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Kumar Vikrant

Crime

4.2  

Kumar Vikrant

Crime

भाड़े का हत्यारा

भाड़े का हत्यारा

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विल सिटी, उत्तरी भारत की सिन सिटी या पाप की नगरी, लेकिन ये शहर मेरे लिए सोने की खान साबित हुआ। शहर की बाहरी आबादी में स्थित आर्ट स्टूडियो मेरे असली काम का मुखौटा था, ये बात सही है कि मैं कॉलेज में सबसे बेहतरीन पोर्ट्रेट आर्टिस्ट था। लेकिन आर्टिस्ट के नाम से तो मैं यहाँ भी मशहूर था, विल सिटी के अंडरवर्ल्ड के मूसा गैंग के लिए मैंने उनके राइवल गैंग के अनगिनत लोगों को कॉन्ट्रैक्ट लेकर मारा था। सारे कॉन्ट्रैक्ट और किलिंग की फीस मै ऑनलाइन लेता था। मुझे कॉन्ट्रैक्ट में सिर्फ टारगेट की लेटेस्ट फोटो और मेरे केमैन टापू के बैंक में मेरी मनचाही रकम जमा चाहिए थी उसके बाद टारगेट को अधिक से अधिक एक सप्ताह में ही मै मार डालता था। टारगेट को मारने के लिए उसकी डेली एक्टिविटी को देखकर ऐसी प्लान बनाता था कि टारगेट को उसके अंजाम तक पँहुचा कर मै सही सलामत अपने स्टूडियो में आ जाता था। जब मै किसी व्यक्ति का पोर्ट्रेट बना रहा होता था वो व्यक्ति सोच भी नहीं सकता था कि मेरे दिमाग में किसी को मारने की प्लान बन रही होता था। हर कत्ल के लिए मेरा हथियार और प्लान अलग होती थी यहाँ तक की मै प्रत्येक क़त्ल के बाद मै अपना हथियार और लैपटॉप नष्ट कर देता था और कार किसी दूर दराज के शहर में जाकर बेच देता था। 

प्लानिंग का महत्व मुझे १३ साल की उम्र में ही पता लग गया था। सुरेश वो इंसान था जिसने मात्र १३ साल की उम्र में मुझे ये अहसास दिला दिया था कि तुम हर चीज से भाग नहीं सकते कभी न कभी उस चीज का सामना तुम्हें करना ही होगा, लेकिन इसके लिए एक अच्छी प्लानिंग की जरूरत भी होती है। सुरेश क्लास ८ में मैथ का टीचर था जो उन स्टूडेंट्स को बहुत पीटता था जो उससे ट्यूशन नहीं लेते थे। 

छह महीने जानवर की तरह मार खाने के बाद आखिर मैंने उसका सामना करने का निर्णय लिया और उसके अत्याचार की सजा खुद देनी तय की। उस दिन मै स्कूल के बाद सीधे घर न जाकर स्कूल से लगे उस बगीचे में जाकर छिप गया जहाँ से सुरेश अपने स्कूटर पर अपने घर जाता था। स्कूल यूनिफार्म उतार कर मैं सादे कपड़े पहन चुका था, हाथों में सर्दी वाले चमड़े के ग्लव्ज़ पहन लिए थे। जब मैंने उसे आते देखा तो चेहरे पर होली के दौरान मिलने वाला मुखौटा पहन लिया और पास पड़ी टूटी हुई ईंट उठा ली और जैसे ही वो नजदीक आया मैंने उसके चेहरे का निशाना लेकर ईंट पूरी ताकत से फेंकी। ईंट उसके चेहरे पर जा लगी और वो जोरदार तरीके से स्कूटर से गिरा और मैं वहाँ से भाग निकला। 

वो एक हफ़्ते बाद जब अपनी टूटी नाक लेकर स्कूल आया तो वो एक डरा हुआ इंसान था उसके बाद उसने पूरे साल क्लास या स्कूल के किसी बच्चे को नहीं मारा। 

मेरी इस जीत के बाद भी अति उत्साही न बना, मैं खामोश रहा। इसके बाद जिस इंसान ने भी मेरी बेइज्जती की या मेरा हक़ छीना तो मैंने उसे शांत रहते हुए अचानक हमला कर उसके अंजाम तक पहुँचा दिया। कालेज में एन. सी. सी. इस लिए ली की मैं हर प्रकार के हथियार को चलाना सीख लेना चाहता था, क्योंकि मेरी आने वाली जिंदगी में हथियारों की जानकारी होना बहुत महत्वपूर्ण था। 

कालेज ख़त्म करते-करते मैं कई लोगों को लगभग मौत के करीब पहुँचा चुका था, लेकिन अब समय था अपने इसी हुनर को अपना प्रोफेशन बनाने का। इस प्रोफेशन को चलाने के लिए मुझे टारगेट चाहिए थे जो सिविल सोसाइटी में तो मिलने नहीं थी इसलिए मै अपराध नगरी विल सिटी में आ बसा था।

मैंने आर्टिस्ट के नाम से एक साईट बनाई जिसमें मैंने लोगों को पैसे के बदले उनके दुश्मनों को ठिकाने लगाने का ऑफर दिया। एक महीने तक कोई नहीं आया लेकिन एक महीने के बाद मुझे जिसे ठिकाने लगाने का काम मिला वो एक दादा था और हर समय बहुत ही खतरनाक लोगों से घिरा रहता था। मुझे मेरा मौका दो हफ्ते बाद मिला वो भी उसके एक मुकदमे की सुनवाई के बाद कोर्ट के बाहर सड़क पर आया तब मैंने अपनी कर की खिड़की से सायलेंसर लगी लॉन्ग रेंज की रायफल से उसकी छाती में गोली मारी, वो स्पॉट पर ही मर गया। इसके बाद मेरे पास काम की कमी न थी।

लेकिन अब लगने लगा था कि पुलिस और गैंगस्टर मुझसे परेशान हो चुके थे और मुझसे छुटकारा पाने को बेताब थे, हालांकि अब तो जो लोग मैंने मारे थे वो सभी समाज के लिए खतरा थे, लेकिन या तो पुलिस इस खूनखराबे से परेशान थी या मूसा गैंग के खिलाफत वाले गैंगस के हाथों में खेल रही थी। 

कहीं पढ़ा था कि जो हथियारों के दम पर जीते है वो हथियारों से ही मारे जाते है, और इस फील्ड में पाँच साल तक जिंदा रहना बहुत बड़ा काम था; तो अब रिटायर होने का टाइम आ गया था। मै इस शहर से निकलने के लिए अपना सब कुछ समेट चुका था तभी साईट से एक अलर्ट आया, किसी नाबालिग लड़की का रेप हुआ था और उसका पिता उसके रेपिस्ट को मरवाना चाहता था और उसे शक था कि रेपिस्ट और उसका परिवार उसकी बेटी की हत्या कर सकते थे। इसके एवज वो मुँह मांगी रकम देने को तैयार था। 

अजीब बात थी कि इससे पहले आज तक ऐसी रिक्वेस्ट नहीं आई थी, कहीं कोई ट्रैप तो नहीं था? मैंने जिंदगी में कभी भी दिल की नहीं सुनी थी, दिमाग कह रहा था ट्रैप है दिल कह रहा था, दिमाग की न सुनो नहीं तो एक मासूम की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। पहली बार दिल दिमाग पर हावी हुआ और मैंने बिना पैसा लिए विक्की देव को मारने का कॉन्ट्रैक्ट ले लिया। इस धंधे से किनारा करने में अभी कुछ दिन और बचे थे। 

कॉन्ट्रेक्ट देने वाला गुमनाम था लेकिन थोड़ी जाँच-पड़ताल के बाद मुझे जानकारी मिली कि विक्की नाबालिग था उसने अपने ही स्कूल की कई लड़कियों के साथ दुराचार किया था लेकिन लड़कियों के माता-पिता ने सामाजिक कारणों से कभी उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं की थी। शहर के बहुत ही ताकतवर राजनीतिज्ञ का बेटा था, लेकिन इन बातों का मुझपर कोई ज्यादा असर नहीं पड़ता है, कॉन्ट्रैक्ट में ले चुका था और उसे पूरा करना जरूरी था। 

पूरे तीन दिन विक्की की दिनचर्या से पता लगा की वो अकसर विल सिटी क्लब जाता है; जो शहर से पाँच किलोमीटर दूर था और उस समय उसके साथ केवल एक सिक्योरिटी गार्ड होता है। रात को १० बजे विक्की क्लब से शराब के नशे में धुत्त निकलता है, उसी समय उसे मारे जाने का सबसे उचित समय था। 

आज भी हमेशा की तरह मेरे पास नई सेकंड हैंड कार थी, मैंने विक्की और उसके गार्ड को भीड़ के साथ क्लब में जाते देखा, मैंने कार क्लब के सामने की सड़क पर खड़ी कर ली, रायफल पर टेलिस्कोप और सायलेंसर फिक्स किया। रायफल पैरो के पास रखकर मै विक्की के क्लब से बाहर निकलने का इंतजार करने लगा। धीरे-धीरे अँधेरा बढ़ता गया और तभी एक कार सड़क के दूसरी तरफ आकर रुकी और तीन कद्दावर लोग मेरी कार की तरफ बढे। मुझे खतरे का अहसास हुआ, मै कार आगे बढ़ाने वाला ही था की उन तीनों में दो मेरी कार के सामने आ गए और एक ने मुझे कार से बाहर खींच कर रायफल भी बाहर निकाल ली।

"क्राइम ब्रांच, बहुत मुश्किल से कब्जे में आया तू........लड़की के रेप वाला ड्रामा काम आ गया; इतने कत्ल किये है, पक्का फाँसी चढ़ेगा।" उनमें से एक हथकड़ी निकालते हुए बोला। 

मैं मुसीबत में था, दो पुलिस वालो ने मुझे पीछे से पकड़ा हुआ था और एक हथकड़ी का लॉक खोल रहा था। तभी वो हुआ जिसके मुझे उम्मीद न थी। सामने की एक बहुत बड़ा ट्रक बेकाबू होकर लगभग हमारे ऊपर चढ़ते हुए मेरी कार से जा टकराया। दो पुलिस वाले ट्रक की चपेट में आकर हवा में उड़ गए और मै भी तेजी से कूदकर सड़क की खंती में जा गिरा। मै काँटों की झाड़ी में गिरा था लेकिन मुझे काँटों की परवाह नहीं थी, मै उछल कर खंती से बाहर आया और अँधेरे में भागा। तभी दो धमाके हुए और दो गोली मेरी पीठ में आ लगी, मै दर्द से बिलबिलाते मुँह के बल गिरा, लेकिन गिरने का अंजाम पता था मुझे इसलिए अपनी सारी ताकत को बटोर कर खड़ा हुआ और अँधेरे में भाग निकला। 

मैं जिंदगी और मौत की दौड़ दौड़ रहा था, मुझे पता था कि जल्दी ही मुझे मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं मिला तो शरीर से बहता खून मुझे मार डालेगा।


अभी मुश्किल से आधा किलोमीटर ही दौड़ा था कि मेरी टाँगे जवाब दे गई और मैं धुल भरे उस रास्ते पर गिर पड़ा जिस पर मैं पिछले १० मिनट से दौड़ रहा था। गोली के घावों से लगातार खून रिस रहा था, मेरे कपड़े, जूते, हाथ सभी मेरे खून से तरबतर थे। मै समझ चुका था कि यदि मुझे मेडिकल मदद न मिली तो मैं ज्यादा देर जिंदा बचने वाला नहीं था। 

सड़क मुझसे सिर्फ २०० या २५० मीटर दूर थी, लेकिन सड़क पर मेरे पकड़े जाने का खतरा था, इसलिए मुझे जरूरत थी सड़क के इस छोर पर ऐसे घर की जिसमें में छिप सकूँ। मैं एक बार फिर अपनी सारी ताकत लगाकर उठ खड़ा हुआ और घिसटते-घिसटते जा पहुँचा सड़क के इस छोर पर स्थित मकान के पिछले दरवाजे पर। दरवाजा अंदर से बंद था, मैंने सामान्य तरीके से दरवाजा खटखटाया, कई बार खटखटाने के बाद मैंने घर के अंदर किसी के चलने की आवाज सुनी। अब मेरे इम्तिहान की घडी थी, मैंने अपनी बेल्ट में लगी रिवाल्वर निकल ली। दरवाजा एक कद्दावर आदमी ने खोला, मैंने रिवाल्वर उसकी छाती पर लगा दी और उसे पीछे हटने को कहा। अंदर आकर देखा तो ये कोई घर नहीं था बल्कि ट्रैक्टर वर्कशाप थी। 

अंदर तीन या चार कमरे थे और कमरों के सामने बड़ा सा बरामदा था, बरामदे के सामने एक बहुत बड़ा आँगन था जिसने कई ट्रैक्टर खड़े हुए थे। बरामदे की डिम लाइट में उसने मुझे देखा और वो बिना रिवाल्वर की परवाह किये हुए बोला, "बहुत बुरा हाल है तुम्हारा, यहाँ क्या करने आये हो?" 

"मुझे गोली लगी है, मुझे डॉक्टर की जरूरत है, मुझे किसी डॉक्टर के पास ले चलो, मै तुम्हें बहुत पैसा दूंगा।" मैंने उसे लालच देते हुए कहा। 

तभी वर्कशॉप के मेन गेट को जोर से खटखटाने की आवाज आई और कोई चिल्लाया- “दरवाजा खोलो पुलिस है।“ 

"तुम अंदर कमरे में छिप जाओ मैं देखता हूँ पुलिस को।" उस आदमी ने एक कमरे की और इशारा करते हुए कहा। 

मैं कमरे में जा छिपा लग रहा था पुलिस पूरी वर्कशाप की तलाशी ले रही थी, तभी कोई बोला, "बहुत बकवास जगह है, वो घायल है किसी डॉक्टर के पास जायेगा, शहर के सब डॉक्टर्स को चेक करो।" 

उसके बाद कुछ देर शांति रही, मेन गेट बंद होने की आवाज आई, और वो आदमी कमरे के अंदर आते हुए बोला, "बाहर तो चप्पे-चप्पे पर पुलिस है, डॉक्टर के पास तो तुम्हें नहीं ले जा सकता लेकिन पैसा दो तो डॉक्टर को यहाँ ला सकता हूँ।"

"मैंने जेब से २००० के नोटों वाली एक गड्डी से कुछ नोट निकाल कर उसे देने चाहे लेकिन उसने तेजी से मेरे हाथ से गड्डी झपट ली और बोला, "सारे देने पड़ेंगे तब इलाज होगा, अच्छा अब मैं जाता हूँ; तुम इस बैड पर लेट जाओ, मेन गेट का ताला बाहर से बंद करके जाऊंगा, अगर कोई दिक्कत आये तो पिछले दरवाजे से भाग जाना।"

वो तो चला गया और मै सोच में पड़ गया कि कौन था वो जिसके भरोसे मेरी जिंदगी थी? उसका नाम नहीं पता था न ही ये पता था कि उसका इस वर्कशॉप से कुछ लेना-देना भी था या नहीं। पुलिस के आने से उसे मेरी सच्चाई तो पता लग ही गई होगी, पुलिस ने तो अभी कोई इनाम नहीं रखा था मेरे सिर पर लेकिन विल सिटी के कई सरगना मेरी एवज अच्छा पैसा दे सकते थे उसे। खून का रिसाव तो रुक गया था लेकिन गोलियां शरीर में होने की वजह से मेरा शरीर अकड़ गया था, अब मुझसे हिला भी नहीं जा रहा था।

आज मुझे ऐसा लग रहा था कि ऊपर वाला मेरे कर्मों की सजा दे रहा था, १०० से ज्यादा लोगों को पैसा लेकर मारने वाला आज बेबस अपनी मौत का इंतजार कर रहा था। उस आदमी को गए तीन घंटे से ज्यादा हो चुके थे और मुझ पर बेहोशी छा रही थी, लगता है मेरा आखिरी समय आ गया था। हर काम को प्लान बना कर अंजाम देने वाले के पास आज जिन्दा बचने की कोई प्लान नहीं थी। तभी बेहोशी मुझ पर हावी होती चली गई।

जब होश आया तो देखा एक मै लेटा हुआ था और एक २२ या २३ साल का लड़का मेरे हाथ में लगी ड्रिप की स्पीड को एडजस्ट कर रहा था।

"तुम होश में नहीं थे इसलिए गोली नहीं निकाली, अब गोली निकलवाने को तैयार हो जाओ, अनेस्थिसिया का कोई इंतजाम नहीं है इसलिए दर्द बहुत होगा।" वो लड़का बोला। 

"तुम डॉक्टर हो?" मैंने उसकी उम्र को सोचते हुए पूछा। 

"नहीं, डॉक्टर भास्कर का सहायक हूँ........विश्वास हो तो गोली निकलू नहीं तो मै चलता हूँ।" वो लड़का बोला। 

मै कुछ बोलता इससे पहले ही वो कद्दावर आदमी बोला, "सुन भाई मै मैक हूँ और ये मोहन है, मुझे तेरी सारी कहानी पता लग गई है, तू जिन पुलिस वालो से बच कर भागा है उनमे से दो मर गए है और एक की हालत खराब है, पूरा पुलिस विभाग तेरी तलाश में जुटा है, अच्छे डॉक्टर की छोड़ कोई डॉक्टर तुझे देख ही ले इसका भी शक है मुझे; अब इस लड़के से गोली निकलवानी हो तो बोल नहीं तो छोड़ आता हूँ इसे।"

कुछ रास्ता न देख मैंने सहमति से सिर हिला दिया। 

लड़का बिलकुल अनप्रोफेशनल था उसने मेरे हाथ पैर बैड पर कस कर बंधवा दिए और नुकीली चोंच वाले प्लायर जैसे औजार को गोली से बने जख्म में डालकर गोली की तलाश शुरू की। गोली निकालने की सारी कवायद में जो दर्द मैंने सहा उसके लिए शब्द नहीं है। लेकिन वो लड़का बहुत तेज था १० मिनट में उसने दोनों गोली निकाल दी और जख्मों पर दवा लगा कर उन पर पट्टी कर दी।

उसके बाद मैक उस लड़के को छोड़ने चला गया, एक घंटे बाद जब वो आया तो चिंता के साथ बोला, "सुन भाई हर चोराहे पर पुलिस तैनात है शहर से बाहर जाने वाले हर वाहन की तलाशी ले रही है और अब तुझे यहाँ से जाना होगा, सुबह पुलिस घर-घर में घुस कर तलाशी लेगी, अंडरवर्ल्ड के लोगो को भी पता लग गया है कि तू घायल है इसलिए उनके आदमी पुलिस से पहले तुझे मार देना चाहते है और ऐसा लगता है सबसे पहले इस एरिया की कॉम्बिंग होगी।"

मेरी हालत तो हिल पाने की भी नहीं थी तो यहाँ से कैसे भाग जाऊँ समझ से बाहर था। 

"बचना चाहता है? पैसा खर्च करना पड़ेगा।" मैक ने पूछा।

पैसा लेकर लोगो को मारने वाले से आज उसकी जान बचाने के लिए पैसा माँगा जा रहा था, ये सोचकर मैं हैरान था लेकिन फिर भी पूछा मैंने, "कितना पैसा चाहिए?"

"पचास करोड़.........."

"क्या बकवास है, इतना पैसा नहीं है मेरे पास......."

"तुम्हें पता है कल जो ट्रक बेकाबू होकर तुम लोगों को कुचलने वाला था वो अंडरवर्ल्ड के किसी दादा का भेजा हुआ था जो क्राइम ब्रांच के पुलिस वालो के जरिये तुम तक जा पहुंचा था, वो लोग मुझे तुम्हारे सिर की एवज २५ करोड़ बिना किसी दिक्कत के दे देंगे, तुम्हारी वजह से उनके करोड़ों रुपये कमाने वाले आदमी मारे जा रहे है, इसलिए उन्हें तुम्हारा सिर किसी भी कीमत पर चाहिए............"

"कैसे निकालोगे तुम मुझे यहाँ से इस हालत में?" मैंने चिंता के साथ पूछा। 

"तुम मुझे पैसा दो, कैसे निकलूंगा ये मुझ पर छोड़ दो।" 

"पैसा तो मेरे यहाँ से निकलने बाद ही मिल सकेगा........."

"कुछ टोकन मनी दो, नहीं तो दफा हो जाओ यहाँ से........"

तभी वर्कशॉप का दरवाजा जोर से खड़खड़ाया जाने लगा। 



दरवाजा खटखटाए जाने की आवाज से मैक और मै दोनों चौक पड़े।

"इस टाइम तो कोई नहीं आता यहाँ………...” मैक बोला और मुझे चुप रहने का इशारा किया, और लाइट बंद कर वो ख़ामोशी से गेट की तरफ चला गया।

पाँच मिनट बाद जब वो वापिस आया तो उसने कमरे का दरवाजा बंद करके लाइट जला दी और बोला, "देख भाई मुझे अब पैसा दे या यहाँ से चला जा।"

"मेरे पास अब कोई पैसा नहीं है........"

"ऑनलाइन ट्रांसफर कर…………"

"इतना पैसा खाते में नहीं है मेरे.........."

"हो गई बकवास तेरी, या तो पचास करोड़ या बात खत्म और एक करोड़ टोकन मनी अभी का अभी.........नहीं तो अब चलता बन, मेरी खोपड़ी घूम गई तो अभी विक्रम भाई को फोन करता हूँ; कुछ न कुछ तो दे ही देगा वो तेरा।" मैक गुस्से से एक लोकल दादा का नाम लेते हुए बोला।

"सुन मैं तुझे एक अड्रेस देता हूँ, वहाँ अलमारी में २५ लाख कैश रखा है और लगभग इतने ही कीमत के हथियार रखे है........उन्हें उठा ले।" मैं अपने लोकल ठिकाने का अड्रेस उसे देते हुए बोला।

"इतना बहुत नहीं है लेकिन तेरी जान फ़िलहाल तो बच ही जाएगी इतने से........." अड्रेस लेकर खड़ा होता हुआ वो बोला।

करीब एक घंटे बाद जब वो आया तो उसके पास लकड़ियों से भरी एक ट्रैक्टर ट्रॉली थी जिसमें ऊपर की तरफ एक ताबूत था। उसने ट्रॉली ऊपर उठा कर सारी लकड़ियां नीचे गिरा दी और ट्रॉली के एक कोने में ताबूत रख कर ताबूत के ढक्कन में एक ड्रिल मशीन से सुराख़ करते हुए बोला, "अब लेट जा इस बख्से में; इसे मैं चर्च के कब्रिस्तान से खरीद कर लाया हूँ, इसी से बचेगी तेरी जान।

थोड़ी देर में मैं उस ताबूत में लेटा हुआ था और मैक तेजी से लकड़ियां ट्राली में भर रहा था।

मैं लकड़ियों के ढेर में दफ़न ताबूत में लेटा हुआ था, ताबूत में जो हवा आ रही थी उसमे कटी लकड़ियों की गंध भी शामिल थी। करीब एक घंटे बाद मुझे ट्रैक्टर के चलने का अहसास हुआ। ट्रैक्टर के चलने से ट्रॉली बुरी तरह हिल रही थी, मै ये सोचकर परेशान हो उठा कि अगर लकड़ियों के बोझ से दबकर ताबूत टूट गया तो यही कहानी खत्म हो जाएगी।

न जाने कितनी जगह वो ट्राली रुकी, कभी वो पुलिस से बहस करता लगता, कभी किसी और से। ये अंतहीन सफर चलता रहा और मै होश खोता रहा और होश में आता रहा। करीब १२ घंटे बाद जब ये सफर खत्म हुआ तो मै बहुत बुरी हालत में था करीब आधे घंटे बाद जब मुझे ताबूत से निकाला गया तो मै एक बड़ी सी ईमारत में था मैक के साथ मोहन भी था। मुझे देखकर मैक बोला, "देख ये अभी किस हाल में है, दवा-दारू कर इसकी।

मैक के कहते ही मोहन मुझे एक दड़बे नुमा कमरे में ले गया और मेरे बांये हाथ में ड्रिप लगा दी, उसने ड्रिप से जुडी बोतल में कुछ दवा भी इंजेक्ट की। उसके बाद उसने मेरी पट्टियां बदल दी।

"परसो तक चलने लगेगा तू, अभी मैं यही हूँ।" कहकर मोहन चला गया ।

रात भर ड्रिप लगी रही, मैक गायब रहा। मोहन एक बार एक बन और चाय लाया जिसे खाकर मेरा मुँह खराब हो गया और जो खाया था उसकी उलटी हो गई, जिसे साफ़ करने कोई नहीं आया और मैं उसी गंदगी में लेटा रहा।

अगले दिन दोपहर को जब वो दड़बा नुमा कमरा खुला तो मोहन मेरी पट्टियाँ बदलकर मेरे हाथ नायलोन की एक रस्सी बांधकर बोला, "अब ठीक है तू, चल बाहर इंतजार हो रहा है तेरा।"

"हाथ क्यों बाँध रहा है, कही भाग थोड़े ही रहा हूँ मैं.........?"

"चुप कर.........."मोहन मुझे धक्का देते हुए बोला।

बाहर एक बड़ा सा अहाता था जिसमें मैक और एक मोटा सा आदमी एक छोटी सी मेज के पीछे बैठे थे।

"मैंने तेरी जान बचाई अब मेरा पैसा दे मुझे, मुझे पता है तेरे जैसे लोगों का पैसा विदेशी बैंकों में होता है, अब बैंक की डिटेल बोल, फकीरा तेरी तरफ से पैसा ट्रांसफर करेगा मेरे खाते में।" मैक बोला।

"कोई विदेशी खाता नहीं है मेरा, जो मैंने तुम्हें दिया वही था मेरे पास………"

"ये तो बहुत गलत हुआ, तू अब किसी भी काम का नहीं है, मोहन………."

इतना सुनते ही मोहन ने मुझे एक कुर्सी पर कस कर बाँध दिया और एक सीरिंज में एक लिक्विड भर कर सीधे मेरी गर्दन में ठूंस दिया।

"इस इंजेक्शन में जहर है जो तुझे बहुत बुरी मौत देगा, १५ सेकंड में बैंक की डिटेल बता दे नहीं तो मोहन ये जहर तेरी गर्दन में इंजेक्ट कर देगा।

मै समझ चुका था मै उन्हें बैंक डिटेल्स नहीं दूंगा तो ये मुझे मार डालेंगे और दूंगा तब भी मार डालेंगे, लेकिन बता देने पर शायद छोड़ दे, मैंने १४ वे सेकंड में उन्हें बैंक की डिटेल दे दी।

२० मिनट में वो मेरे खाते को खाली कर चुके थे।

"तो विजय नाम है तेरा………जो भी है तूने माला-माल कर दिया हमें, अब चलते है। विल सिटी के सब दादाओ को खबर दे दी है तेरी, और एक फोन पुलिस को भी कर दिया है और सुन न तो मैं मैक हूँ और न ये मोहन और फकीरा । वो वर्कशॉप तो मेरे छिपने का ठिकाना थी लेकिन तकदीर से तू मेरे हाथ लग गया।" कह कर मैक या वो जो भी था अपने साथियों के साथ उस अहाते से निकल गया।

मुझे पता था वो ऐसा ही कुछ करेगा इसलिए मै बहुत देर से अपने हाथ आजाद करने की कोशिश कर रहा था। अगले पाँच मिनट बाद मैं आजाद था, सबसे पहले मैंने अपने खून से रँगे कपड़ों से छुटकारा पाया, वही अहाते में सिर्फ एक फटा कुर्ता पड़ा था जिसे मैंने पहन लिया, जूते उतार कर उनमें छिपे पैसे और अपने लोकल बैंक का ए टी एम कार्ड और पासपोर्ट निकाल कर कुर्ते की जेब में दाल लिया और देहाती सा दिखने के लिए वही कोने में पड़ा एक फावड़ा निकाल कर अपने कंधे पर रखकर बाहर निकल आया।

लगता है ये कोई देहाती इलाका था, थोड़ी दूर एक पक्की सड़क थी। सड़क पर एक हाट लगी थी, कुछ लोगों ने मुझे गौर से देखा लेकिन फिर अपने काम में व्यस्त हो गए। तभी सड़क से धड़धड़ाती हुई चार एस यू वी गुजरी और सड़क से उतर कर उस बड़े से मकान की और बढ़ गई, हर एस यू वी में खतरनाक से लगने वाले लोग भरे थे। थोड़ी दूर कई ऑटो रिक्सा वाले खड़े थे और शहर-शहर चिल्ला रहे थे। मै एक लोगों से भरे ऑटो में जा बैठा मेरे बैठते ही वो रिक्शा चल पड़ा। तभी पुलिस से भरा एक ट्रक सड़क पर दिखा और वो भी सड़क से उतर कर उस बड़े से मकान की और बढ़ गया और पाँच मिनट बाद पूरा इलाका भारी गोलाबारी से थर्रा उठा।

दो दिन बाद में नई दिल्ली के इंटरनेशनल एयरपोर्ट से मॉरीसस के लिए हवाई जहाज पकड़ रहा था, इस समय वही एकमात्र देश था जहाँ मैं बिना वीजा के जा सकता था। उस गांव सुल्तानपुर से शहर तक का सफर और वहां से दिल्ली तक का सफर बिना किसी दिक्कत के हुआ। सुबह के अखबार से पता लग गया था कि सुल्तानपुर गांव में पुलिस और अज्ञात बंदूक धारियों के बीच जबरदस्त गोलाबारी हुई जिसमें आठ बंदूक धारी मारे गए और बाकी ने पुलिस के सामने हथियार डाल दिए थे।

मेरी सारी पाप की कमाई लुट चुकी थी, अब मेरे पास सिर्फ इतना पैसा बचा था कि मॉरीसस जाकर वहाँ बस जाऊँ और भाड़े के हत्यारे 'आर्टिस्ट,' के स्थान पर असली आर्टिस्ट बनकर लोगों के पोर्ट्रेट बना कर एक नई जिंदगी जीने की कोशिश करूँ।








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