व्यथित भये आशिक
व्यथित भये आशिक
आइये आज आपको एक महानुभाव से मिलवाती हूँ | यूँ तो जनाब शादीशुदा और दो जवान बच्चों के बाप हैं पर शादीशुदा होने से ख्वाहिशे खत्म नहीं होती | उनकी ख्वाहिशे आशिकी के समंदर में डूबती उतराती हैं | आशिकी उनका फुलटाइम जॉब है ,उनका दिमाग हमेशा कामदेव की डयूटी बजाता है |
हाँ में इनके व्यक्तित्व के बारे में तो आपको बताना भूल ही गई |
देखने में अजब गजब, मोटी तोंद, कुछ त्रिभुजाकार सा मुँह और उसमें ठुँसा रहता है पान मसाला जिसकी वजह से रंगीन दाँत और आँखों पर बाबा आदम के ज़माने का चश्मा, हंसी तो ऐसी कि खलनायक भी पिछड जाये और जब बात करने को मुँह खोले तो उसका सामना करने की आपकी रही सही हिम्मत भी जबाब दे जाये | बाक़ी कसर पूरी कर दी माँ बाप ने सुन्दरलाल नाम रख कर | सरकारी अफसर है सो ज़िंदगी आराम से कटती है |
बंदे में हिम्मत भी गजब की है, अनेकों बार पिटे पर कहीं भी कोई भी मौका नहीं चूकते लाइन मारने का, और तो और सोच तो इतनी फंडू कि कोई भी महिला किसी पुरुष सहकर्मी से बात करे तो उन्ही का नाम जोड़ कर बदनाम करते फिरें | उनके किसी परम मित्र की भी कोई महिला मित्र हो तो उससे भी जलते हैं और उसके सामने ख़ुद को कोसना भी नहीं भूलते | क्या करें उनकी तरफ कोई नहीं देखती |
पर भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, आखिर सुन्दर लाल की किस्मत ने भी पलटी मारी | उनका तबादला दूसरे ऑफिस में हो गया वहाँ उन्हें प्रमोशन तो मिली ही साथ ही मिली एक सेक्रेटरी, जो थी तो शादीशुदा पर थी एकदम तितली टाइप... हर दम चहकती सी रहती, 35 पार कर चुकी थी पर ख़ुद को समझती 21 की थी और हरकतें भी वैसी ही थी | देखने में भी ठीक ठाक थी | सुन्दर लाल से लंबी, लम्बोतरा मुँह , ऊपर के दाँत नीचे के दाँतों से दौड़ में जीतते हुऐ , पर सुन्दरलाल के सामने तो खूबसूरत ही थी और नाम था सपना, जिसने सुन्दरलाल को दिन में ना जाने कितने सपने दिखा डाले और उसके खिलंदड़े स्वभाव ने, हमारे सुन्दरलाल के मन के गिटार के सारे तार छेड डाले थे |
उन्होंने अपना जाल उस पर डाला तो वो बड़ी आसानी से फँस भी गई | फँसना ही था, दफ्तर में काम–धाम कुछ खास था नहीं | खाली दिमाग इश्क़ का घर होता है | इस घर में सुन्दरलाल घुस गये |
अब तो उनके पाँव ज़मीन पर टिक ही नहीं रहे थे | हर समारोह हर कान्फ्रेंस में दोनों साथ साथ जाते | सुन्दर लाल मित्रों को बताना नहीं भूलते कि फँसा ली हमने भी |
अब हमारे “ब्यूटी रेड” यानि सुन्दरलाल जी सपना पर अपना समय और पैसा दोनों लगा रहे थे ताकि मछली हाथ से फिसल ना जाये और मछली भी ठुमकती डोल रही थी | इससे पहले ऑफिस में इतनी इम्पार्टेंस जो उसे किसी ने नहीं दी थी |
इधर हमारे सुन्दरलाल जी के मित्रों ने उन्हें समझाने का भरसक प्रयत्न किया कि “भाई इस उम्र में ये छिछोरापन शोभा नहीं देता कहीं भाभी जी को पता लग गया तो खैर नहीं” उस पर सुन्दरलाल जी ने मित्रों से कहा, ‘भाई हमारी चिंता तो आप मत ही करो, हमने भी कोई कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं | हमने सपना और उसके पति से अपनी पत्नी को मिलवा दिया है | हमारी कुछ पारिवारिक मुलाकातों की वजह से श्रीमती जी को अब कभी शक नहीं होगा | वो पूरी तरह बेफिक्र हैं सपना
और उनके पति से घुल मिल भी गई हैं | दोस्तों ने उनके दिमाग की दाद दी और इस फार्मूले पर भविष्य में काम करने का प्रण ले लिया |
अब सुन्दरलाल जी का मामला एक दम फिट फाट चल रहा था | कभी ये पत्नी सहित सपना के घर जाते, कभी वो आते | अब तो पारिवारिक मिलन की फोटो फेसबुक पर भी दिखने लगी थी | हमारे सुन्दर लाल दोस्तों को तुर्रा देते फिर रहे थे अपनी अक्लमंदी का “देखो बीबी और माशूक दोनों को सेट कर दिया, मर्द हो तो हमारे जैसा आदि |
इसी तरह उनकी ज़िंदगी की शताब्दी एक्सप्रेस तेजी से दौड़ रही थी | अब सुन्दरलाल जी बीबी की तरफ से एकदम निश्चिंत होने लगे थे कि अब उनकी मोहब्बत में कोई रोड़ा नहीं | उन्हीं दिनों आफिस की किसी कान्फ्रेंस के सिलसिले में पहाड़ों पर जाना था | सुन्दर लाल जी के मन में लड्डू फूट रहे थे कि इस बार तो पूरे चार दिन सपना के साथ बिताने का मौका मिलने वाला था | इन्होने अपना कार्यक्रम अपनी पत्नी को बताया तो वो बड़े प्यार से बोली “सुनो जी हमें भी ले चलो हम कभी पहाड़ पर गये भी नहीं हैं” |
“अरे डार्लिग मन तो हमारा भी था, पर क्या करे, हम तो कान्फ्रेंस में व्यस्त रहेंगे और आप होटल में बोर हो जाऐंगी” सुन्दरलाल जी बीबी से बड़े प्यार से बोले | असल में तो वो इस रोड़े को साथ ले जाना ही नहीं चाहते थे |
पर बीबी भी हार मानने वाली नहीं थी | उन्होंने पैंतरा बदला,“अरे आप सपना के पति रमेश को भी साथ ले लो | आप दोनों दिनभर कान्फ्रेंस में रहेंगे | हम रमेश के साथ घूम लेंगे ,फिर शाम को तो आप और हम होंगे ही |
अब सुन्दरलाल जी मान गये ‘इस बहाने बीबी और माशूक दोनों ख़ुश अपना मौका तो निकाल ही लेंगे दिनभर तो सपना हमारे साथ ही रहेगी’|
सपना भी ख़ुश हो गई और उसका पति भी फटाफट मान गया | उसे तो मानना ही था क्योंकि उसका ख़र्च देने का वादा सुन्दरलाल जी ने कर ही दिया था |
खैर सब पहाड़ों पर पहुँचे | दिन में कान्फ्रेंस | शाम को सैर सपाटा | बीबी जरुरत से ज्यादा ख़ुश नज़र आ रही थी और मेहरबान भी | सुन्दरलाल को लगा, चलो अब लाइफ सेट है, सब स्मूथ चल रहा है |
उस दिन कान्फ्रेंस का आखिर दिन था और सुन्दर जी और सपना होटल जल्दी वापिस आ गये | उनकी पत्नी और रमेश कही आसपास घूमने गये थे | रिशेप्शन से चाबी लेकर दोनों कमरे में आये | सुन्दरलाल के मन में लड्डू फूटा कि चलो मौका मिला | तभी सपना बोली “सर आप प्लीज देखकर आईये ना मैडम और रमेश कहाँ है | में तब तक फ्रेश हो जाती हूँ |” अरे आ जायेंगे ना तब तक हम दोनों .......वो कुछ कह पाते तब तक सपना ने लगभग उन्हें कमरे से बाहर धकेल दिया, “जाइये ना सर” | बेचारे अपना सा मुँह लेकर निकल पड़े, अपनी पत्नी को खोजने |
थोड़ी दूर आगे ही पार्क था | वहाँ पहुँचने पर उन्होंने जो देखा तो उनकी आँखे फटी रह गयीं और पैरों तले की जमीन निकल गई |
उनकी बीबी माशूक के पति की बाँहों में थी और दोनों इश्क लड़ा रहे थे, वो भी पार्क में खुलेआम | सुन्दरलाल जी की आँखों के आगे झिलमिल नाचने लगी |किसी तरह वहाँ से वापस आये | चुपचाप अंदर जाकर लेट गये |
उसी शाम उनके पेट में दर्द उठा और वह इलाज कराने अपने शहर लौट आये | कई दिन उन्होंने इस स्पेशल दर्द का इलाज कराया ,पर दर्द ठीक ही न हुआ |
किसी सयाने के कहने पर उन्होंने ट्रांसफर ले लिया, तब जाकर दर्द थोड़ा ठीक हुआ अब दर्द बस तब ही बढ़ता है जब उनकी पत्नी सपना या रमेश का नाम लेती है |
भगवान जैसा दर्द सुन्दरलाल जैसे भले आदमी को दिया, ऐसा दर्द भगवान सारे दुश्मनों को दे |