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पुष्पा, आई हेट टीयर्स

पुष्पा, आई हेट टीयर्स

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इस कहानी की एक नायिका नहीं है। नायिकाओं का नाम पुष्पा का बहुवचन पुष्पाओं है।

पर यह कहानी सन १९७२ में आई फिल्म ‘अमर प्रेम’ के किरदार ‘पुष्पा (शर्मीला टैगोर) और आनन्द बाबू (राजेश खन्ना)’ की नहीं है।

अमर प्रेम की पुष्पा तो आनन्द बाबू जैसे नेक इंसान के मिल जाने की वजह से गंगा की तरह पवित्र रहती है और अन्ततः आनन्द बाबू के प्रयास से ‘नन्दू (विनोद मेहरा)’ की माँ बन कर अपना शेष जीवन सामान्य स्त्री की तरह यापन करती है।


शायद एक लाख पुरुषों में से कोई एक आनन्द बाबू होता है, यानि कि एक लाख पुष्पाओं में से केवल एक ही तो अमर प्रेम की गंगा की तरह पवित्र पुष्पा बच पाएगी, पर बाकी सारी पुष्पाएं नहीं।

नाले तो उद्गम गोमुख के पास गंगोत्री से लेकर कोलकत्ता में समुद्र में विलय तक गंगा को अनवरत गन्दा कर ही रहें हैं।

गंगा को साफ़ करने के लिए तो आनन्द बाबू के रूप में सरकार (शासन) लगातार प्रयतनशील है, करोड़ो रूपया खर्च हो रहा है। गंगा तो साफ़ हो जायेगी।


लेकिन इस कहानी की करोड़ों जीवन्त सजीव नायिकाएं पुष्पाओं को कोई कहने वाला नहीं है - पुष्पा, आई हेट टीयर्स।

सरकार को ही तय करना होगा कि पहले गंगा साफ़ हो या पहले सभी पुष्पाएं कहीं आत्म सम्मान का जीवन शुरु कर सकें, चाहे वह किसी नन्दू बेटे के अपनाने से हो या अन्य कोई उचित व्यवस्था हो।  

यह माँओं के सम्मान की बात है, चाहे वह नारी माँ (पुष्पाओं) का हो या चाहे गंगा माँ का।

प्रगति के व्याख्यान या ढकोसलों से कुछ नहीं होगा।

कोई शुरू करें, सब साथ दें, सरकार का मिशन बन जाए - पुष्पा, आई हेट टीयर्स।   

हे माँ, शक्ति दे।  

 


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