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गूगल वर्सेज अनुभव

गूगल वर्सेज अनुभव

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शहर के सबसे बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज की बस ट्रैकिंग के लिए जा रही थी। बस में सबसे आगे बैठा जितेश मोबाइल पर नेविगेशन से ड्राइवर को रास्ता समझा रहा था, "राइट टर्न लो, अब लेफ्ट टर्न लेना।" बाकी स्टूडेंट्स भी अपने फोन की ऑनलाइन दुनिया में मशगूल थे। सबका ध्यान भंग हो गया जब ड्राइवर रामरतन ने अचानक ब्रेक लगा दिये। दो ही सेकंड में शोर शुरू हो गया, "क्या हुआ, बस क्यों रोक दी ?"

"बाबूजी ! मुझे लगता है आगे रास्ता नहीं है, जो चढ़ाई वाला रास्ता हमने 100 मीटर पहले छोड़ा, वही सही रास्ता है।" ड्राइवर थोड़ा हिचकते हुए बोला।

यह सुनते ही जितेश का पारा चढ़ गया। वह बोला, "सुना दोस्तों ! हमारे रामरतन भैया का नॉलेज तो गूगल से भी ज़्यादा है। नेविगेशन सामने का रास्ता बता रहा है लेकिन रामरतन भैया कह रहे हैं कि पीछे चला जाए।"

"लेकिन बाबूजी" रामरतन बोलने लगा तभी जितेश ने उसकी बात काट दी। "रामरतनजी ! जितना कहा है उतना कीजिए, सीधे चलिए।"

रामरतन ने भी बहस नहीं की। बस आगे बढ़ा दी। बस 300 मीटर ही चली थी कि फिर ब्रेक लग गए। गुस्से में स्टूडेंट्स ड्राइवर के पास पहुँचे तो देखा आगे चट्टान गिरी हुई थी और रास्ता बंद था। पूरी बस में खामोशी छा गई। सिंगल रोड थी तो 400 मीटर तक बस रिवर्स में चलानी पड़ी। खैर, बस फिर वहीं आ गई जहां पहली बार रूकी थी। जितेश झिझकते हुए बोला, "रामरत्न भैया ! आपको कैसे पता चला कि रास्ता आगे से बंद है।"

"बाबूजी ! वो रास्ता देखिए, कितनी मिट्टी जमी हुई है। ऐसा तभी होता है, जब उस रास्ते पर गाड़ियों और लोगों की आवाजाही न हो। तभी मुझे लगा कि शायद आपका फ़ोन गलत जानकारी दे रहा है। आपको बताना भी चाहा लेकिन आपने बोलने नहीं दिया।"

रामरतन का जवाब सुनकर सारे स्टूडेंट्स चुप हो गए। उनके समझ में आ गया कि जीवन का अनुभव, गूगल से नहीं मिल सकता।


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