बंजर समाज
बंजर समाज
मोबाइल व इंटरनेट के चलन से बढ़ती सामाजिकता और घटती रिश्तो की आत्मीयता से परेशान जब बेटे ने मुझसे कहा "मां यूँ तो कहने को हमारे बहुत साथी हैं पर वास्तव में हम लोग बहुत अकेले हैं कोई हमारा अपना नहीं है।"
मुझे अपना बीता कल याद आ गया जब चचेरे, ममेरे, फुफेरे सभी नाते अपने ही होते थे। सब मिल कर खूब धमाल करके आनन्द उठाया करते थे। जबकि आज बच्चे अक्सर दिल की बात कहने के लिए उन गैरों का सहारा लेने के लिये मजबूर है।
जो मतलब के लिये जड़ों में मट्ठा डालने के लिए तैयार बैठे हैं। मुझे लगा बंजर होते रिश्तों में थोड़ा प्यार व अपनेपन की खाद की जरूरत है। तो मैंने कहा "माना तुम्हारे पास हमारे बचपन की तरह खूब सारे रिश्ते नहीं हैं पर तुम घर से बाहर निकलो। सबसे मिलो जरूरतमंद का ख्याल रखो, एक दिन पाओगे कि सब तुम्हारे अपने ही हैं।