रिश्ता
रिश्ता
दरवाज़े पर लगी कॉलबेल को ज़ोर से दबा दिया मुग्धा ने। गुस्से से उसकी आँखें लाल हो रही थी, साथ में खड़ा देबु डर के मारे कांप रहा था,
"आज क्या होगा ? मम्मी को यहाँ ले तो आया अब क्या होगा...!"
दरवाज़ा खुला। दरवाज़े पर वही थी। वह सामने ही बैठा था शराब का गिलास हाथ में लिये। मुग्धा बड़बड़ाने लगी,
"यह यहाँ बैठा है ! कहता है कि मेरा उस औरत से कोई मतलब नहीं मैं वहाँ नहीं जाता।"
मुग्धा को देख उसकी आँखें विस्मय से फट पड़ी। मुग्धा के मुंह से गालियां निकलने लगी ! दोनों शराब पी रहे थे, सामने टेबल पर नमकीन अंग्रेजी शराब रखी थी।
"यह हो रहा है यहाँ ! मैं घर में कर्ज़दारों से निपटूँ और तुम यहाँ रंगरलियाँ मना रहे हो ! शर्म नहीं आती तुम्हें !"
"तुम यहाँ क्यों आई ?"
जो नरेश खुश हो गप्पे मार रहा था, निशा और उसके पति के साथ, उसकी सारी खुशी व नशा हवा हो गया।
उसे मज़ा आ रहा था। निशा का हुस्न और शराब का नशा ! यहाँ ज़िंदगी थी वहाँ घर पर यह मुग्धा ! पागल और गुस्सैल ! यह यहाँ भी पहुंच गयी, उसके सब्र का पैमाना छलक गया। सबके सामने ज़ोर से थप्पड़ जड़ दिया,
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की !"
मुग्धा अपमान से अपना आपा खो बैठी और झपट पड़ी निशा पर,
"इसकी वजह यह है ! तू ही वो चुड़ैल जिसने मेरा सब छीन लिया। आज इसे नहीं छोडूंगी। मेरे पति को कंगाल करके रख दिया ! कर्ज़दार घर पर आते हैं। मैं और मेरा परिवार कर्ज़ चुकाए और यहाँ मजे हो रहे हैं ! अपने पति के होते हुए दूसरों पर नियत रखती है। पति की आड़ में कमाई कर रही है !"
निशा का पति बौखला जाता है। वह मुग्धा को धक्का दे देता है,
"निकलो मेरे घर से अभी के अभी !"
निशा ने भी मुग्धा को चाँटे मारे,
"निकल मेरे घर से !"
नरेश भी उन्हीं के साथ हो लिया,
"निकालो इस कमीनी को यहाँ से ! मेरा जीना हराम कर दिया है, हर जगह मेरे पीछे आ जाती है|"
पति के ऐसे तेवर देख मुग्धा सब समझ गयी और देबु का हाथ पकड़, यह कहकर निकल गयी कि,
"खबरदार जो कभी घर का रुख किया ! हमारा रिश्ता खत्म|"
सहमा देबु माँ का हाथ थामे निकल गया सड़क पर, दोनों रोते रहे।
शक तो उसे पहले ही था, आज रंगे हाथों पकड़ भी लिया। बहुत लोगों ने बताया था कि उसका पति किसी और औरत के साथ घूमता है, तरह - तरह के बहाने बना कई - कई दिनों तक गायब रहता था घर से !
सब खत्म हो गया। तब तक बड़ा बेटा भी आ गया। माँ को ऐसे हाल में देख वह सकते में था, उसे सब पता चल चुका था।
"घर चलो माँ। उस आदमी से अब हमारा कोई रिश्ता नहीं।"
मुग्धा ने गहरी सांस ली। उसने कसम ली कि जो अपमान व पीड़ा उसे आज हुई है फिर कभी न होगी। छल का रिश्ता समाप्त हो गया|
[ © सुनीता शर्मा खत्री ]