बेटियाँ
बेटियाँ
मुश्क़िल दौर में उम्मीद की सबसे सुंदर कविता होती हैं बेटियाँ
ज़िन्दगी की धूप में खिली चाँदनी सी बेटियाँ
आसमान से उतरी परियों की झुण्ड सी बेटियाँ
वह रोती है तो बहते हैं अनमोल मोती
हँसती है तो बहती ही प्रेम की गंगा यमुना सरस्वती
गर्दन ऊपर उठा कर खिलखिलाती है तो झरते हैं हरश्रृंगार के फूल
जब भी गोद में आ बैठती है
उदास मौसम में भी झरने लगते हैं जंगल में अमलतास के फूल
गले लग जब चूमती हैं टिमटिमा उठते हैं लाखों तारे
बेटियाँ ही बचाये रखेंगी
प्रकृति, पेड़, हवा और पानी
वो रखेंगी आँचल से बाँधकर
नानी, दादी और माँ की दी हुई सीख
और संसकारों की पोटली
सहेजे रखेंगी दहेज में मिले उपहार की तरह
वह नहीं मिटने देगी कुछ भी
सम्भाले रहेंगी सदियों की सभ्यता
भयानक से भयानक दौर में भी करती रहेंगी प्रेम
अपने अंदर से निर्माण करेगी अपनी ही जैसी दुनिया
जनेगी नया भविष्य
रचेगी नयी सृष्टि
जहाँ बचेगी रहेगी हर हाल में जीने की उम्मीद
इंसानियत की पूरी गरिमा के साथ
मनुष्यता के साथ
बुरे से बुरे वक़्त में भी गाऐंगी
सम्भावना के गीत
करेंगी सुंदर कल्पना
वही बचायेंगी
सबकुछ