Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

अपना आशियाना- पार्ट 2

अपना आशियाना- पार्ट 2

2 mins
602


"लेकिन रुको...

तुम ज़रा मेरे वक़्त करोगी, स्वंतत्रता के समय की 4%अकेली स्त्री, अब 36%हो गई हैं।

पहले मजबूरी में अकेले रहने का निर्णय, अपना एकांत तलाशता "विवाह संस्था" पर उंगली रख रहा है ?

तुम्हारा जीवन भी तो "विवाह- संस्था के बाहर खड़े रह जाने की देन है, यदि तुम्हारी मौसी ने एक रस्म के बहाने तुम्हें अपने बेटे की मंगेतर न बनाया होता तो ,बचपन की यही सगाई बड़े हो कर सवाल कैसे खड़े करती ?

तुम भी ब्याह दी जाती,नानी, दादी बन, नाती-पोते खिलाती या शायद अकेली बच जाती ....आज की तरह अपने अकेलेपन से जुझती....!

यदि मैं ठीक समझ पा रही हूँ तो 'अपनी छत' और उसके बहाने मिले अकेलेपन के बीच फैला हुआ ये अंधकार..।

परिवार के बाहर खड़ी स्त्री को आत्मनिर्णय, अपना समय,अपना पैसा, अपना कमरा, अपना कोना 'अपनी छत' मिल जाती है, जहाँ वो अपने-आप होती है। लेकिन जीवन के उत्तरार्ध में अकेलापन उन्हें डराता है...।

आकृति ! क्या परिवार वाली स्त्री अकेली नहीं रह जाती है ? हमारे समय में तो लड़कियों चुनती हैं अपना 'एकांत' ...!

"विवाह -संस्था" से बाहर आकर चुनौती दे रही हैं,जी रही है, अपनी तरह से उनके पास संवाद के लिए 'मोबाईल फोन है, इंटरनेट है, सम्पर्क के लिए अपने वाहन है, संर्सग के दुष्परिणाम अब नहीं डराते है।

प्राधोगिकी उनके साथ खड़ी है,अपना समय,अपना और अपना घर है, कोई उन्हें खदेड़ नहीं सकता कई बार व्यवस्था उन्हें "बुरी लड़की " का खिताब भी देती है..!पर वो बिंदास हैं।

बाकी बातें अगली कड़ी में ...।


Rate this content
Log in