खेल
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आज स्कूल में पी.टी.एम थी, सभी अभिभाभक छमाही एग्जाम की कॉपीज देख रहे थे, अपने-अपने बच्चों की।
"अरे मीना जी आप क्या करेंगी प्रिन्सी की कॉपीज देखकर उसके तो फुल मार्क्स हैं, वह तो टॉपर है टॉपर !" प्रिन्सी के क्लास टीचर श्री अरविन्द शर्मा जी ने झूठी हँसी हँसते हुए कहा।
"इसीलिये तो देखना चाहती हूँ।" मीना ने ढृढ़ता से कहा।
"क्या मतलब ?"
"मतलब कुछ नहीं सर जी मै बस कॉपीज देखना चाहती हूँ।"
"शी गोट हंड्रेड पर्सेंट मार्क्स इन एवरी सब्जेक्ट एंड यू वांट ......l" श्री शर्मा ने गुस्से में कहा।
"इसीलिए सर मैं उसकी कॉपीज देखना चाहती हूँ, क्योंकि मुझे मेरी बेटी की केपिसिटी पता है कि वह कितना कर सकती है और कितना नहीं।"
"ठीक है देख लीजिये।" कहकर शर्मा जी ने प्रिन्सी कॉपीज का बण्डल निकलवा दिया। पढ़ते ही मीना की आँखें फ़ैली की फ़ैली रह गयीं।
"सर यह क्या किया आपने, मेरी बेटी ने तो सेवेंटी परसेंट से ज्यादा किया ही नहीं और आपने उसको टॉपर.......
"अरे शांत रहिये मीना जी आपकी बेटी मुझसे ट्यूसन पढ़ती है इसलिए, मेरा भी तो फर्ज बनता है कि मैं उसकी सहायता करूँ, उसका भविष्य उज्जवल करूँ।"
"आप उसका भविष्य उज्जवल कर रहे हैं ?"
"हाँ..हाँ जी ..हाँ जी।"
मीना मन ही मन सोचने लगी कि तभी तो प्रिन्सी जिद करती थी कि शर्मा सर बहुत अच्छे हैं बहुत अच्छे हैं।
उनका लेक्चर बेस्ट होता है। धीरे-धीरे उसने पढ़ना बिल्कुल बंद कर दिया क्योंकि शर्मा सर क्लास टीचर थे तो नंबर देना उनके हाथ में।
सारे क्लास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ने के लिए विभिन्न तरीके से उनको परेशान करते, जो होशियार थे उनको फेल कर दिया जाता, और जो बेकार उनको पास, मतलब दोनों का भविष्य खराब।
"मेरी बेटी को वही मार्क्स दीजिये जो उसके वास्तव में हैं और बाहर गेट पर लक्ष्य खड़ा है उदास, उसकी कॉपीज दोबारा चैक कीजिये।" मीना ने कड़क आवाज में कहा।
"लेकिन...।"
"लेकिन-वेकिन कुछ नहीं मैं पुलिस स्टेशन...।"
सुनकर शर्मा सर के चेहरे पर क्रोध और हताशा के भाव आ गए।