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mona kapoor

Abstract

4.9  

mona kapoor

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इकलौती संतान

इकलौती संतान

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बत्तीस साल पहले मल्होत्रा परिवार में किलकारियों की गूंज सुनाई पड़ी थी ।मुबारक हो बेटी हुई है वो भी बिल्कुल ठीकठाक,नर्स की यह बात सुन मानो जान में जान आयी हो आती भी क्यों ना,इससे पहले मल्होत्रा जी की बीवी ने पाँच बच्चों को जो जन्म दिया था जिसमे तीन बेटे व दौ बेटियाँ थी लेकिन भगवान की मर्ज़ी नही थी शायद की वो सभी बच्चे उनके आँगन में खेले तभी तो तीन बच्चे तो पैदा होते ही खत्म होगये थे तो बाकी के दौ आठवें माह में पैदा होने के कारण केवल चार दिन ही जीवित रह पाए थे।।।इस बार फिर एक उम्मीद जगी थी ,बड़ी ही मुश्किल से गर्भावस्था का समय निकला था आखिरकार शरीर कमजोर जो होगया था,तो डॉक्टरों की सलाह से ऑपरेशन करवाया गया था।।बस सही डॉक्टर की सलाह से सब कुछ ठीक हो गया था,बच्चे को नर्सरी में निगरानी के लिए भी रखा गया ,सब ठीक से चेक करने के बाद नवजात शिशु को परिवार के साथ घर जाने की अनुमति दे दी गयी थी।

लगभग सात दिन के पश्चात मल्होत्रा जी अपनी बीवी और बच्ची को लेकर घर आगये थे।घर को आलीशान महल की तरह सजाया गया था।।खूब मिठाइयां व उपहार बांटे गये।।।परिवार के सभी सदस्य नन्ही परी को खूब प्यार करते, बस उसको गोद मे उठाने का बहाना ढूँढ़ते।कब नन्ही परी बड़ी हो गयी पता ही नही चला।उसको एक सुंदर सा नाम महिमा दिया गया।।उसके चरणों से मल्होत्रा जी को कारोबार में भी खूब बढ़ोतरी मिली।।

देखते ही देखते महिमा दस साल की हो चुकी थी,व स्कूल जाने लगी थी। इन दस साल में काफी उतार चढ़ाव आये थे उनके जीवन में।मल्होत्रा जी अपने माता पिता को खो चुके थे,वैसे तो उनके दौ भाई और भी थे परंतु वो दोनों ही अपनी नौकरी के चलते घर से दूर अपने अपने परिवार के साथ रहते थे जब भी कभी मौका लगता कुछ दिन मल्होत्रा जी के पास रहने आ जाते।।सब सही सलामत चल रहा था कि अचानक से महिमा के व्यवहार मे मल्होत्रा जी व उनकी पत्नी को कुछ बदलाव सा नजर आने लगा था।।उसका व्यवहार आक्रमक होने लगा था,सब कहते कि एक एक बच्चा है तो इसीलिए इस तरह से व्यवहार करता है थोड़ी बडी होगी तो खुद ब खुद समझ जाएगी बस तुम्हे प्यार से समझाने की ज़रुरत है।सबके कहे अनुसार मल्होत्रा जी व उनकी बीवी महिमा को प्यार से समझाते पर कभी कभी उसके आक्रमक रूप को संभालना बेहद कठिन हो जाता।

अब पानी सिर के ऊपर से निकल गया था। महिमा का शारारिक विकास तो हो रहा था परंतु मानसिक विकास रुकता जा रहा था। दस साल की उम्र में भी उसका दिमाग़ नासमझ बच्चे की तरह काम करता। हाथ मे आयी हर चीज़ को फेंक देना, हर समय गुस्सा दिखाना,छोटी छोटी बातों पर ज़िद्द करना व उनके ना पूरा होने पर खुद को मारना,स्कूल मे अपनी कक्षा के बच्चों को मारना, मुँह से लारे निकालना व एक ही बात को बार बार बोलते रहना जैसी समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही थी,हद तो तब होगयी थी जब एक दिन महिमा ने अपनी ही माँ को मारना शुरू कर दिया था।।।।परेशान मल्होत्रा जी ने हार कर डॉक्टर से विचार विमर्श किया तो पता चला कि महिमा को दिमाग की ऐसी बीमारी है जिसके कारण उसका शारीरिक विकास तो अवश्य हो रहा है परंतु उसका मानसिक विकास अपनी उम्र के हिसाब से बहुत पीछे है,उसका दिमाग बिल्कुल एक छोटे से बच्चे के दिमाग जैसा है। मल्होत्रा जी और उनकी पत्नी यह बात सुन कर टूट चुके थे।।महिमा का इलाज शुरू करवाया गया, मल्होत्रा जी ने कही कोई पैसे की कमी ना छोड़ी जिसने जैसा व जहाँ जहाँ कहा उन्होंने वही वही महिमा का इलाज करवाया।।

होम्योपैथिक, एलोपैथिक, आयुर्वेदिक हर तरह की दवाईया महिमा को दी गयी परन्तु उसके अंदर कोई फर्क नही दिखाई पड़ता।।इन दवाइयों से उसको साइड इफेक्ट्स होने लगे व उसका वजन काफी तेजी से बढ़ने लगा।।उसकी इस समस्या के चलते उसे स्कूल से निकलवाना पड़ा क्योंकि वो स्कूल जाकर अपने आसपास के बच्चों को मार देती जिसके कारण बच्चों के माता पिता रोष प्रकट करते।।घर के आसपास के बच्चों के माता पिता भी अपने बच्चों को महिमा के साथ नही खेलने देते थे।।बस कोई उसके सही होने की सहानुभूति देता तो कोई महिमा की माँ को ही यह कह दोषी ठहरता कि उसके द्वारा अपनी इकलौती बेटी का ध्यान नही रखा गया।। परंतु महिमा की माँ किसी की कोई बात का बुरा न मानती क्योंकि वो यह जानती थी कि यही उनके जीवन का सत्य है जिसको उन्हें खुशी खुशी स्वीकार करना है, और अब उन्हें और ज्यादा हिम्मत की आवश्यकता है क्योंकि उनकी टूटती हिम्मत उनके साथ साथ उनके परिवार को भी तोड़ देगी।

अब धीरे धीरे उन्होंने महिमा का ज्यादा ध्यान रखना शुरू कर दिया था,उसके साथ समय बिताना, उसको पार्क ले जाना,उसके गुस्से को प्यार समझना व अत्यधिक गुस्सा आने पर उसको बेहद शांतिपूर्वक संभालना सीख चुकी थी, महिमा की माँ।।मल्होत्रा जी भी अपने काम से आकर खाली समय में उसके साथ खूब खेलते,उसकी हर इच्छा को पूरी करते व उसकी नासमझ जिद दिखाने पर उसको प्यार से समझाते।।इन सब में मल्होत्रा जी के बाकी परिवार के सदस्यों ने भी बहुत साथ दिया।।महिमा भी उनकी बातों को कुछ कुछ समझने लगी थी,अपनी माँ के बिना उसको कही जाना पसंद ना होता।। बाकी बच्चों को खेलता हुआ देख वह जोर जोर से तालियां बजाती व खुश होती।बच्चे भी उसे देख खुश होते व उनके माता पिता भी महिमा के अंदर काफी हद तक आए हुए बदलाव को समझ अपने बच्चों को महिमा के साथ खेलने की अनुमति दे देते।।

आज महिमा बत्तीस साल की हो चुकी हैं,उसकी स्थिति में ज्यादा सुधार तो नही आया परंतु उसने काफी चीज़ो को समझना सीख लिया है। महिमा की माँ ने उसका ध्यान व्यस्त रखने के लिए घर के छोटे छोटे कामों में अपनी माँ का हाथ बटाना सीखा दिया है।।इन बीते सालों में महिमा व उसके माता पिता के जीवन मे बहुत से उतार चढ़ाव आये बहुत से लोगों ने उनका मज़ाक बना आलोचना की,कुछ ने तो उसके माता पिता की संपत्ति देख उससे शादी तक का प्रस्ताव रख दिया परन्तु मल्होत्रा जी व उनकी बीवी ने गलत इरादे देखते हुए कभी सहमति नही दी।।समझदार लोगों ने महिमा की हालत समझते हुए उसे बहुत प्यार दिया।।जिन जिन रिश्तों से उसे प्यार मिला वो रिश्ते उसके दिल के बेहद करीब बन चुके है।

आज इसी तरह से महिमा का जीवन बीत रहा है।मल्होत्रा जी व उनकी पत्नी भी भगवान के दिये गए इस उपहार को पाकर बिना मन मे कोई मलाल रखे खुशी से अपनी प्यारी बेटी के साथ अपना जीवन बिता रहे है।।हाँ, एक सोच जरूर है जो उनको परेशान करती हैं कि उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद उनकी इकलौती बेटी का ध्यान कौन रखेगा परंतु भगवान के प्रति आस्था उनकी इस सोच को उनके ऊपर ज़्यादा हावी नही होने देती।।वो खुश है कि महिमा ने उन्हें माँ बाप बनने का सुख दिया है इसीलिए हर परिस्थिति में वो खुशी खुशी अपना जीवन निर्वाह करने की सकारात्मक सोच रख जीवन का आनंद ले रहे है।।







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