“तीजें“
“तीजें“
सावन की तीज थी और मनन उदास बैठी थी सोंच लिया था अबकी बार वह कुछ नहीं करेगी ।पता नहीं क्यों उसे अकेले त्योहार मनाना अच्छा ही नहीं लगता था ।बहुत मन था कि दूज पर माँ के पास जाये ।दूज मायके और तीजें उसकी ससुराल में होती थी ।माँ के पास वह जा नहीं पाई थी और तीजें जो पहले वह सासूमाँ और जिठानियों के संग मनाया करती थी ।जब से सासू माँ नहीं रहीँ और उसने अलग घर बसा कर रहना शुरु किया था अकेले ही मनानी पड़तीं थी ।
त्योहार पास आते ही उसे सबकी याद आनें लगती थी ।वैसे तो घर में एसा रिवाज नहीँ था कि कोई सावन पर कुछ भेंट दे ।पर जब सब साथ में त्योहार मनातीं थी तो सभी आपस में एक दूसरे को और सासू माँ को भी कुछ ना कुछ देतीं थी आज बरबस ही उसे सब याद आ रहा था कि तभी फोन घनघना उठा उधर से जिठानी का फोन था उन्हे भी घर में सूनापन लग रहा था ।जब से वो लोग अपना अलग घर बनवा कर दूर रहनें लगे है तब से सभी को त्योहार पर अकेलापन खलने लगा है ।
प्रमुख त्योहारों पर तो सब मिल लेते थे पर आज तीजों पर भी उसे सबसे अलग रहना खल रहा था । ऐसे में जब उन्होंने कहा कि तीजें मनाने वो उसके पास बिटिया को लेकर आ रहीँ हैं उसका मन खिल उठा सारा आलस्य भाग गया और वो त्योहार पर सबके स्वागत के लिये तैयारियों मे लग गयी ।त्योहार पर जब सुबह सुबह जिठानी ने उसके हाथ में मेंहदी व हरी हरी चूड़ियों के साथ सुहाग की महावर और चमकते सितारे सी बिन्दिया रखी उसका मन मयूर सा खिल उठा उसनें झट से वो हरी हरी चूड़ियाँ पहन लीं और अपनें संग जिठानी के भी माथे पर चमकती बिन्दिया सजा कर दोनो के हाथों मे मेहंदी रचाने बैठ गयी ।इस बार मेंहदी का रंग वाकई बहुत सुन्दर आया था ।