सूरज दूर है
सूरज दूर है
आज आधुनिकता बड़ी प्रसन्न थी, अरे भई हो भी क्यों न नई अंजान दुल्हन की तरह सबने सिर पर जो चढ़ा रखा है।
''सारी दुनिया मुझ पर गर्व करती है -- हा-हा-हा-।''
आधुनिकता का अट्टहास सुनकर बेचारी मरणासन्न प्राचीनता का दिल दहल गया और उठकर धीरे से आंखो को फैलाकर आधुनिकता को देखने का प्रयत्न करने लगी।
''कौन हो तुम --और इतना भयंकर शोर क्यों मचा रही हो --?''
''अरे लो ! यह भी आ गई --तुम तो कब की मर चुकी हो --।'' आधुनिकता ने गर्व से कहा।
''मै --मै अपनी कुछ अच्छाइयों की वजह से अभी --अभी तक जीवित हूं --कुछ सांसें बाकी है --परंतु --परंतु तुम ज़्यादा अभिमान न करो ---अपनी माया का आवरण दुनिया की नज़रों पर जो तुमने चढ़ा रखा है न --एक दिन मेरी तरह --मृतप्राय हो जाएगा ---क्योंकि मैने समय के साथ चलना नही सीखा ----परंपराओं --ढोंग -आदि से मैने दुनिया को स्वतंत्र ही नही होने दिया --और तुम समय से आगे बढ़ना चाहती हो ---इस दुनिया को स्वतंत्रता की आड़ मे युवा पीढ़ी को न जाने कैसे अनुचित तरीकों से गर्त मे ढकेलती जा रही हो ---!' 'प्राचीनता ने कराहते हुए आधुनिकता को सचेत करना चाहा, परंतु अभिमान के मद मे चूर आधुनिकता अपने विचारों को शुद्ध करने की राह भूल ---आधुनिक पीढ़ी को अंधकार की खाई की ओर ले जा रही है।
मानो अभी अंधेरा छटा नही क्योंकि विवेक और सत्य का सूरज अभी दूर है।