ना में सर हिलाते हुए कुछ साहस करते हुए उसने कहा :- क्या आज अंतरंगता ज़रूरी है ? मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही ।
मैंने कहा:- नहीं, ये ज़रूरी नहीं है, जब तक तुम न चाहो ।
वो शायद मुझे समझने की कोशिश कर रही थी, जब में कमरे के सोफे पर जाने लगा तो मेरी बांह पकड़ कर मुझे रोक और अपने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली :- मैं आपको अपना शरीर समर्पित कर सकती हूँ, फिर आत्मा का समर्पण संभव नहीं होगा ।
और कई साल बाद वो आज भी मुझसे मिलने आती है, उसकी आत्मा के संरक्षक के साथ और मैं आज भी अपनी आत्मा को उसी की कल्पना से सराबोर करता हूँ क्यूंकि फिर आत्मा का समर्पण संभव नहीं होगा |