मुखौटा
मुखौटा
आज वंदना का फोन आया मुझे कुछ काम है। क्या तुम घर पर हो ? हां, कहकर मैं कुछ पूछूं उससे पहले ही फोन कट गया। कुछ देर में वह आ गई। दोनों के घर की दूरी ज्यादा नहीं है। उसके आते ही अच्छा लगा वह कम ही आती है, हम एक दूसरे से घर के पास वाले गार्डन में अक्सर बच्चों के साथ निकलते हैं तो मुलाकात हो जाती है। मैंने पूछा क्या हुआ ? वह परेशान लग रही थी। कल बच्चों का रिजल्ट है तो क्या पेपर अच्छे नहीं गए, नहीं, नहीं। असल में फीस पूरी नहीं पटी है तो रिजल्ट नहीं मिलेगा। क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो ? कुछ कहो पहले ही उसने कहा 15-20 दिन में मैं लौटा दूंगी। उसके मासूम चेहरे को देखकर नहीं ना कह पाई। घर पर भी कोई नहीं था उसे चाय बना कर आती हूं। कहकर मैं पैसे व चाय दोनों लेकर आई।
वह जल्दी में थी, ज्यादा देर नहीं रुकी, बार-बार थैंक्स कह कर चली गई। अगले दिन माइक में दानदाता के नाम की घोषणा हो रही थी मंदिर तो नहीं गई थी मगर घर के पास ही मंदिर है उस राह से जाते समय मुझे सब सुनाई दे रहा था। मेरी चाल कुछ धीमी हो गई, नाम सुनकर लगा जाना पहचाना नाम है। फिर याद आया यह तो वंदना की सास का नाम है सरकारी नौकरी है।अच्छी सैलरी उन्हें मिलती है। मंदिर में दान कर देती है दो बेटे है, मगर कंपनी डूब गई तो बड़े बेटे की जॉब छूट गई। छोटे के पास पैसों की कोई कमी नहीं अगर रिश्तो में उसकी मिठास नहीं देवरानी-जेठानी आपस में बात नहीं करती एक घर में हो कर भी अनजाने हैं। हर कोई अपनी जिंदगी जीने में मगन है। वदंना स्कूल टीचर है पति की जॉब छूट चुकी है। दोनों के बच्चे स्कूल की फीस, में पूरे नहीं हो सकते इसलिए वह घर जाकर ट्यूशन भी पढ़ाती है। दोनों बच्चे हमेशा टॉप करते हैं वंदना की सास वंदना के साथ ही रहती है। अक्सर बड़े घरों में रहने वाले लोग पास में रहने वालों से दिल से दूर रहने वाले रिश्ते ही रखते हैं। नाम के बारे में सुनकर हैरानी हुई सब तालियां बजा रहे थे मंदिर में कई जगह पहले से उनकेे नाम की पट्टी लगी हुई है। मगर क्या उनकी सास वंदना की मदद नहीं कर सकती थी मैं सोच रही थी की वंदना कि सास माइक में कह रही थी,
"किसी की मदद करना ईश्वर की मदद करना है, उनको खुश करना है।"
यह सुनकर हैरान थे कितने मुखौटे होते हैं ! लोगों के एक तरफ बहू पैसों के लिए घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ाती है और किसी से मदद मांगती है, मगर घर में बहू की मदद ना करके दूसरों की मदद की जाती है। एक बार नहीं हजारों बार लोगों को बेइज्जत किया गया, क्या यही ईश्वर की सेवा है ? क्या यह दान है ?