इज्जत
इज्जत
चुनाव का समय था।सूर्यास्त होने वाला था।नेताजी (मंत्री जी) दिन भर के थका देने वाली चुनावी दौरों से वापस लौट रहे थे।साथ में अनेक समर्थक (चापलूस) भी थे।रेलवे लाइन से सटे झुग्गी बस्ती में नेताजी न चाहते हुए भी चुनाव प्रचार को चल दिए।झुग्गियों की हालत दयनीय थी. गंदगी भरी पड़ी थी।फटी - मैले कपड़े पहने बच्चे खेलने से ज्यादा कोलाहल कर रहे थे।औरतें खाना बनाने में व्यस्त थीं।अभी तक इनके मर्द काम से वापस नहीं लौटे थे।एकाएक सबका ध्यान 'मंत्री जी-जिंदाबाद' के नारे की ओर गया।बच्चे उस और दौड़ पड़े।औरतें भी सिर से गिरी साड़ी ठीक कर उधर झांकने लगी।कुछ बुजुर्ग भी जमा हो गए।अच्छी खासी भीड़ जमा हो गई. नारे और जोर से लगने लगे ,नेताजी प्रफुल्लित हो उठे, उनका हाथ जुट गया।धीरे-धीरे आसमान से तारे तोड़ लाने जैसे वादे होने लगे।लोगों को हसीन सपने दिखाए जाने लगे।पास ही एक बुजुर्ग व्यक्ति जिनके शरीर पर सिर्फ हडिया ही बच गई थीं लाठी के बल खड़े सारी बातें सुन रहे थे।जैसे ही नेता जी ने अपना भाषण खत्म किया वह व्यक्ति लड़खड़ाते कदमों से नेताजी के पास आकर कहने लगे -"हुजूर आपने तो बहुत बड़े-बड़े वादे किए हैं।आप हम लोगों के माई-बाप हैं।मेरा भी एक निवेदन स्वीकार करें।हम लोगों को कुछ नहीं चाहिए।हमारा सिर्फ एक काम करवा दें।यह सामने खड़ी रेलगाड़ी के कुछ डिब्बों को यहां से हटवा दें, इन डिब्बों ने हम लोगों का जीना हराम कर दिया है।"(रेलवे लाइन डेड हो चुका था) नेताजी आश्चर्यचकित होकर पूछे, वह कैसे ? बुजुर्ग व्यक्ति- हुजूर, यह आपके साथ जो वर्दीधारी लोग हैं यही लोग कुछ समय बाद (अंधेरा होने पर) इन्हीं डिब्बों में हमारे घरों की इज्जत के साथ प्रतिदिन खिलवाड़ करते हैं।यह चंद डिब्बे हमारे लिए अभिशाप बन गए हैं।किसी तरह इसे हटाया जाए।हम लोग आप को ही वोट देंगे."
नेताजी ध्यानपूर्वक सारी बातें सुनने के बाद बुजुर्ग व्यक्ति से कहने लगे- "बाबा आप लोगों की चिंता हमें भी कुछ कम नहीं है।आपकी इज्जत, हमारी इज्जत।इसी को ध्यान में रखकर इन डिब्बों को यहां लगाया गया है ताकि आपकी इज्जत खुले आम नीलाम होने से बचे, लीजिए यह (रुपए थमाते हुए) और आराम कीजिए।"
नेताजी का जवाब सुनकर उनके (बुजुर्ग व्यक्ति) हाथ की लाठी गिर गई।कुछ क्षण पश्चात वो भी जोर जोर से चिल्लाने लगे जीतेगा भाई जीतेगा मंत्री बाबू जीतेगा।