टीन का चश्मा
टीन का चश्मा
दो घंटे दिमाग का दही बनवाने के बाद वह हाथ जोड़ कर बोली-
"ठीक है बाबा...बहुत हुआ, तू सही, मैं गलत ओके...! लेकिन एक दोस्त होने के नाते समझाना मेरा फ़र्ज़ बनता था।"
"हो गया तेरा फ़र्ज़ पूरा ...?अब इजाजत हो तो मैं अपना काम कर लूँ?"
" अब जब तूने फैसला कर ही लिया है तो जाने फिर कब मुलाकात हो...!
"इतना क्या दुखी हो रही हो...! हॉस्टल में दोस्तों की कमी क्या...?" वह बेहद बेजारी से बोली।
"अच्छा सुन...एक गेम खेलेगी? रैपिड आन्सर।"
" ये क्या बला है...?"
उसने अरुचि दिखाई, लेकिन फिर ऋचा की उतरी शक़्ल देखकर तैयार हो गई।
"अच्छा बता कैसे खेलना है?" उसने जैसे अहसान किया।
"बहुत मजेदार मीनिंगफुल गेम है। फटाफट आन्सर देना है। सवाल, सुबह से लेकर शाम तक एक के बाद एक होने वाले काम और उन पर यूज होने वाली चीजों पर होंगे।"
"ओक्के...लेकिन गेम किस टाइप का है समझ नहीं आ रहा? "
"तू खेल तो सही ..., तो शुरू करते हैं... बताओ सुबह टॉयलेट से निकलते ही किस चीज की जरूरत होती है?"
"साबुन"
"राइट...,फिर अगला काम?"
"ब्रश..., उसके लिए टूथपेस्ट,टूथब्रश"
"गुड ,फिर..?"
"नहाना...!"
"उसके लिए क्या होना जरूरी...?"
"ऑफकोर्स साबुन,शैम्पू"
"फिर...?
"बॉडी लोशन,क्रीम बगैरा"
"क्या बात है...! फिर...?
"ब्रेकफास्ट...!"
"फिर...?"
"क्या फिर -फिर ...? बकबास..., ये भी कोई गेम है...?"
"देखो...,गेम शुरू किया है तो बीच में नहीं छोड़ सकते।"
"क्या मतलब नहीं छोड़ सकते...?क्या बेतुका सा गेम है यार! अरे सब की लाइफस्टाइल अलग होती है; तो कैसे बोलूँ कोई इसके बाद क्या करेगा...?"
"सब की छोड़, तू अपने ही बारे में बता दे बस...!"
"क्या बस...,अरे रोज कोई एक सा काम थोड़ी होता है।"
"तो जो रोज होता हो वही बता दे!"
"ओके फिर ...लंच, शाम की चाय और डिनर" उसने एक बार में ही छलांग लगाई।
"चल ठीक है। अब सुन..!ये जो तूने जितने काम गिनाए हैं ना, ये कोरे प्यार से पूरे नहीं होने वाले! इनके लिए पैसे चाहिए होते हैं पैसे...! जरा अपनी आँखों हरा चश्मा उतार कर देख, पतझड़ साफ नजर आएगा। क्योंकि जिसके लिए तूने ये बैग पैक किया है ना...,वह बेरोजगार घूम रहा है।"